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पिंड  : वि० [सं०√पिण्ड् (ढेर लगाना)+अच्] [स्त्री० पिंडी] १. घन। ठोस। २. गुथा हुआ। ३. घना। पुं० १. घना या ठोस चीज का छोटा और प्रायः गोलाकार खंड या टुकड़ा। ढेला या लोंदा। जैसे—गुड़, धातु या मिट्टी का पिंड। २. कोई गोलाकार पदार्थ। जैसे—नेत्र-पिंड। ३. भोजन का वह अंश जो प्रायः गोलाकार रूप में लाकर मुँह में डाला जाय। कौर। ग्रास। ४. जौ के आटे, भात आदि का बनाया हुआ वह गोलाकार खंड जो श्राद्ध में पितरों के उद्देश्य से वेदी आदि पर रखा जाता है। पद—पिंड-दान। (देखें) मुहा०—(किसी को) पिंड देना=कर्मकांड की विधि के अनुसार किसी मृत व्यक्ति के उद्देश्य से उसका श्राद्ध करना। ५. ढेर। राशि। ५. खाद्य पदार्थ। आहार। भोजन। ७. जीविका या उसके निर्वाह का साधन। ८. भिक्षुकों को दिया जानेवाला दान। खैरात। ९. मांस। गोश्त। १॰. गर्भ की आरंभिक अवस्था। भ्रूण। ११. मनुष्य की काया। देह। बदन। शरीर। पद—पिंड-रोग। (देखें) मुहा०—(किसी का) पिंड छोड़ना=जिसके पीछे पड़े हों, उसका पीछा छोड़ना। तंग या परेशान करने से बाज आना। जैसे—(क) वह जब तक उनका सर्वस्व नष्ट न कर देगा, तब तक उनका पिंड नहीं छोड़ेगा। (ख) आज महीने भर बाद बुखार नें पिंड छोड़ा है। (किसी के) पिंड पड़ना=किसी प्रकार का स्वार्थ सिद्ध करने के लिए किसी के पीछे पड़ना। (स्त्री० के उदर में) पिंड पड़ना=स्त्री का गर्भधारण करना। उदा०—पिंड तरै तउ प्रीति न तोरउ।—कबीर। १२. जीव। प्राणी। १३. पैर की पिंडली। १४. तबले आदि के मुँह पर का चमड़ा। १५. पदार्थ। वस्तु। १६. घर का वह विशिष्ट भाग जो वास्तु-शास्त्र के नियमों के अनुसार उसे चौकोर बनाने के लिए बीच में स्थिर किया जाता है। १७. मकान के दरवाजे के सामने का छायादार स्थान। १८. जलाने का कोई सुगंधित पदार्थ। जैसे—धूप, राल आदि। १९. भूमिति में, किसी धन पदार्थ की घनता या मोटाई अथवा उसका परिमाण। २॰. गणित में त्रिज्या का चौबीसवाँ अंश या भाग। २१. बल। शक्ति। पुं० [सं० पांडु] पांडु नामक रोग जिसमें सारा शरीर पीला हो जाता है। पीलिया। उदा०—पायाँ ज्यूँ पीली पड़ी रे, लोग कहैं पिंड रोग।—मीराँ।
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पिंडक  : पुं० [सं० पिण्ड√कै (चमकना)+क] १. गोलाकार पिंड। गोला। २. पिंडालू। ३. लोबान। ४. बोल। मुरमक्की। ५. गिलट। ६. शिला रस। ७. गाजर।
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पिंड-कंद  : पुं० [मध्य० स०] पिंडालु नामक कंद।
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पिंडकर  : पुं० [सं०] प्राचीन भारत में, ऐसा कर जिसकी राशि एक बार निश्चित कर दी जाती थी और जिसके मान में सहसा कोई परिवर्तन नहीं होता था।
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पिंड-कर्कटी  : स्त्री० [मध्य० स०] एक प्रकार का पेठा।
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पिंडका  : स्त्री० [सं० पिंडक+टाप्] छोटी माता या चेचक नाम का रोग।
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पिंडकी  : स्त्री०=पंडुक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पिंडखजूर  : स्त्री० [सं० पिंडखर्जूर] १. खजूर की जाति का एक वृक्ष जिसके फल बहुत मीठे होते हैं। २. उक्त पेड़ के फल।
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पिंड-खर्जूर  : पुं० [मध्य० स०]=पिंड-खजूर।
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पिंड-खर्जूरी (रिका)  : स्त्री० [सं० पिंडखजूर+ङीष्]= पिंड खजूर।
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पिंडगोस  : पुं० [सं० गो√सन् (अलग करना)+ड, पिण्ड -गोस, कर्म० स०] १. गंधरस। २. बोल।
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पिंडज  : पुं० [सं० पिंड√जन् (उत्पन्न होना)+ड] प्राणी के पिंड या शरीर अर्थात् गर्भ से उत्पन्न होनेवाला जीव। जैसे—मनुष्य, घोड़ा, गाय आदि। (अंडज और स्वेदज से भिन्न)
