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दहल  : स्त्री० [हिं० दहलना] १. दहलने की क्रिया या भाव। २. किसी बड़े या विकट काम या चीज को देखकर मन में उत्पन्न होनेवाला वह भय जो सहसा उस काम या चीज की ओर बढ़ने न दे।
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दहलना  : अ० [सं० दर=डर+हिं० हलना=हिलना] १. किसी बड़े या विकट काम या चीज को देखकर इस प्रकार कुछ डर जाना कि वह काम करने अथवा उस चीज की ओर बढ़ने का साहस न हो। इतना डरना कि आगे बढ़ने की हिम्मत न हो। जैसे—शेर की दहाड़ या हाथी की चिंघाड़ सुनकर जी दहलना। २. भय से स्तंभित होकर रुक जाना। संयो० क्रि०—उठना।—जाना। विशेष—इस क्रिया का प्रयोग स्वयं व्यक्ति के लिए होता है और उसके कलेजे या जी के संबंध में भी। जैसे—सिपाही का दहलना, और सिपाही का कलेजा या जी दहलना।
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दहला  : पुं० [फा० दह=दस+ला (प्रत्य०)] ताश या गंजीफे का वह पत्ता जिस पर दस बूटियाँ हों। दस बूटियोंवाला ताश का पत्ता। पुं०=थाँवला। (वृक्ष का) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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दहलाना  : स० [हिं० दहलना का स०] ऐसा काम करना जिससे कोई दहल जाय या डरकर आगे बढ़ने से रुक जाय। संयो० क्रि०—देना।
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दहली  : स्त्री०=दहलीज।
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दहलीज  : स्त्री० [हिं० देहरी या देहली का उर्दू रूप] द्वार के चौखट के नीचेवाली लकड़ी जो जमीनपर रहती है। देहरी। डेहरी। देहली।
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