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पूर्ण  : वि० [सं०√पूर+क्त, त—न] १. (आधान या पात्र) जो पूरी तरह से भरा हुआ हो। जिसमें काम का कोई अवकाश या स्थान खाली न रह गया हो। जैसे—जल से पूर्ण घट। २. लाक्षणिक रूप में, किसी तत्त्व या बात से भरा हुआ पूरी तरह से युक्त। जैसे—शोक-पूर्ण समाचार, हर्ष-पूर्ण सामारोह। ३. सब प्रकार की यथेष्टता के कारण जिसमें कुछ भी अपेक्षा, अभाव या आवश्यकता न रह गई हो। जितना आवश्यक या उचित हो, उतना सब। जैसे—धन-धान्य से पूर्ण गृहस्थी या परिवार। ४. (आवश्यक या इच्छा) जिसके पूरे होने में कोई कसर या सन्देह न रह गया हो। हर प्रकार से तृप्त और संतुष्ट। जैसे—आपने मेरी सभी कामनाएँ पूर्ण कर दी। ५. सब का सब। पूरा। समूचा। सारा। समस्त। संपूर्ण। जैसे—पूर्ण योजना सफल हो गई। ६. जिसमें किसी आवश्यक अंग या संयोजक तत्त्व का ठीक अभाव न हो। हर तरह से ठीक और पूरा। जैसे—पूर्ण उपमा अलंकार। ८. (उद्देश्य या प्रयत्न) सफल। सिद्ध। जैसे—आज आपका संकल्प पूर्ण हुआ। ९. जो अपनी अवधि या सीमा के सिरे पर पहुँच गया हो। जैसे—आयु पूर्ण होना, दंड की अवधि पूर्ण होना। पुं० १. प्रचुरता। बाहुल्य। २. जल। पानी। ३. विष्णु का एक नाम। ४. बौद्ध कथाओं के अनुसार मैत्रायणी का एक पुत्र।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पूर्ण-अतीत  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. संगीत में ताल का वह स्थान जो ‘सम अतीत’ के एक मात्रा के बाद आता है। यह स्थान भी कभी-कभी सम का काम देता है।
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पूर्णक  : पुं० [सं० पूर्ण+कन्] १. मुर्गा। कुक्कुट। २. देवताओं की एक योनि। ३. दे० ‘पूर्ण’।
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पूर्ण-कलानिधि  : पुं० [कर्म० स०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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पूर्ण-काम  : वि० [ब० स०] १. जिसकी कामनाएँ पूर्ण या पूरी हो चुकी हो। २. कामना-रहित। निष्काम। पुं० परमेश्वर।
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पूर्ण-काश्यप  : पुं० [कर्म० स०] उन छः तीर्थिकों में से एक जिन्हें भगवान् बुद्ध ने शास्त्रार्थ में पराजित किया था। कहते हैं कि इसी दुःख में ये अपने गले में बालू भरा घड़ा बाँधकर डूब मरे थे।
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पूर्णकुंभ  : पुं० [कर्म० स०] १. जल से भरा हुआ घड़ा जो मांगलिक और शुभ माना जाता है। पूर्ण घट। २. घड़े के आकार का दीवार में बनाया जानेवाला छेद। ३. एक तरह का युद्ध।
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पूर्णकोशा  : स्त्री० [सं० ब० स०+टाप्] एक प्रकार की लता जो ओषधि के काम आती है।
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पूर्णकोषा  : स्त्री० [ब० स०,+टाप्] १. कचौरी। २. प्राचीन काल में जौ के आटे से बननेवाला एक प्रकार का पकवान। ३. दे० ‘पूर्णकोशा’।
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पूर्णकोष्ठा  : स्त्री० [ब० स०+टाप्] नागरमोथा।
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पूर्णगर्भा  : स्त्री० [ब० स०,+टाप्] १. वह स्त्री जिसे शीघ्र प्रसव होने की संभावना हो। वह स्त्री जिसके गर्भ के दिन पूरे हो चले हों। २. कचौरी, जिसमें पीठी आदि भरी रहती हैं। ३. पूरन-पूरी नाम का पकवान।
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पूर्णघट  : पुं०=पूर्ण-कुंभ।
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पूर्णचंद्र  : पुं० [कर्म० स०] पूर्णिमा का चन्द्रमा जो अपनी सब कलाओं से पूर्ण या युक्त रहता है।
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पूर्ण-चंद्रिका  : पुं० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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पूर्णतः  : अव्य० [सं० पूर्ण+तस्] पूरी तरह से। पूर्णतया।