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पिंडत  : पुं०=पंडित। उदा०—छाछि छाँड़ि पिंडता पीवीं।—गोरखनाथ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पिंड-तैल (क)  : पुं० [ब० स०, कप्] १. कुछ वृक्षों से निकलनेवाला एक तरह का गंध-द्रव्य जिसे लोबान कहते हैं। २. शिलारस।
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पिंडद  : पुं० [सं० पिंड√दा (देना)+क] पिंडा देने अर्थात् मृतक का श्राद्ध करनेवाला व्यक्ति। वंशज। सन्तान।
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पिंड-दान  : पुं० [ष० त०] कर्मकाण्ड के अनुसार पितरों को पिंड देने का कर्म जो श्राद्ध में किया जाता है।
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पिंडन  : पुं० [सं०√पिण्ड्+ल्युट्—अन] १. पिण्ड अर्थात् गोलाकार वस्तुएँ बनाना। २. बाँध। ३. टीला।
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पिंड-पात  : पुं० [ष० त०] १. पिंड-दान। २. भीख माँगने के लिए इधर-उधर घूमना। ३. भिक्षापात्र में मिली हुई भिक्षा।
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पिंडपातिक  : पुं० [सं० पिंडपात+ठन्—इक] भिखमंगा। भिक्षुक।
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पिंड-पाद  : पुं० [ब० स०] हाथी।
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पिंड-पुष्प  : पुं० [ब० स०] १. अशोक का पेड़ और उसका फूल। २. अनार का पौधा। ३. जपा का फूल। ४. तगर का पुष्प। ५. कमल।
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पिंड-पुष्पक  : पुं० [सं० पिंडपुष्प+कन्] बथुआ (साग)।
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पिंड-फल  : पुं० [ब० स०] कद्दू।
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पिंड-फला  : स्त्री० [ब० स०, टाप्] तितलौकी।
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पिंड-बीजक  : पुं० [ब० स०, कप्] कनेर का पेड़।
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पिंडभाक् (ज्)  : पुं० [पिंड√भज् (प्राप्त करना)+ण्वि] पिंड पाने का अधिकारी अर्थात् पितर।
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पिंडभृति  : स्त्री० [ष० त०] जीवन निर्वाह के साधन। जीविका।
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पिंड-मुस्ता  : स्त्री० [कर्म० स०] नागरमोथा।
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पिंड-मूल  : पुं० [ब० स०] १. गाजर। २. शलजम।
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पिंडरी  : स्त्री०=पिंडली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पिंड-रोग  : पुं० [कर्म० स०] १. ऐसा रोग जिसने शरीर घर कर लिया हो और जो जल्दी छूट न सकता हो। २. कोढ़।
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पिंडरोगी (गिन्)  : वि० [सं० पिंड रोग+इनि] जो प्रायः सदा रोगी रहता हो और जल्दी अच्छा न हो सकता हो।
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पिंडली  : स्त्री० [सं० पिंड] घुटने और एड़ी के बीच का वह मांसल स्थान जो पैर में पीछे की ओर होता है। मुहा०—पिंडली हिलना=(क) पैर काँपना या थर्राना। (ख) भय से कँपकँपी होना।
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पिंड-लेप  : पुं० [ष० त०] पिंड का वह अंश जो पिंड-दान के समय हाथों में चिपक जाता है तथा जिसके वृद्ध प्रपितामह आदि तीन पितर अधिकार होते हैं।
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पिंड-लोप  : पुं० [ष० त०] १. पिंडदान का न किया जाना। २. पिंड देनेवाले वंशजों का लोप। निर्वंश होना।
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पिंडवाही  : स्त्री० [?] पुरानी चाल का एक प्रकार का कपड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पिंड-वेणु  : पुं० [कर्म० स०] एक तरह का बाँस।
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पिंड-शर्करा  : स्त्री० [मध्य० स०] ज्वार से बनी हुई चीनी या शर्करा।
