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प्रतीप  : वि० [सं० प्रति-आप्, ब० स०,+अ, ईत्व] १. क्रम के विचार से उलटा। वलोम। २. प्रतिकूल। विरुद्ध। ३. पिछड़ा हुआ। ४. पीछे की ओर चलने या होने वाला। जैसे—प्रतीप गति। ५. रुचि के विरुद्ध। अप्रिय। ६. हठी। ७. बाधक। ८. विरोधी। ९. उद्दंड। उद्घत। क्रि० वि० विपरीत अवस्था में। उलटे। उदा०—फाड़ सुनहली साड़ी उसकी तू हँसती क्यों अरी प्रतीप।—प्रसाद। पुं० १. एक प्रसिद्ध राजा जो शान्तनु के पिता और भीष्म के प्रपिता थे। २. साहित्य में एक प्रसिद्ध अलंकार जिसमें प्रसिद्ध उपमान का अपकर्ष दिखलाने के लिए उसे उपमेय रूप में वर्णित किया जाता और इस प्रकार वर्णनीय उपमेय का निरादर किया जाता है। इसके पाँच भेद माने गये है जो प्रथम, द्वितीय विशेषणों से युक्त होते हैं।
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प्रतीपक  : वि० [सं० प्रतीप√कन्] विरुद्ध। प्रतिकूल।
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प्रतीप-गमन  : पुं० [सं० कर्म० स०] पीछे की ओर जाना।
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प्रतीप-गामी (मिन्)  : वि० [सं० प्रतीप√गम्+णिनि] पीछे की ओर जानेवाला।
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प्रतीप-दर्शनी  : स्त्री० [सं० प्रतीप√दृश, (देखना)+णिनि] औरत। स्त्री।
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प्रतीपादन  : पुं० [सं०] १. लौटकर फिर पहले स्थान पर आना। प्रतिगमन। २. मनोविज्ञान में, वह स्थिति जिसमें किसी अप्रिय या कष्टदायक मनोदशा से छूटकर मन फिर अपनी पहलेवाली स्वाभाविक स्थिति में आता है। (रिग्रेशन)।
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प्रतीपी (पिन्)  : वि० [सं० प्रतीत+इनि] प्रतिकूल। विरुद्ध।
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प्रतीपोक्ति  : स्त्री० [सं० प्रतीप-उक्ति, कर्म० स०] किसी के कथन के विरुद्ध कही जानेवाली बात। खंडन।
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