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तुरग  : वि० [सं० तुर√गम् (जाना)+ड] तेज चलनेवाला। पुं० १. घोड़ा। २. चित्त। मन।
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तुरग-गंधा  : स्त्री० [ब० स० टाप्] अश्वगंधा। असगंध।
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तुरग-दानव  : पुं० [मध्य०.स०] एक दैत्य जो कंस के आदेशानुसार घोड़े का रूप धारण करके कृष्ण को मारने गया था।
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तुरग-ब्रह्मचर्य  : पुं० [ष० त०] वह ब्रह्मचर्य जो केवल स्त्री की अप्राप्ति के कारण चलता हो।
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तुरगारोह  : पुं० [सं० तुरग+आ√रूह् (चढ़ना)+अच्] अश्वारोही।
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तुरगास्तरण  : पुं० [सं० तुरग-आस्तरण, मध्य० स] घोड़े की पीठ पर बिछाया जानेवाला कपड़ा। पलान।
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तुरगी  : स्त्री० [सं० तुरग+ङीष्] १. घोड़ी। २. [तुरग+अच्-ङीष्] अश्वगंधा या असगंध नाम की ओषधि। पुं० [सं० तुरग+इनि] घुड़सवार।
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तुरगुला  : पुं० [देश०] १. कान में पहनने का झुमका। २. लटकन लोलक।
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तुरगोपचारक  : पुं० [सं० तुरग-उपचारक, ष० त०] साईस।
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