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दौड़  : स्त्री. [हिं० दौड़ना] १. दौड़ने की क्रिया या भाव। मुहा०—दौड़ मारना या लगाना=(क) दौड़ते हुए कहीं जाना। (ख) लंबी यात्रा करना। चलकर बहुत दूर पहुँचना। २. ऐसी क्रीड़ा विशेषतः प्रतियोगिता जिसमें वेगपूर्वक आगे बढ़ा जाय। जैसे—घुड़दौड़। ३. किसी क्षेत्र में बहुत से लोगों का एक दूसरे से आगे बढ़ने के लिए किया जानेवाला प्रयत्न। ४. सिपाहियों का एकाएक किसी को पकड़ने अथवा तलाशी लेने के लिए किसी के घर पर वेगपूर्वक पहुँचना। ५. उक्त उद्देश्य से आने या पहुँचनेवाले सिपाही। ६. वेगपूर्वक किया जानेवाला आक्रमण। चढ़ाई। ७. गति, प्रयत्न का वेग या सीमा। जैसे—मियाँ की दौड़ मसजिद तक। क्रि० प्र०—लगाना। ८. बुद्धि या समझ की गति या सीमा। जैसे—बस यहीं तक तुम्हारी दौड़ है। ९. लंबाई या विस्तार का वह अंश जिस पर कोई चीज चलती या लगती हो या कोई काम होता हो। जैसे—साड़ी में बेल या बूटे की दौड़। १॰. किसी पदार्थ का लंबाई के बल का विस्तार। जैसे—इस दीवार की दौड़ ४॰ गज है। ११. जहाज पर की वह चरखी जिसमें लकड़ी डालकर घुमाने से वह जंजीर खिसकती है जिसमें पतवार बँधा रहता है।
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दौड़-धपाड़  : स्त्री०=दौड़-धूप।
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दौड़-धूप  : स्त्री० [हिं० दौड़ना+धूपना=धापना] ऐसा प्रयत्न जिसमें अनेक स्थानों पर बार-बार आना-जाना तथा अनेक आदमियों से मिलना और उनसे अनुनय करनी पड़े। जैसे—चुनाव के समय उम्मीदवारों को काफी दौड़-धूप करनी पड़ती है।
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दौड़ना  : अ० [सं० धोरण] [भाव० दौड़ाई] १. जैव या अजैव वस्तुओं का तीव्र गति से किसी दिशा की ओर या किसी पथ पर बढ़ना। जैसे—(क) मनुष्य, हाथी या इंजन दौड़ना। (ख) कागज पर कलम दौड़ना। विशेष—मनुष्य तो दौड़ने के समय जब एक पैर जमीन पर रख लेता है, तब दूसरा पैर उठाता है; परन्तु पशु प्रायः उछल-उछल कर जमीन पर से अपने चारों पैरे ऊपर उठाते हुए दौड़ते हैं। संयो० क्रि०—जाना।—पड़ना। २. (व्यक्ति का) अपेक्षया अधिक तीव्र गति या वेग से किसी ओर जाना या बढ़ना। जैसे—दौड़कर मत चलो; नहीं तो ठोकर लगेगी। ३. किसी उद्देश्य की सिद्धि के लिए बार-बार कहीं आना-जाना। जैसे—अभी उसे दो-चार दिन दौड़ लेने दो, तब आप ही उसकी बुद्धि ठिकाने हो जायगी। मुहा०—दौड़ दौड़कर आना=जल्दी-जल्दी और बार-बार आना। जैसे—हमारे यहाँ दौड़-दौड़ कर तुम्हारा आना व्यर्थ है। दौड़ पड़ना=एकाएक तीव्र गति से या वेग से चलना आरंभ करना। जैसे—जहाँ तुम खेल-तमाशे का नाम सुनते हो, वहीं दौड़ पड़ते हो। (किसी काम या बात के पीछे) दौड़ पड़ना=बिना सोचे-समझे किसी ओर वेगपूर्ण प्रवृत्त होना। (किसी पर) चढ़ दौड़ना=आक्रमण या चढ़ाई करने के लिए बहुत तेजी से आगे बढ़ना। जैसे—गुंडे मार-पीट करने के लिए उनके मकान पर चढ़ दौड़े। ४. दौड़ की किसी प्रतियोगिता में सम्मिलित होना। ५. तरल पदार्थ के संबंध में, धारा का वेगपूर्वक किसी ओर बढ़ना। जैसे—(क) नसों में खून दौड़ना। (ख) नालियों में पानी दौड़ना। ६. किसी चीज का अंश या प्रभाव कार्यकारी, विद्यमान या व्याप्त होना। जैसे—(क) चेहरे पर लाली या स्याही दौड़ना। (ख) शरीर में जहर या विष दौड़ना।
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दौड़हा  : पुं० [हिं० दौड़ना+हा (प्रत्य०)] वह जिसका काम दौड़कर समाचार या पत्र आदि ले आना और ले जाना हो। हरकारा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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दौड़ाई  : स्त्री० [हिं० दौड़ना+आई (प्रत्य०)] १. दौड़ने की क्रिया या भाव। २. बार-बार इधर से उधर आते-जाते रहने का काम या भाव। ३. दौड़ने के बदले में मिलनेवाला पारिश्रमिक या पुरस्कार।
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दौड़ा-दौड़  : क्रि० वि० [हिं० दौड़+दौड़] [भाव० दौड़ा-दौड़ी] बहुत तेजी से और बिना रुके। बेतहाशा। जैसे—सब लोग दौड़ा-दौड़ वहाँ जा पहुँचे। स्त्री०=दौड़ा-दौड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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दौड़ा-दौड़ी  : स्त्री० [हिं० दौड़ना] १. बहुत से लोगों के एक साथ दौड़ने की क्रिया या भाव। २. दौड़-धूप। ३. आतुरता। जल्दी। हड़बड़ी।
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दौड़ान  : स्त्री० [हिं० दौड़ना] १. दौड़ने की क्रिया या भाव। दौड़। २. गति की तीव्रता या वेग। झोंक। ३. क्रम। सिलसिला। ४. लंबाई। विस्तार।
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दौड़ाना  : सं० [हिं० दौड़ना का सकर्मक रूप] १. किसी को दौड़ने में प्रवृत्त करना। जैसे—इंजन या घोड़ा दौड़ना। २. किसी को बहुत जल्दी या तुरन्त कोई काम कर आने के लिए भेजना। जैसे—रोगी की दशा खराब देखकर डाक्टर को लाने के लिए आदमी दौड़ाया गया। संयो० क्रि०—देना। ३. किसी काम में ऐसी आनाकानी करना कि उसके लिए किसी को कई बार आना-जाना पड़े। जैसे—वे रुपए तो देते नहीं, बार-बार हमारे आदमी को दौड़ाते हैं। ४. किसी चीज को जमीन के साथ घसीटत हुए अथवा ऊपर कुछ दूर तक बढ़ाते हुए बराबर आगे ले जाना। जैसे—बिजली का तार उस कमरे तक दौड़ा दो। ५. किसी चीज को जल्दी जल्दी आगे बढ़ने में प्रवृत्त करना। जैसे—कागज पर कलम दौड़ाना। संयो० क्रि०—देना।
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