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पिंड-संबंध  : पुं० [तृ० त०] १. जन्य या जनक का सम्बन्ध। २. पिंड-दाता या पिंड-भोक्ता होने का संबंध।
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पिंडस  : पुं० [सं० पिंड√सन् (देना)+ड] भिखमंगा।
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पिंडस्थ  : वि० [सं० पिंड√स्था (ठहरना)+क] १. जो पिंड या शरीर में स्थित हो। गर्भ में स्थित। २. जो पिंड या लोंदे के रूप में आया या लाया गया हो। ३. किसी में मिलाया हुआ। मिश्रित।
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पिंड-स्वेद  : पुं० [मध्य० स०] औषध का वह लेप जो गरम करके फोड़ों आदि पर लगाया जाता है। पुल्टिस।
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पिंडा  : पुं० [सं० पिंड] [स्त्री० अल्पा० पिंडी] १. ठोस या गीली वस्तु का टुकड़ा। पिंड। २. गोल-मटोल टुकड़ा। लोंदा। जैसे—जौ के आटे, भात आदि का पिंडा जो श्राद्ध में पितरों के उद्देश्य से वेदी पर रखा जाता है। क्रि० प्र०—देना। मुहा०—पिंडा-पानी देना=मृतक के उद्देश्य से श्राद्ध और तर्पण करना। पिंडा पारना=मृतक के उद्देश्य से पिंड-दान करना। ४. देह। शरीर। मुहा०—पिंडा धोना=स्नान करना। नहाना। पिंडा फीका होना=जी अच्छा न होना। तबियत खराब होना। ५. स्त्रियों की भग। योनि। मुहा०—(किसी को) पिंडा दिखाना या देना=स्त्री का पर-पुरुष से संभोग कराना। स्त्री० [सं० पिंड-टाप्] १. एक प्रकार की कस्तूरी। २. वंशपत्री। ३. इस्पात। ४. हलदी।
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पिंडाकार  : वि० [पिंड-आकार, ब० स०] पिंड अर्थात् प्रायः गोलाकार बँधे लोंदे के आकार का। गोलाकार।
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पिंडात  : पुं० [सं० पिंड√अत् (गति)+अच्] शिलारस।
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पिंडाभ  : पुं० [सं० पिंड-आ√भा (दीप्ति)+क] लोबान।
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पिंडाभ्र  : पुं० [सं० आम्र, अम्र+अण्,-पिंड-आम्र, उपमि० स०] सफेद और चमकीला पिंड अर्थात् ओला।
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पिंडायस  : पुं० [पिंड-आयस, कर्म० स०] इस्पात।
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पिंडार  : पुं० [सं० पिंड√ऋ (गति)+अण्] १. एक प्रकार का फल। २. क्षपणक। ३. भैंस का चरवाहा। गोप। ४. विकंकत का पेड़।
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पिंडारक  : पुं० [सं० पिंडार+कन्] १. एक नाग का नाम। २. वसुदेव और रोहिणी का एक पुत्र। ३. एक पवित्र नद। ४. गुजरात देश में समुद्र-तट का एक प्राचीन तीर्थ।
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पिंडारा  : पुं० [सं० पिंडारा] एक प्रकार का शाक जो वैद्यक में शीतल रौ पित्तनाशक माना गया है। पुं०= पिंडारी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पिंडारी  : पुं० [देश०] दक्षिण भारत की एक जाति जो पहले कर्णाट, महाराष्ट्र आदि में बसकर खेती-बारी करती थी, पर पीछे मध्यप्रदेश और उसके आस-पास के स्थानों में लूटमार करने लगी और मुसलमान हो गई थी।
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पिंडालक्तक  : पुं० [पिंड-अलक्तक, कर्म० स०] महावर।
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पिंडालु  : पुं० [पिंड-आलु, उपमि० स०]=पिंडालू।
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पिंडालू  : पुं० [सं० पिंड+हिं० आलू] १. एक प्रकार का कंद या शकरकन्द जिसके ऊपर कड़े सूत की तरह के रेशे होते हैं। सुथनी। पिंडिया। २. एक प्रकार का रतालू या शफतालू।
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पिंडाशक  : पुं० [पिंड-आशक, ष० त०] भिक्षुक।
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पिंडाशी (शिन्)  : पुं० [सं० पिंड√अश्+णिनि]=पिंडाशक ।