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पूर्णतया  : अव्य० [सं० पूर्णता की तृ० विभक्ति का रूप] पूरी तरह से। पूण रूप से।
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पूर्णता  : स्त्री० [सं० पूर्ण+तल्+टाप्] १. पूर्ण होने की अवस्था या भाव। २. ऐसी स्थिति जिसमें किसी प्रकार का अभाव, कमी या त्रुटि न हो। (परफेक्शन)।
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पूर्ण-परिवर्तक  : पुं० [कर्म० स०] वह जीव जो अपने जीवन में अनेक बार रूप आदि बदलता हो। जैसे—कीड़े-मकोड़े, तितली, मेढक आदि।
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पूर्णपर्वेंदु  : पुं० [पूर्ण-पर्व-इंदु, ब० स०] पूर्णिमा। पूर्णमासी।
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पूर्णपात्र  : पुं० [कर्म० स०] १. वह घड़ा जो प्राचीन काल में चावलो से भरकर होम या यज्ञ के अन्त में दक्षिणा के रूप में पुरोहित को दिया जाता था। इसमें साधारणतः २५६ मुट्ठी चावल हुआ करता था। २. उक्त के आधार पर २५६ मुट्ठियों की एक नाप। ३. पुत्र-जन्म आदि शुभ अवसरों पर शुभ संवाद सुनानेवाले लोगों को बाँटे जानेवाले कपड़े और गहने।
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पूर्णप्रज्ञ  : वि० [ब० स०] १. जिसकी बुद्धि में कोई कमी या त्रुटि न हो। २. बहुत बड़ा बुद्धिमान। ३. पूर्ण ज्ञानी। पुं० पूर्ण प्रज्ञदर्शन के कर्ता मध्वाचार्य जो वैष्णव मत के संस्थापक आचार्यों में माने जाते हैं। हनुमान और भीम के बाद ये वायु के तीसरे अवतार कहे गये हैं। इनका एक नाम आनन्दतीर्थ भी है।
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पूर्णप्रज्ञदर्शन  : पुं० [ष० त०] सर्वदर्शन संग्रह के अनुसार एक दर्शन जिसके प्रवर्तक पूर्णप्रज्ञ या मध्वाचार्य हैं। इसके अधिकतर सिद्धान्त रामानुज दर्शन के सिद्धान्तों से मिलते हैं।
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पूर्णबीज  : पुं० [ब० स०] बिजौरा नींबू।
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पूर्णभद्र  : पुं० [कर्म० स०] १. स्कंद पुराण के अनुसार हरिकेश नामक यक्ष के पिता। २. एक नाग का नाम।
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पूर्णभेदी (दिन्)  : पुं० [सं०पूर्ण√भिद् (विदारण)+णिनि ] एक प्रकार का पौधा।
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पूर्णमा  : स्त्री० [सं०पूर्ण√मा (मापना)+क+टाप्] पूर्णिमा। पूर्णमासी।
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पूर्णमानस  : वि० [ब० स०] जो मन से भली भांति संतुष्ट हो।
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पूर्णमास  : स्त्री० [ब० स०] १. चन्द्रमा। २. [पूर्णमासी+अच्] प्राचीन काल में पूर्णिमा को किया जानेवाला एक तरह का यज्ञ।
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पूर्णमासी  : स्त्री० [सं० पूर्णमास+ङीष्] शुक्लपक्ष की अंतिम तिथि जिसमें चन्द्रमा अपनी सोलहों कलाओं से युक्त होता है। पूर्णिमा। पूनो।
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पूर्ण-मैत्रायनी पुत्र  : पुं० [सं० मैत्रायनी-पुत्र, ष० त०, पूर्ण-मैत्रायनी पुत्र, कर्म० स०] बुद्ध भगवान् के अनुचरों में से एक जो पश्चिम भारत के सुरपाक नामक स्थान में रहते थे।
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पूर्णयोग  : पुं० [ब० स०] प्राचीन भारत में एक प्रकार का बाहुयुद्ध। भीम और जरासंघ में यही बाहु-युद्ध हुआ था।
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पूर्णरथ  : पुं० [ब० स०] बहुत कुशल और पक्का योद्धा।
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पूर्णलक्ष्मीक  : वि० [ब० स०] लक्ष्मी या धन से भली भाँति सम्पन्न।
