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प्रबंध  : पुं० [सं० प्र√बंध् (बाँधना)+घञ्] १. वह चीज जिससे कोई दूसरी चीज बाँधी जाय। बंधन। जैसे—डोरी, रस्सी आदि। २. अच्छा पक्का और श्रेष्ठ बंधन। ३. ठीक तरह से निरंतर चलता रहने वाला कम। जैसे—प्रबन्ध वर्षा अर्थात् लगातार होती रहनेवाली वर्षा। ४. ऐसी रचना जिसमें सभी अंग, बातें या विषय उपयुक्त स्थानों पर रखकर और ठीक तरह से बाँध या सजाकर रखे गये हों। अच्छी और ठीक तरहग से तैयार की हुई चीज। ५. प्राचीन भारतीय साहित्य में काव्य के दो भेदों में से एक (दूसरा भेद निर्बध कहलाता था) जिसमें कोई कथा या घटना कमबद्ध रूप में कही गई हो। खंडकाव्य और महाकाव्य इसी के उपभेद हैं। ६. भारतीय संगीत में, शास्त्रीय नियमों के अनुसार राग-रागिनियाँ गाने की वह प्रथा (खयाल, ध्रुपद आदि के गाने की प्रथा से भिन्न) जो मध्य युग के साधु-संतों में प्रचलित थी। ७. आज-कल उच्च श्रेणी के विचारशील विद्यार्थियों की वह कृति या रचना जो किसी विशिष्ट विशय या उसके किसी अंग-उपांग के संबंध में यथेष्ट अनुसंधान और छानबीन करके और उसके संबंध में अपना नया तथा स्वत्रंत मत प्रतिपादित करते हुए प्रस्तुत की गई हो। (थीसिस) ८. आर्थिक, राजनीतिक तथा समाजिक क्षेत्रों में घर-गृहस्थी, निर्माण-शालाओं या संस्थाओं के विभिन्न कार्यों तथा आयोजनों का अच्छी तरह से तथा कुशलतापूर्वक किया जानेवाला संचालन। (मैनेजमेंट)। ९. किसी तरह के काम के लिए की जानेवाली कोई योजना। जैसे—कपट-प्रबंध अर्थात् किसी को फँसाने के लिए बिछाया जानेवाला जाल।
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प्रबंध-अभिकर्ता  : पुं० [ष० त०] किसी व्यावसायिक संस्था के किसी अभिकरण का मुख्य प्रबंधकर्ता। (मैनेजिंग एजेंट)
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प्रबंधक  : वि० [सं० प्र√बन्ध्+णिच्+ण्वुल्—अक] प्रबन्ध या व्यवस्था करनेवाला। पुं० वह जो किसी कार्य, कार्यालय या विभाग के कार्यों का संचालन करता हो। व्यवस्थापक। (मैनेजर)
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प्रबंधकल्पना  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. साहित्यकि प्रबन्ध की रचना। २. वह साहित्यिक रचना जो मूलतः किसी घटना या तथ्य पर आश्रित हो और जिसमें कवि या लेखक ने अपनी कल्पना-शक्ति से भी बहुत सी बातें बढ़ाई हों।
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प्रबंधन  : पुं० [सं० प्र√बन्ध्+ल्युट्—अन] १. किसी काम या बात का प्रबन्ध अर्थात् व्यवस्था करने की किया या भाव। २. साहित्यिक रचना का ढंग, प्रकार या शैली। जैसे—कबीर या तुलसी की रचनाओं का प्रबन्धन।
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प्रबंध-परिव्यय  : पुं० [ष० त०] वह परिव्यय या खर्च जो किसी काम का प्रबन्ध करने के बदले में किसी को दिया जाय। (मैनेजमेन्ट चार्जेज)
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प्रबंध-परिषद्  : स्त्री० [ष० त०] वह परिषद् या सभा-समिति जो किसी बड़े कार्य या संस्था का परिचालन और व्यवस्था करती हो। (गवर्निंग बॉडी)
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प्रबंध-व्यय  : पुं० [ष० त०] वह व्यय या खर्च जो किसी काम या बात का प्रबन्ध करने में लगे। (कॉस्ट ऑफ मैनेजमेन्ट)
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प्रबंध-संपादक  : पुं० [ष० त०] पत्र, पत्रिकाओं के संपादकीय विभाग का प्रबंध करनेवाला संपादक। (मैनेजिंग एडिटर)
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प्रबंध-समिति  : स्त्री० [ष० त०] किसी बड़ी संस्था, सभा आदि के चुने हुए लोगों की वह समिति जो उसकी सब बातों का प्रबन्ध या व्यवस्था करती हो। (मैनेजिंग कमिटी)
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प्रबंधार्थ  : पुं० [प्रबंध-अर्थ, ष० त०] वह विषय जिसका उल्लेख या विचार किसी साहित्यिक रचना में हुआ हो।
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प्रबंधी (धिन्)  : वि० [स० प्रबंध+इनि]=प्रबंधक। जैसे—प्रबंधी संचालक।
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प्रबंधी संचालक  : पुं० [सं० व्यस्त पद] किसी बहुत बड़ी संस्था के विभिन्न संचालकों में से वह व्यक्ति जिस पर उसके प्रबंध आदि का भी सब भार हो। (मैनेजिंग डाइरेक्टर)
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