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दूआ  : पुं० [हिं० दो+आ (प्रत्य०)] १. ताश या गंजीफे में वह पत्ता जिस पर दो बूटियाँ या बिंदियाँ हों। दुक्की। २. पासे, सोलही आदि का ऐसा दाँव जिसमें दो बिंदियाँ ऊपर रहती अथवा दो कौड़ियाँ चित्त पड़ती हैं। (जुआरी) वि०=दूसरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [देश०] कलाई पर सब गहनों के पीछे की ओर पहना जाने वाला पिछेली नामक गहना। स्त्री०=दुआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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