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पिंडाह्वा  : स्त्री० [सं० पिंड-आ√ह्वे (स्पर्द्धा करना)+क+टाप्] नाड़ी हींग।
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पिंडि  : स्त्री० [सं०√पिंड्+इन्]=पिंडी।
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पिंडिका  : स्त्री० [सं० पिंड+ङीष्+कन्+टाप्, ह्रस्व] १. छोटा पिंड। पिंडी। २. किसी चीज का छोटा ढेला या ढोंका। ३. पहिए के बीच का वह गोल भाग जिसमें धुरी पहिनाई रहती है। चक्रनाभि। ४. पिंडली। ५. इमली। ६. छोटा शिव-लिंग। ७. वह छोटी गोलाकार वेदी जिस पर देव-मूर्ति स्थापित की जाती है।
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पिंडित  : भू० कृ० [सं०√पिंड+क्त] १. पिंड के रूप में बँधा या बनाया हुआ। २. सूत की पिंडी की तरह लपेटा हुआ। ३. गुणा किया हुआ। गुणित। पुं० १. शिलारस। २. काँसा। ३. गणित या उसकी क्रिया।
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पिंडितार्थ  : पुं० [पिंडित-अर्थ, कर्म० स०] कथन आदि का सारांश।
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पिंडिनी  : स्त्री० [सं०√पिंड+णिनि+ङीष्] अपराजिता लता।
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पिंडिया  : स्त्री०=पिंडी (गुण, रस्सी आदि की)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पिंडिल  : पुं० [सं० पिंड+इलच्] १. सेतु। पुल। २. गणक। वि० बड़ी-बड़ी पिंडलियोंवाला।
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पिंडिला  : स्त्री० [सं० पिंडिल+नप्] ककड़ी।
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पिंड़ी  : स्त्री० [सं० पिंड+अच्+ङीष्] १. ठोस या गीली वस्तु का छोटा गोल-मटोल टुकड़ा। लगदी। जैसे—आटे या गुड़ की पिंडी। २. डोरी या सूत जो उक्त आकार या रूप में लपेटा हुआ हो। जैसे—रस्सी की पिंडी। क्रि० प्र०—बनाना।—बाँधना। ३. कद्दू। घीया। ४. पिंडखजूर। ५. एक प्रकार का तगर। ६. बलि चढ़ाने की वेदी। ७. दे० ‘पिंडिका’।
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पिंडीकरण  : पुं० [सं० पिंड+च्वि, ईत्व, पिंडी,√कृ (करना)+ल्युट्—अन] किसी वस्तु को पिंड का रूप देना। पिंड अर्थात् गोलाकार वस्तुएँ बनाने की क्रिया।
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पिंडीतक  : पुं० [सं० पिंडी√तक् (अनुकरण करता)+अच्] १. मैनफल। २. एक प्रकार का तगर जिसे हजारा तगर भी कहते हैं।
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पिंडीपुष्प  : पुं० [ब० स०] अशोक वृक्ष।
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पिंडीर  : पुं० [सं० पिंड√ईर् (प्रेरित करना)+अण्] १. अनार। २. समुद्रफेन।
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पिंडी-लेप  : पुं० [ष० त०] एक तरह का उबटन।
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पिंडी-शूर  : पुं० [स० त०] १. घर ही में बैठे-बैठे बहादुरी दिखलानेवाला। २. बहुत अधिक खानेवाला। पेटू।
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पिंडुरी (लौ)  : स्त्री०=पिंडली।
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पिंडूक  : पुं० [?] १. पंडुक। २. उल्लू।
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पिंडोदक क्रिया  : स्त्री० [सं० पिंड—उदक, द्व० स०] पिंडोदक क्रिया, ष० त०] पूर्वजों के उद्देश्यों से किया जानेवाला पिंडदान और तर्पण।
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पिंडोपजीवी (विन्)  : पुं० [सं० पिंड-उप√जीव् (जीना)+ णिनि] भिखमंगा।
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पिंडोल  : स्त्री० [सं० पांडु] पीले रंगी की मिट्टी। पोतनी मिट्टी।
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पिंडोलि  : स्त्री० [सं०] १. मुँह से गिरे हुए अन्न के छोटे-छोटे टुकड़े। २. जूठन।