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पूर्णवर्मा (र्मन्)  : पुं० [सं०] महाराज अशोक के वंश के अंतिम मगध सम्राट। गौड़राज शशांक द्वारा बोधिवृक्ष के नष्ट किये जाने पर इन्होंने उसे फिर से जीवित कराया था।
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पूर्णवर्ष  : वि० [ब० स०] बीस वर्ष की अवस्था वाला नौजवान।
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पूर्णविराम  : पुं० [कर्म० स०] लिखाई, छपाई आदि में एक प्रकार का चिह्र जो वाक्य के अन्त में उसकी पूर्णता या समाप्ति जतलाने के लिए खड़ी पाई के रूप में लगाया जाता है। (फुल-स्टॉफ)
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पूर्णविषम  : पुं० [कर्म० स०] संगीत में ताल का एक स्थान जो कभी कभी सम का काम देता है।
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पूर्णवैशानिक  : पुं० [कर्म० स०] वह बौद्ध जिसकी आस्था सर्वशून्य तत्त्ववाद में हो।
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पूर्णशैल  : पुं० [कर्म० स०] योगिनी तंत्र के अनुसार उल्लिखित एक पर्वत का नाम।
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पूर्ण-श्री  : वि० [ब० स०] प्रतिष्ठित, सम्पन्न तथा सुखी (व्यक्ति)।
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पूर्णहोम  : पुं० [कर्म० स०] पूर्णाहुति। (दे०)
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पूर्णांक  : पुं० [पूर्ण-अंक, कर्म० स०] १. पूरी संख्या। २. गणित में अविभक्त संख्या। ३. किसी प्रश्न-पत्र के लिए निर्धारित अंक। (फुल मार्क्स)।
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पूर्णांजलि  : वि० [पूर्ण-अंजलि, ब० स०] जितना अँजुली में आ सके, उतना। अंजुलि भर।
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पूर्णा  : स्त्री० [सं० पूर्ण+टाप्] १. चंद्रमा की पंद्रहवी कला। २. पंचमी, दसमी, अमावस और पूर्णमासी की तिथियाँ। ३. दक्षिण भारत की एक नदी।
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पूर्णाघात  : पुं० [पूर्ण-आघात, कर्म० स०] संगीत में ताल का वह स्थान जो अनाघात के उपरांत एक मात्रा के बाद आता है। कभी-कभी वह स्थान भी सम का काम देता है।
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पूर्णानंद  : पुं० [पूर्ण-आनन्द, ब० स०] परमेश्वर।
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पूर्णाभिलाष  : वि० [पूर्ण-अभिलाष, ब० स०] १. जिसकी अभिलाषा पूरी हो चुकी हो। २. तृप्त। संतुष्ट।
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पूर्णाभिषिक्त  : भू० कृ० [पूर्ण-अभिषिक्त, कर्म० स०] जिसका पूर्णाभिषेक संस्कार हो चुका हो। पुं० तांत्रिकों और शाक्तों का एक भेद या वर्ग।
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पूर्णाभिषेक  : पुं० [पूर्ण-अभिषेक, कर्म० स०] वाममार्गियों का एक तांत्रिक संस्कार जो किसी नये साधन के गुरु द्वारा दीक्षित होने के समय किया जाता है। अभिषेक। महाभिषेक।
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पूर्णामुता  : स्त्री० [पूर्ण-अमृता, कर्म० स०] चन्द्रमा की सोलहवीं कला।
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पूर्णायु (स्)  : वि० [पूर्ण-आयुस्, ब० स०] जिसने पूरी अर्थात् सौ वर्षो की आयु पाई हो। स्त्री० [पूर्ण-अवतार, कर्म० स०] १. पूरी आयु। सारा जीवन। २. सौ वर्षों की आयु।
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पूर्णावतार  : पुं० [पूर्ण-अवतार, कर्म० स०] अंशावतार से भिन्न ऐसा अवतार जो किसी देवता की संपूर्ण कलाओं से युक्त हो। सोलहों कलाओं से युक्त अवतार।
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पूर्णाशा  : स्त्री० [पूर्ण-आशा, ब० स०+टाप्] महाभारत में उल्लिखित एक नदी।
