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चूड़ी  : स्त्री० [दे० प्रा० चूड़; बं० उ० चुरी; गु० पं० चूड़ी० सि० चूरी; ने० चूरि, मरा० चूडा] १. स्त्रियों का एक प्रसिद्ध वृत्ताकार गहना जो धातु लाख शीशे सींग आदि का बनता है और जो स्त्रियाँ हाथ में शोभा के लिए और प्रायः सौभाग्य-सूचक चिन्ह के रूप में पहनती हैं। मुहावरा–चूड़ियाँ ठंडी करना या बढ़ाना (क) बदलने के लिए चूडि़यां उतारना। (ख) विधवा होने पर चूड़िया तोड़ डालना। चूडिया पहनना स्त्रियों का सा आचरण या व्यवहार करना। (कायरता सूचक व्यंग्य) जैसे–तुम्हें तो चूड़ियाँ पहनकर घर में बैठना चाहिए था। (किसी पर या किसी के नाम की) चूडियाँ पहनना=स्त्री का किसी को अपना उपपति बना लेना और उसके वशवर्ती होकर रहना। (किसी स्त्री को) चूड़ियाँ पहनाना (क) विधवा स्त्री का विवाह करना। (ख) विधवा स्त्री को पत्नी बनाकर अपने घर में रखना। २. उक्त आकार-प्रकार की वे वृत्ताकार रेखाएँ जो किसी चीज में उसके विभाग नियत करने के लिए बनाई जाती है। जैसे–कल के किसी पुरजे या पेंच की चूड़ियाँ, मेहराब की चूड़ियाँ। ३. फोनोग्राफ नामक बाजे का वह उपकरण जो पहले नल के आकार का होता था और जिस पर उक्त प्रकार की रेखाएँ बनी होती थीं इसी के योग से उक्त बाजा बजता था, क्योंकि वैज्ञानिक क्रिया से इसी पर कही जानेवाली बात या सुनाई पड़नेवाला गीत अंकित होता था। ४. उक्त के आधार पर और उक्त प्रकार का काम देनेवाला तवे की तरह का वह उपकरण जो आजकल ग्रामोफोन नामक बाजे पर रखकर बजाया जाता है। ५. रेशम फेरनेवालों का एक उपकरण जो मोटे कड़े के आकार का होता है। छत में बँधा रहता है और इसके दोनों सिरों पर दो तकलियाँ होती हैं जिनमें से एक पर उलझा हुआ और दूसरी पर साफ किया हुआ तथा सुलझा हुआ रेशम रहता है।
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चूड़ीदार  : वि० [चूड़ी+फा० दार] जिसमें बहुत-सी चूड़ी के आकार की वृत्ताकार रेखाएँ या धारियाँ पड़ी हो या पड़ती हो। जैसे–चूड़ीदार पायजामा।
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चूड़ीदार पायजामा  : पुं० [हिं० चूड़ीदार+पायजामा] तंग और लंबी मोहरी का एक प्रकार का पायजामा जिसे पहनने पर टखने पर चूड़ी के आकार की वत्ताकार अनेक धारियाँ या रेखाएँ बन जाती हैं।
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