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पिंड  : वि० [सं०√पिण्ड् (ढेर लगाना)+अच्] [स्त्री० पिंडी] १. घन। ठोस। २. गुथा हुआ। ३. घना। पुं० १. घना या ठोस चीज का छोटा और प्रायः गोलाकार खंड या टुकड़ा। ढेला या लोंदा। जैसे—गुड़, धातु या मिट्टी का पिंड। २. कोई गोलाकार पदार्थ। जैसे—नेत्र-पिंड। ३. भोजन का वह अंश जो प्रायः गोलाकार रूप में लाकर मुँह में डाला जाय। कौर। ग्रास। ४. जौ के आटे, भात आदि का बनाया हुआ वह गोलाकार खंड जो श्राद्ध में पितरों के उद्देश्य से वेदी आदि पर रखा जाता है। पद—पिंड-दान। (देखें) मुहा०—(किसी को) पिंड देना=कर्मकांड की विधि के अनुसार किसी मृत व्यक्ति के उद्देश्य से उसका श्राद्ध करना। ५. ढेर। राशि। ५. खाद्य पदार्थ। आहार। भोजन। ७. जीविका या उसके निर्वाह का साधन। ८. भिक्षुकों को दिया जानेवाला दान। खैरात। ९. मांस। गोश्त। १॰. गर्भ की आरंभिक अवस्था। भ्रूण। ११. मनुष्य की काया। देह। बदन। शरीर। पद—पिंड-रोग। (देखें) मुहा०—(किसी का) पिंड छोड़ना=जिसके पीछे पड़े हों, उसका पीछा छोड़ना। तंग या परेशान करने से बाज आना। जैसे—(क) वह जब तक उनका सर्वस्व नष्ट न कर देगा, तब तक उनका पिंड नहीं छोड़ेगा। (ख) आज महीने भर बाद बुखार नें पिंड छोड़ा है। (किसी के) पिंड पड़ना=किसी प्रकार का स्वार्थ सिद्ध करने के लिए किसी के पीछे पड़ना। (स्त्री० के उदर में) पिंड पड़ना=स्त्री का गर्भधारण करना। उदा०—पिंड तरै तउ प्रीति न तोरउ।—कबीर। १२. जीव। प्राणी। १३. पैर की पिंडली। १४. तबले आदि के मुँह पर का चमड़ा। १५. पदार्थ। वस्तु। १६. घर का वह विशिष्ट भाग जो वास्तु-शास्त्र के नियमों के अनुसार उसे चौकोर बनाने के लिए बीच में स्थिर किया जाता है। १७. मकान के दरवाजे के सामने का छायादार स्थान। १८. जलाने का कोई सुगंधित पदार्थ। जैसे—धूप, राल आदि। १९. भूमिति में, किसी धन पदार्थ की घनता या मोटाई अथवा उसका परिमाण। २॰. गणित में त्रिज्या का चौबीसवाँ अंश या भाग। २१. बल। शक्ति। पुं० [सं० पांडु] पांडु नामक रोग जिसमें सारा शरीर पीला हो जाता है। पीलिया। उदा०—पायाँ ज्यूँ पीली पड़ी रे, लोग कहैं पिंड रोग।—मीराँ।
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पिंडक  : पुं० [सं० पिण्ड√कै (चमकना)+क] १. गोलाकार पिंड। गोला। २. पिंडालू। ३. लोबान। ४. बोल। मुरमक्की। ५. गिलट। ६. शिला रस। ७. गाजर।
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पिंड-कंद  : पुं० [मध्य० स०] पिंडालु नामक कंद।
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पिंडकर  : पुं० [सं०] प्राचीन भारत में, ऐसा कर जिसकी राशि एक बार निश्चित कर दी जाती थी और जिसके मान में सहसा कोई परिवर्तन नहीं होता था।
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पिंड-कर्कटी  : स्त्री० [मध्य० स०] एक प्रकार का पेठा।
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पिंडका  : स्त्री० [सं० पिंडक+टाप्] छोटी माता या चेचक नाम का रोग।
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पिंडकी  : स्त्री०=पंडुक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पिंडखजूर  : स्त्री० [सं० पिंडखर्जूर] १. खजूर की जाति का एक वृक्ष जिसके फल बहुत मीठे होते हैं। २. उक्त पेड़ के फल।
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पिंड-खर्जूर  : पुं० [मध्य० स०]=पिंड-खजूर।
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पिंड-खर्जूरी (रिका)  : स्त्री० [सं० पिंडखजूर+ङीष्]= पिंड खजूर।
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पिंडगोस  : पुं० [सं० गो√सन् (अलग करना)+ड, पिण्ड -गोस, कर्म० स०] १. गंधरस। २. बोल।
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पिंडज  : पुं० [सं० पिंड√जन् (उत्पन्न होना)+ड] प्राणी के पिंड या शरीर अर्थात् गर्भ से उत्पन्न होनेवाला जीव। जैसे—मनुष्य, घोड़ा, गाय आदि। (अंडज और स्वेदज से भिन्न)
