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नाँद  : स्त्री० [सं० नंदक] चौडे़ मुँह तथा गोल पेंदेवाला मिट्टी का एक प्रकार का पात्र जिसमें गाय, भैंस आदि को चारा खिलाया जाता है।
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नाँदना  : अ० [सं० नंदन] १. आनंदित या प्रसन्न होना। २. दीपक का बुझने के पहले कुछ भभककर जलना। ३. दीपक की लौ का रह-रहकर नाचना या हिलना। अ० [सं० नाद] १. नाद या शब्द करना। २. शोर मचाना। चिल्लाना। ३. छींकना।
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नांदिकर  : पुं० [सं० नांदी√कृ+ट, ह्रस्व] सूत्रधार जो नांदी का पाठ करता है।
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नांदी  : स्त्री० [सं०√नन्द् (समृद्धि)+घञ्, पृषो० सिद्धि] १. अभ्युदय। समृद्धि। २. नाटक में वह आशीर्वादात्मक पद्य जो सूत्रधार अभिनय आरंभ करने से पहले मंगलाचरण के रूप में उच्च स्वर में गाता या पढ़ता है। मंगलाचरण।
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नांदीक  : पुं० [सं० नांदी√कै (प्रकाशित होना)+क] १. तोरण स्तंभ। २. दे० ‘नांदीमुखश्राद्ध’।
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नांदी-पट  : पुं० [ष० त०] लकड़ी की वह रचना जिससे कूएँ का ऊपरी भाग ढका जाता है।
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नांदी-मुख  : पुं० [ब० स०] १. कूएँ के ऊपर का ढकना। २.परिवार में किसी प्रकार की वृद्धि होने के शुभ अवसर पर पितरों का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए किया जानेवाला श्राद्ध। वृद्धि श्राद्ध। वि० (पितर) जिनके उद्देश्य से नांदी-मुख श्राद्ध किया जाता है।
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नांदीमुखी  : स्त्री० [सं०] एक प्रकार का वर्ण-वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः दो नगण, दो तगण और दो गुरु होते हैं।
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