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पूर्णाहुति  : स्त्री० [पूर्ण-आहुति, कर्म० स०] १. यज्ञ की समाप्ति पर दी जानेवाली आहुति। २. लाक्षणिक अर्थ में किसी कार्य की समाप्ति के समय होनेवाला अन्तिम कृत्य।
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पूर्णि  : स्त्री० [सं०√पू+णिङ्] पूर्णिमा।
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पूर्णिका  : स्त्री० [सं० पूर्णि+कन्+टाप्] एक प्रकार की चिड़िया जिसकी चोंच का दोहरा होना माना जाता है। नासाच्छिनी पक्षी।
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पूर्णिमांत  : पुं० [सं०] गौण चांद्रमास का दूसरा नाम।
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पूर्णिमा  : स्त्री० [सं० पूर्णि√मा (मापना)+क+टाप्] चांद्रमास के शुक्ल पक्ष की अन्तिम तिथि जिसमें चन्द्रमा अपने पूरे मंडल से उदय होता है। पूर्णमासी।
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पूर्णमासी  : स्त्री०=पूर्णिमा।
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पूर्णेंदु  : पुं० [पूर्ण-इन्दु, कर्म० स०] पूर्णिमा का चन्द्रमा जो अपनी सोलहों कलाओं से युक्त होता है। पूर्णचन्द्र।
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पूर्णोत्कट  : पुं० [पूर्ण-उत्कट, कर्म० स०] मार्कडेय पुराण में उल्लिखित एक पूर्व देशीय पर्वत।
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पूर्णोदरा  : स्त्री० [पूर्ण-उदर, ब० स०, टाप्] एक देवी।
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पूर्णोपमा  : पुं० [पूर्ण-उपमा, कर्म० स०] उपमा अलंकार के दो मुख्य भेदों में से पहला जिसमें उपमेय, उपमान, वाचक और धर्म चारों अंग प्रकट रूप से वर्तमान रहते हैं। यथा—सुभग सुधाधर तुल्य मुख, मधुर, सुधा से बैन—पद्याकर। विशेष—इसके आर्थी और श्रौती दो भेद होते हैं।
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पूर्ण  : वि० [सं०√पूर+क्त, त—न] १. (आधान या पात्र) जो पूरी तरह से भरा हुआ हो। जिसमें काम का कोई अवकाश या स्थान खाली न रह गया हो। जैसे—जल से पूर्ण घट। २. लाक्षणिक रूप में, किसी तत्त्व या बात से भरा हुआ पूरी तरह से युक्त। जैसे—शोक-पूर्ण समाचार, हर्ष-पूर्ण सामारोह। ३. सब प्रकार की यथेष्टता के कारण जिसमें कुछ भी अपेक्षा, अभाव या आवश्यकता न रह गई हो। जितना आवश्यक या उचित हो, उतना सब। जैसे—धन-धान्य से पूर्ण गृहस्थी या परिवार। ४. (आवश्यक या इच्छा) जिसके पूरे होने में कोई कसर या सन्देह न रह गया हो। हर प्रकार से तृप्त और संतुष्ट। जैसे—आपने मेरी सभी कामनाएँ पूर्ण कर दी। ५. सब का सब। पूरा। समूचा। सारा। समस्त। संपूर्ण। जैसे—पूर्ण योजना सफल हो गई। ६. जिसमें किसी आवश्यक अंग या संयोजक तत्त्व का ठीक अभाव न हो। हर तरह से ठीक और पूरा। जैसे—पूर्ण उपमा अलंकार। ८. (उद्देश्य या प्रयत्न) सफल। सिद्ध। जैसे—आज आपका संकल्प पूर्ण हुआ। ९. जो अपनी अवधि या सीमा के सिरे पर पहुँच गया हो। जैसे—आयु पूर्ण होना, दंड की अवधि पूर्ण होना। पुं० १. प्रचुरता। बाहुल्य। २. जल। पानी। ३. विष्णु का एक नाम। ४. बौद्ध कथाओं के अनुसार मैत्रायणी का एक पुत्र।
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पूर्ण-अतीत  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. संगीत में ताल का वह स्थान जो ‘सम अतीत’ के एक मात्रा के बाद आता है। यह स्थान भी कभी-कभी सम का काम देता है।
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पूर्णक  : पुं० [सं० पूर्ण+कन्] १. मुर्गा। कुक्कुट। २. देवताओं की एक योनि। ३. दे० ‘पूर्ण’।
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पूर्ण-कलानिधि  : पुं० [कर्म० स०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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पूर्ण-काम  : वि० [ब० स०] १. जिसकी कामनाएँ पूर्ण या पूरी हो चुकी हो। २. कामना-रहित। निष्काम। पुं० परमेश्वर।