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पिंडत  : पुं०=पंडित। उदा०—छाछि छाँड़ि पिंडता पीवीं।—गोरखनाथ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पिंड-तैल (क)  : पुं० [ब० स०, कप्] १. कुछ वृक्षों से निकलनेवाला एक तरह का गंध-द्रव्य जिसे लोबान कहते हैं। २. शिलारस।
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पिंडद  : पुं० [सं० पिंड√दा (देना)+क] पिंडा देने अर्थात् मृतक का श्राद्ध करनेवाला व्यक्ति। वंशज। सन्तान।
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पिंड-दान  : पुं० [ष० त०] कर्मकाण्ड के अनुसार पितरों को पिंड देने का कर्म जो श्राद्ध में किया जाता है।
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पिंडन  : पुं० [सं०√पिण्ड्+ल्युट्—अन] १. पिण्ड अर्थात् गोलाकार वस्तुएँ बनाना। २. बाँध। ३. टीला।
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पिंड-पात  : पुं० [ष० त०] १. पिंड-दान। २. भीख माँगने के लिए इधर-उधर घूमना। ३. भिक्षापात्र में मिली हुई भिक्षा।
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पिंडपातिक  : पुं० [सं० पिंडपात+ठन्—इक] भिखमंगा। भिक्षुक।
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पिंड-पाद  : पुं० [ब० स०] हाथी।
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पिंड-पुष्प  : पुं० [ब० स०] १. अशोक का पेड़ और उसका फूल। २. अनार का पौधा। ३. जपा का फूल। ४. तगर का पुष्प। ५. कमल।
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पिंड-पुष्पक  : पुं० [सं० पिंडपुष्प+कन्] बथुआ (साग)।
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पिंड-फल  : पुं० [ब० स०] कद्दू।
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पिंड-फला  : स्त्री० [ब० स०, टाप्] तितलौकी।
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पिंड-बीजक  : पुं० [ब० स०, कप्] कनेर का पेड़।
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पिंडभाक् (ज्)  : पुं० [पिंड√भज् (प्राप्त करना)+ण्वि] पिंड पाने का अधिकारी अर्थात् पितर।
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पिंडभृति  : स्त्री० [ष० त०] जीवन निर्वाह के साधन। जीविका।
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पिंड-मुस्ता  : स्त्री० [कर्म० स०] नागरमोथा।
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पिंड-मूल  : पुं० [ब० स०] १. गाजर। २. शलजम।
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पिंडरी  : स्त्री०=पिंडली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पिंड-रोग  : पुं० [कर्म० स०] १. ऐसा रोग जिसने शरीर घर कर लिया हो और जो जल्दी छूट न सकता हो। २. कोढ़।
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पिंडरोगी (गिन्)  : वि० [सं० पिंड रोग+इनि] जो प्रायः सदा रोगी रहता हो और जल्दी अच्छा न हो सकता हो।
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पिंडली  : स्त्री० [सं० पिंड] घुटने और एड़ी के बीच का वह मांसल स्थान जो पैर में पीछे की ओर होता है। मुहा०—पिंडली हिलना=(क) पैर काँपना या थर्राना। (ख) भय से कँपकँपी होना।
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पिंड-लेप  : पुं० [ष० त०] पिंड का वह अंश जो पिंड-दान के समय हाथों में चिपक जाता है तथा जिसके वृद्ध प्रपितामह आदि तीन पितर अधिकार होते हैं।
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पिंड-लोप  : पुं० [ष० त०] १. पिंडदान का न किया जाना। २. पिंड देनेवाले वंशजों का लोप। निर्वंश होना।
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पिंडवाही  : स्त्री० [?] पुरानी चाल का एक प्रकार का कपड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पिंड-वेणु  : पुं० [कर्म० स०] एक तरह का बाँस।
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पिंड-शर्करा  : स्त्री० [मध्य० स०] ज्वार से बनी हुई चीनी या शर्करा।
