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शब्द का अर्थ

परिसर  : वि० [सं० परि√सृ (गति)+अप्] [स्त्री० परिसरा] १. किसी के चारों ओर वहने (अथवा चलने) वाला। २. किसी के साथ जुड़ा, मिला, लगा या सटा हुआ। ३. फैला हुआ। विस्तृत। उदा०—खुली रूप कलियों में परभर स्तर स्तर सु-परिसरा।—निराला। पुं० १. किसी स्थान के आस-पास की भूमि या खुला मैदान। २. प्रांत भूमि। ३. मृत्यु। ४. ढंग। तरीका। विधि। ५. शरीर की नाड़ी या शिरा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
परिसरण  : पुं० [सं० परि√सृ+ल्युट्—अन] [भू० कृ० परिसृत] १. किसी के चारों ओर बहना (या चलना)। २. पर्यटन। ३. पराजय। हार। ४. मृत्यु। मौत। ५. दे० रसाकर्षण।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
परिसर्प  : पुं० [सं० परि√सृप् (गति)+घञ्] १. किसी के चारों ओर घूमना। परिक्रिया। परिक्रमण। २. घूमना-फिरना या टहलना। ३. ढूँढ़ने या तलाश करने के लिए निकलना। ४. चारों ओर से घेरना। ५. साहित्य दर्पण के अनुसार नाटक में किसी का किसी की खोज और केवल मार्गचिह्नों आदि के सहारे उसका पता लगाने का प्रयत्न करना। जैसे—सीता-हरण के उपरान्त, राम का सीता को बन में ढूँढ़ते फिरना। ६. सुश्रुत के अनुसार ११ प्रकार के क्षुद्र कुष्ठों में से एक जिसमें छोटी-छोटी फुंसियाँ निकलती हैं और उन फुँसियों से पंछा या मवाद निकलता है। ६. एक प्रकार का साँप।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
परिसर्पण  : पुं० [सं० परि√सृप्+ल्युट्—अन] १. घूमना-फिरना। टहलना। २. साँप की तरह टेढ़े-तिरछे चलना या रेंगना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
परिसर्पा  : स्त्री० [सं० परि√सृ (गति)+क्यप्+टाप्] १. मृत्यु। २. हार।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
परिसर  : वि० [सं० परि√सृ (गति)+अप्] [स्त्री० परिसरा] १. किसी के चारों ओर वहने (अथवा चलने) वाला। २. किसी के साथ जुड़ा, मिला, लगा या सटा हुआ। ३. फैला हुआ। विस्तृत। उदा०—खुली रूप कलियों में परभर स्तर स्तर सु-परिसरा।—निराला। पुं० १. किसी स्थान के आस-पास की भूमि या खुला मैदान। २. प्रांत भूमि। ३. मृत्यु। ४. ढंग। तरीका। विधि। ५. शरीर की नाड़ी या शिरा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
परिसरण  : पुं० [सं० परि√सृ+ल्युट्—अन] [भू० कृ० परिसृत] १. किसी के चारों ओर बहना (या चलना)। २. पर्यटन। ३. पराजय। हार। ४. मृत्यु। मौत। ५. दे० रसाकर्षण।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
परिसर्प  : पुं० [सं० परि√सृप् (गति)+घञ्] १. किसी के चारों ओर घूमना। परिक्रिया। परिक्रमण। २. घूमना-फिरना या टहलना। ३. ढूँढ़ने या तलाश करने के लिए निकलना। ४. चारों ओर से घेरना। ५. साहित्य दर्पण के अनुसार नाटक में किसी का किसी की खोज और केवल मार्गचिह्नों आदि के सहारे उसका पता लगाने का प्रयत्न करना। जैसे—सीता-हरण के उपरान्त, राम का सीता को बन में ढूँढ़ते फिरना। ६. सुश्रुत के अनुसार ११ प्रकार के क्षुद्र कुष्ठों में से एक जिसमें छोटी-छोटी फुंसियाँ निकलती हैं और उन फुँसियों से पंछा या मवाद निकलता है। ६. एक प्रकार का साँप।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
परिसर्पण  : पुं० [सं० परि√सृप्+ल्युट्—अन] १. घूमना-फिरना। टहलना। २. साँप की तरह टेढ़े-तिरछे चलना या रेंगना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
परिसर्पा  : स्त्री० [सं० परि√सृ (गति)+क्यप्+टाप्] १. मृत्यु। २. हार।
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