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पूर्ण-काश्यप  : पुं० [कर्म० स०] उन छः तीर्थिकों में से एक जिन्हें भगवान् बुद्ध ने शास्त्रार्थ में पराजित किया था। कहते हैं कि इसी दुःख में ये अपने गले में बालू भरा घड़ा बाँधकर डूब मरे थे।
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पूर्णकुंभ  : पुं० [कर्म० स०] १. जल से भरा हुआ घड़ा जो मांगलिक और शुभ माना जाता है। पूर्ण घट। २. घड़े के आकार का दीवार में बनाया जानेवाला छेद। ३. एक तरह का युद्ध।
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पूर्णकोशा  : स्त्री० [सं० ब० स०+टाप्] एक प्रकार की लता जो ओषधि के काम आती है।
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पूर्णकोषा  : स्त्री० [ब० स०,+टाप्] १. कचौरी। २. प्राचीन काल में जौ के आटे से बननेवाला एक प्रकार का पकवान। ३. दे० ‘पूर्णकोशा’।
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पूर्णकोष्ठा  : स्त्री० [ब० स०+टाप्] नागरमोथा।
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पूर्णगर्भा  : स्त्री० [ब० स०,+टाप्] १. वह स्त्री जिसे शीघ्र प्रसव होने की संभावना हो। वह स्त्री जिसके गर्भ के दिन पूरे हो चले हों। २. कचौरी, जिसमें पीठी आदि भरी रहती हैं। ३. पूरन-पूरी नाम का पकवान।
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पूर्णघट  : पुं०=पूर्ण-कुंभ।
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पूर्णचंद्र  : पुं० [कर्म० स०] पूर्णिमा का चन्द्रमा जो अपनी सब कलाओं से पूर्ण या युक्त रहता है।
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पूर्ण-चंद्रिका  : पुं० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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पूर्णतः  : अव्य० [सं० पूर्ण+तस्] पूरी तरह से। पूर्णतया।
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पूर्णतया  : अव्य० [सं० पूर्णता की तृ० विभक्ति का रूप] पूरी तरह से। पूण रूप से।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पूर्णता  : स्त्री० [सं० पूर्ण+तल्+टाप्] १. पूर्ण होने की अवस्था या भाव। २. ऐसी स्थिति जिसमें किसी प्रकार का अभाव, कमी या त्रुटि न हो। (परफेक्शन)।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पूर्ण-परिवर्तक  : पुं० [कर्म० स०] वह जीव जो अपने जीवन में अनेक बार रूप आदि बदलता हो। जैसे—कीड़े-मकोड़े, तितली, मेढक आदि।
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पूर्णपर्वेंदु  : पुं० [पूर्ण-पर्व-इंदु, ब० स०] पूर्णिमा। पूर्णमासी।
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पूर्णपात्र  : पुं० [कर्म० स०] १. वह घड़ा जो प्राचीन काल में चावलो से भरकर होम या यज्ञ के अन्त में दक्षिणा के रूप में पुरोहित को दिया जाता था। इसमें साधारणतः २५६ मुट्ठी चावल हुआ करता था। २. उक्त के आधार पर २५६ मुट्ठियों की एक नाप। ३. पुत्र-जन्म आदि शुभ अवसरों पर शुभ संवाद सुनानेवाले लोगों को बाँटे जानेवाले कपड़े और गहने।
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पूर्णप्रज्ञ  : वि० [ब० स०] १. जिसकी बुद्धि में कोई कमी या त्रुटि न हो। २. बहुत बड़ा बुद्धिमान। ३. पूर्ण ज्ञानी। पुं० पूर्ण प्रज्ञदर्शन के कर्ता मध्वाचार्य जो वैष्णव मत के संस्थापक आचार्यों में माने जाते हैं। हनुमान और भीम के बाद ये वायु के तीसरे अवतार कहे गये हैं। इनका एक नाम आनन्दतीर्थ भी है।
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पूर्णप्रज्ञदर्शन  : पुं० [ष० त०] सर्वदर्शन संग्रह के अनुसार एक दर्शन जिसके प्रवर्तक पूर्णप्रज्ञ या मध्वाचार्य हैं। इसके अधिकतर सिद्धान्त रामानुज दर्शन के सिद्धान्तों से मिलते हैं।