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पिंड-संबंध  : पुं० [तृ० त०] १. जन्य या जनक का सम्बन्ध। २. पिंड-दाता या पिंड-भोक्ता होने का संबंध।
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पिंडस  : पुं० [सं० पिंड√सन् (देना)+ड] भिखमंगा।
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पिंडस्थ  : वि० [सं० पिंड√स्था (ठहरना)+क] १. जो पिंड या शरीर में स्थित हो। गर्भ में स्थित। २. जो पिंड या लोंदे के रूप में आया या लाया गया हो। ३. किसी में मिलाया हुआ। मिश्रित।
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पिंड-स्वेद  : पुं० [मध्य० स०] औषध का वह लेप जो गरम करके फोड़ों आदि पर लगाया जाता है। पुल्टिस।
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पिंडा  : पुं० [सं० पिंड] [स्त्री० अल्पा० पिंडी] १. ठोस या गीली वस्तु का टुकड़ा। पिंड। २. गोल-मटोल टुकड़ा। लोंदा। जैसे—जौ के आटे, भात आदि का पिंडा जो श्राद्ध में पितरों के उद्देश्य से वेदी पर रखा जाता है। क्रि० प्र०—देना। मुहा०—पिंडा-पानी देना=मृतक के उद्देश्य से श्राद्ध और तर्पण करना। पिंडा पारना=मृतक के उद्देश्य से पिंड-दान करना। ४. देह। शरीर। मुहा०—पिंडा धोना=स्नान करना। नहाना। पिंडा फीका होना=जी अच्छा न होना। तबियत खराब होना। ५. स्त्रियों की भग। योनि। मुहा०—(किसी को) पिंडा दिखाना या देना=स्त्री का पर-पुरुष से संभोग कराना। स्त्री० [सं० पिंड-टाप्] १. एक प्रकार की कस्तूरी। २. वंशपत्री। ३. इस्पात। ४. हलदी।
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पिंडाकार  : वि० [पिंड-आकार, ब० स०] पिंड अर्थात् प्रायः गोलाकार बँधे लोंदे के आकार का। गोलाकार।
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पिंडात  : पुं० [सं० पिंड√अत् (गति)+अच्] शिलारस।
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पिंडाभ  : पुं० [सं० पिंड-आ√भा (दीप्ति)+क] लोबान।
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पिंडाभ्र  : पुं० [सं० आम्र, अम्र+अण्,-पिंड-आम्र, उपमि० स०] सफेद और चमकीला पिंड अर्थात् ओला।
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पिंडायस  : पुं० [पिंड-आयस, कर्म० स०] इस्पात।
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पिंडार  : पुं० [सं० पिंड√ऋ (गति)+अण्] १. एक प्रकार का फल। २. क्षपणक। ३. भैंस का चरवाहा। गोप। ४. विकंकत का पेड़।
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पिंडारक  : पुं० [सं० पिंडार+कन्] १. एक नाग का नाम। २. वसुदेव और रोहिणी का एक पुत्र। ३. एक पवित्र नद। ४. गुजरात देश में समुद्र-तट का एक प्राचीन तीर्थ।
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पिंडारा  : पुं० [सं० पिंडारा] एक प्रकार का शाक जो वैद्यक में शीतल रौ पित्तनाशक माना गया है। पुं०= पिंडारी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पिंडारी  : पुं० [देश०] दक्षिण भारत की एक जाति जो पहले कर्णाट, महाराष्ट्र आदि में बसकर खेती-बारी करती थी, पर पीछे मध्यप्रदेश और उसके आस-पास के स्थानों में लूटमार करने लगी और मुसलमान हो गई थी।
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पिंडालक्तक  : पुं० [पिंड-अलक्तक, कर्म० स०] महावर।
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पिंडालु  : पुं० [पिंड-आलु, उपमि० स०]=पिंडालू।
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पिंडालू  : पुं० [सं० पिंड+हिं० आलू] १. एक प्रकार का कंद या शकरकन्द जिसके ऊपर कड़े सूत की तरह के रेशे होते हैं। सुथनी। पिंडिया। २. एक प्रकार का रतालू या शफतालू।
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पिंडाशक  : पुं० [पिंड-आशक, ष० त०] भिक्षुक।
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पिंडाशी (शिन्)  : पुं० [सं० पिंड√अश्+णिनि]=पिंडाशक ।