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पूर्णबीज  : पुं० [ब० स०] बिजौरा नींबू।
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पूर्णभद्र  : पुं० [कर्म० स०] १. स्कंद पुराण के अनुसार हरिकेश नामक यक्ष के पिता। २. एक नाग का नाम।
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पूर्णभेदी (दिन्)  : पुं० [सं०पूर्ण√भिद् (विदारण)+णिनि ] एक प्रकार का पौधा।
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पूर्णमा  : स्त्री० [सं०पूर्ण√मा (मापना)+क+टाप्] पूर्णिमा। पूर्णमासी।
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पूर्णमानस  : वि० [ब० स०] जो मन से भली भांति संतुष्ट हो।
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पूर्णमास  : स्त्री० [ब० स०] १. चन्द्रमा। २. [पूर्णमासी+अच्] प्राचीन काल में पूर्णिमा को किया जानेवाला एक तरह का यज्ञ।
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पूर्णमासी  : स्त्री० [सं० पूर्णमास+ङीष्] शुक्लपक्ष की अंतिम तिथि जिसमें चन्द्रमा अपनी सोलहों कलाओं से युक्त होता है। पूर्णिमा। पूनो।
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पूर्ण-मैत्रायनी पुत्र  : पुं० [सं० मैत्रायनी-पुत्र, ष० त०, पूर्ण-मैत्रायनी पुत्र, कर्म० स०] बुद्ध भगवान् के अनुचरों में से एक जो पश्चिम भारत के सुरपाक नामक स्थान में रहते थे।
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पूर्णयोग  : पुं० [ब० स०] प्राचीन भारत में एक प्रकार का बाहुयुद्ध। भीम और जरासंघ में यही बाहु-युद्ध हुआ था।
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पूर्णरथ  : पुं० [ब० स०] बहुत कुशल और पक्का योद्धा।
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पूर्णलक्ष्मीक  : वि० [ब० स०] लक्ष्मी या धन से भली भाँति सम्पन्न।
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पूर्णवर्मा (र्मन्)  : पुं० [सं०] महाराज अशोक के वंश के अंतिम मगध सम्राट। गौड़राज शशांक द्वारा बोधिवृक्ष के नष्ट किये जाने पर इन्होंने उसे फिर से जीवित कराया था।
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पूर्णवर्ष  : वि० [ब० स०] बीस वर्ष की अवस्था वाला नौजवान।
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पूर्णविराम  : पुं० [कर्म० स०] लिखाई, छपाई आदि में एक प्रकार का चिह्र जो वाक्य के अन्त में उसकी पूर्णता या समाप्ति जतलाने के लिए खड़ी पाई के रूप में लगाया जाता है। (फुल-स्टॉफ)
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पूर्णविषम  : पुं० [कर्म० स०] संगीत में ताल का एक स्थान जो कभी कभी सम का काम देता है।
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पूर्णवैशानिक  : पुं० [कर्म० स०] वह बौद्ध जिसकी आस्था सर्वशून्य तत्त्ववाद में हो।
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पूर्णशैल  : पुं० [कर्म० स०] योगिनी तंत्र के अनुसार उल्लिखित एक पर्वत का नाम।
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पूर्ण-श्री  : वि० [ब० स०] प्रतिष्ठित, सम्पन्न तथा सुखी (व्यक्ति)।
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पूर्णहोम  : पुं० [कर्म० स०] पूर्णाहुति। (दे०)
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पूर्णांक  : पुं० [पूर्ण-अंक, कर्म० स०] १. पूरी संख्या। २. गणित में अविभक्त संख्या। ३. किसी प्रश्न-पत्र के लिए निर्धारित अंक। (फुल मार्क्स)।
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पूर्णांजलि  : वि० [पूर्ण-अंजलि, ब० स०] जितना अँजुली में आ सके, उतना। अंजुलि भर।
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पूर्णा  : स्त्री० [सं० पूर्ण+टाप्] १. चंद्रमा की पंद्रहवी कला। २. पंचमी, दसमी, अमावस और पूर्णमासी की तिथियाँ। ३. दक्षिण भारत की एक नदी।
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पूर्णाघात  : पुं० [पूर्ण-आघात, कर्म० स०] संगीत में ताल का वह स्थान जो अनाघात के उपरांत एक मात्रा के बाद आता है। कभी-कभी वह स्थान भी सम का काम देता है।
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पूर्णानंद  : पुं० [पूर्ण-आनन्द, ब० स०] परमेश्वर।
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पूर्णाभिलाष  : वि० [पूर्ण-अभिलाष, ब० स०] १. जिसकी अभिलाषा पूरी हो चुकी हो। २. तृप्त। संतुष्ट।
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पूर्णाभिषिक्त  : भू० कृ० [पूर्ण-अभिषिक्त, कर्म० स०] जिसका पूर्णाभिषेक संस्कार हो चुका हो। पुं० तांत्रिकों और शाक्तों का एक भेद या वर्ग।
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पूर्णाभिषेक  : पुं० [पूर्ण-अभिषेक, कर्म० स०] वाममार्गियों का एक तांत्रिक संस्कार जो किसी नये साधन के गुरु द्वारा दीक्षित होने के समय किया जाता है। अभिषेक। महाभिषेक।
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पूर्णामुता  : स्त्री० [पूर्ण-अमृता, कर्म० स०] चन्द्रमा की सोलहवीं कला।
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पूर्णायु (स्)  : वि० [पूर्ण-आयुस्, ब० स०] जिसने पूरी अर्थात् सौ वर्षो की आयु पाई हो। स्त्री० [पूर्ण-अवतार, कर्म० स०] १. पूरी आयु। सारा जीवन। २. सौ वर्षों की आयु।
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पूर्णावतार  : पुं० [पूर्ण-अवतार, कर्म० स०] अंशावतार से भिन्न ऐसा अवतार जो किसी देवता की संपूर्ण कलाओं से युक्त हो। सोलहों कलाओं से युक्त अवतार।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पूर्णाशा  : स्त्री० [पूर्ण-आशा, ब० स०+टाप्] महाभारत में उल्लिखित एक नदी।
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पूर्णाहुति  : स्त्री० [पूर्ण-आहुति, कर्म० स०] १. यज्ञ की समाप्ति पर दी जानेवाली आहुति। २. लाक्षणिक अर्थ में किसी कार्य की समाप्ति के समय होनेवाला अन्तिम कृत्य।
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पूर्णि  : स्त्री० [सं०√पू+णिङ्] पूर्णिमा।
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पूर्णिका  : स्त्री० [सं० पूर्णि+कन्+टाप्] एक प्रकार की चिड़िया जिसकी चोंच का दोहरा होना माना जाता है। नासाच्छिनी पक्षी।
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पूर्णिमांत  : पुं० [सं०] गौण चांद्रमास का दूसरा नाम।
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पूर्णिमा  : स्त्री० [सं० पूर्णि√मा (मापना)+क+टाप्] चांद्रमास के शुक्ल पक्ष की अन्तिम तिथि जिसमें चन्द्रमा अपने पूरे मंडल से उदय होता है। पूर्णमासी।
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पूर्णमासी  : स्त्री०=पूर्णिमा।
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पूर्णेंदु  : पुं० [पूर्ण-इन्दु, कर्म० स०] पूर्णिमा का चन्द्रमा जो अपनी सोलहों कलाओं से युक्त होता है। पूर्णचन्द्र।
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पूर्णोत्कट  : पुं० [पूर्ण-उत्कट, कर्म० स०] मार्कडेय पुराण में उल्लिखित एक पूर्व देशीय पर्वत।
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पूर्णोदरा  : स्त्री० [पूर्ण-उदर, ब० स०, टाप्] एक देवी।
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पूर्णोपमा  : पुं० [पूर्ण-उपमा, कर्म० स०] उपमा अलंकार के दो मुख्य भेदों में से पहला जिसमें उपमेय, उपमान, वाचक और धर्म चारों अंग प्रकट रूप से वर्तमान रहते हैं। यथा—सुभग सुधाधर तुल्य मुख, मधुर, सुधा से बैन—पद्याकर। विशेष—इसके आर्थी और श्रौती दो भेद होते हैं।
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