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पिंडाह्वा  : स्त्री० [सं० पिंड-आ√ह्वे (स्पर्द्धा करना)+क+टाप्] नाड़ी हींग।
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पिंडि  : स्त्री० [सं०√पिंड्+इन्]=पिंडी।
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पिंडिका  : स्त्री० [सं० पिंड+ङीष्+कन्+टाप्, ह्रस्व] १. छोटा पिंड। पिंडी। २. किसी चीज का छोटा ढेला या ढोंका। ३. पहिए के बीच का वह गोल भाग जिसमें धुरी पहिनाई रहती है। चक्रनाभि। ४. पिंडली। ५. इमली। ६. छोटा शिव-लिंग। ७. वह छोटी गोलाकार वेदी जिस पर देव-मूर्ति स्थापित की जाती है।
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पिंडित  : भू० कृ० [सं०√पिंड+क्त] १. पिंड के रूप में बँधा या बनाया हुआ। २. सूत की पिंडी की तरह लपेटा हुआ। ३. गुणा किया हुआ। गुणित। पुं० १. शिलारस। २. काँसा। ३. गणित या उसकी क्रिया।
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पिंडितार्थ  : पुं० [पिंडित-अर्थ, कर्म० स०] कथन आदि का सारांश।
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पिंडिनी  : स्त्री० [सं०√पिंड+णिनि+ङीष्] अपराजिता लता।
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पिंडिया  : स्त्री०=पिंडी (गुण, रस्सी आदि की)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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पिंडिल  : पुं० [सं० पिंड+इलच्] १. सेतु। पुल। २. गणक। वि० बड़ी-बड़ी पिंडलियोंवाला।
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पिंडिला  : स्त्री० [सं० पिंडिल+नप्] ककड़ी।
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पिंड़ी  : स्त्री० [सं० पिंड+अच्+ङीष्] १. ठोस या गीली वस्तु का छोटा गोल-मटोल टुकड़ा। लगदी। जैसे—आटे या गुड़ की पिंडी। २. डोरी या सूत जो उक्त आकार या रूप में लपेटा हुआ हो। जैसे—रस्सी की पिंडी। क्रि० प्र०—बनाना।—बाँधना। ३. कद्दू। घीया। ४. पिंडखजूर। ५. एक प्रकार का तगर। ६. बलि चढ़ाने की वेदी। ७. दे० ‘पिंडिका’।
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पिंडीकरण  : पुं० [सं० पिंड+च्वि, ईत्व, पिंडी,√कृ (करना)+ल्युट्—अन] किसी वस्तु को पिंड का रूप देना। पिंड अर्थात् गोलाकार वस्तुएँ बनाने की क्रिया।
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पिंडीतक  : पुं० [सं० पिंडी√तक् (अनुकरण करता)+अच्] १. मैनफल। २. एक प्रकार का तगर जिसे हजारा तगर भी कहते हैं।
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पिंडीपुष्प  : पुं० [ब० स०] अशोक वृक्ष।
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पिंडीर  : पुं० [सं० पिंड√ईर् (प्रेरित करना)+अण्] १. अनार। २. समुद्रफेन।
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पिंडी-लेप  : पुं० [ष० त०] एक तरह का उबटन।
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पिंडी-शूर  : पुं० [स० त०] १. घर ही में बैठे-बैठे बहादुरी दिखलानेवाला। २. बहुत अधिक खानेवाला। पेटू।
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पिंडुरी (लौ)  : स्त्री०=पिंडली।
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पिंडूक  : पुं० [?] १. पंडुक। २. उल्लू।
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पिंडोदक क्रिया  : स्त्री० [सं० पिंड—उदक, द्व० स०] पिंडोदक क्रिया, ष० त०] पूर्वजों के उद्देश्यों से किया जानेवाला पिंडदान और तर्पण।
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पिंडोपजीवी (विन्)  : पुं० [सं० पिंड-उप√जीव् (जीना)+ णिनि] भिखमंगा।
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पिंडोल  : स्त्री० [सं० पांडु] पीले रंगी की मिट्टी। पोतनी मिट्टी।
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पिंडोलि  : स्त्री० [सं०] १. मुँह से गिरे हुए अन्न के छोटे-छोटे टुकड़े। २. जूठन।
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