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शब्द का अर्थ

प्रयोग  : पुं० [सं० प्र√युज्+घञ्] १. किसी चीज या बात को आवश्यकता अथवा अभ्यासवश काम में लाना। इस्तेमाल। व्यवहार। (यूज़) जैसे—(क) वाक्य में शब्दों का किया जानेवाला प्रयोग। (ख) जाड़ें में गरम कपड़ों का किया जानेवाला प्रयोग। (ग) किसी काम या बात के लिए अधिकार या बल का किया जानेवाला प्रयोग। २. आज-कल वैज्ञानिक क्षेत्रों में, किसी प्रकार का अनुसंधान करने या कोई नई बात ढूँढ़ निकालने के लिए की जानेवाली कोई परीक्षणात्मक क्रिया अथवा उसका साधन। ३. जो तथ्य उक्त प्रकार के अनुसंधान से सिद्ध हो चुका हो, उसे दूसरों को समझाने के लिए की जानेवाली वह क्रिया जिससे वह तथ्य ठीक और मान्य सिद्ध होता है। प्रत्यक्ष रूप से कोई काम या बात प्रमाणित या सिद्ध करने की क्रिया। ४. वह क्रिया जो यह जानने के लिए कि जाती है कि कोई काम, चीज या बात ठीक तरह से पूरी उतर सकेगी या नहीं। जाँच। परीक्षण। (एक्सपेरिमेन्ट, उक्त तीनों अर्थों के लिए) ५. किसी प्रकार कि क्रिया का प्रत्यक्ष रूप से होनेवाला साधन। ६. ठीक तरह से काम करने का ढंग या विधि। ७. प्राचीन भारतीय राजनीति में साम, दाम, दंड और भेद की नीति का किया जानेवाला उपयोग या व्यवहार। ८. तंत्रशास्त्र में, वह पूजा-पाठ जो किसी विशिष्ट उद्देश्य की सिद्धि के लिए नियमित रूप से कुछ समय तक विधिपूर्वक किया जाता है। उच्चाटन, मारण, मोहन आदि के लिए किये जानेवाले तांत्रिक उपचार। ९. वैद्यक में, रोगी का ऐसा उपचार या चिकित्सा जो उसके देश, काल, शारीरिक स्थिति आदि का ध्यान रखते हुए की जाती है। १॰. व्याकरण में, कर्ता, कर्म अथवा कियार्थक संज्ञा के लिंग, वचन आदि के अनुसार प्रयुक्त होनेवाला क्रिया-पद की संज्ञा के लिंग, वचन आदि के अनुसार प्रयुक्त होनेवाला क्रिया-पद की संज्ञा जो कर्ता के अनुसार होने पर कर्तृ प्रयोग, कम के अनुसार होने पर कर्माणि प्रयोग और भाव के अनुसार होने पर भावे प्रयोग कहलाता है। ११. साहित्य में, रुपकों आदि का अभिनय। १२. तर्क-शास्त्र में अनुमान के पाँचों अवयवों का कथन या प्रतिपादन। १५. वह उपकरण जिससे कोई काम होता हो। १६. वैदिक युग में यज्ञ आदि कर्मों के अनुष्ठान का बोध करानेवाली विधि। पद्धति १७. धार्मिक ग्रन्थ या शास्त्र। १८. प्राचीन भारतीय लोक-व्यवहार में अपनी आय बढ़ाने के लिए लोगों को सूद पर ऋण देने का व्यवसाय। १९. कार्य का अनुष्ठान या आरम्भ। २॰. तरकीब। युक्ति। २१. उदाहरण। दृष्टांट। २२. परिणाम। फल। २३. उपहार। भेट। २४. इंद्रजाल। २५. घोड़ा।
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प्रयोगतः (तस्)  : अव्य० [सं० प्रयोग+तस्] प्रयोग द्वारा। परिणामरूप में। अनुसार। कार्यतः।
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प्रयोगवादी(दिन्)  : वि० [सं० प्रयोगवाद+इनि] प्रयोगवाद-सम्बन्धी। प्रयोगवाद का। पुं० वह जो प्रयोगवाद का अनुयायी, पोषक या समर्थक हो।
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प्रयोग-शाला  : स्त्री० [ष० त०] वह स्थान जहाँ पदार्थ-विज्ञान, रसायन शास्त्र आदि-विषयक तथ्यों को समझने, जानने या नई बातों का पता लगाने की दृष्टि से विविध प्रयोग किये जाते हों। (लेबोरेटरी)
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प्रयोगतिशय  : पुं० [सं० प्रयोग-अतिशय, ष० त०] साहित्य में, रूपक की पाँच प्रकार की प्रस्तावनाओं में से एक जिसमें सूत्रधार प्रस्तावना की समाप्ति होते होते किसी नट या पात्र को मंच की ओर आते हुए देखकर यह कहता हुआ प्रस्थान करता हूँ—अरे...वह तो आ रहा है या आ पहुँचा।
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प्रयोगार्थ  : पुं० [सं० प्रयोग-अर्थ, ष० त०] मुख्य कार्य की सिद्धि के लिए किया जानेवाला गौण कार्य।
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प्रयोगार्ह  : वि० [सं० प्रयोग√अर्ह (योग्य होना)+अच्] जिसका प्रयोग किया जा सके। प्रयोग के योग्य।
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प्रयोगी (गिन्)  : वि० [सं० प्रयोहस+इनि] १. प्रयोग करनेवाला प्रयोगकर्ता। २. प्रेरक। ३. जिसके सामने कोई उद्देश्य हो।
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प्रयोग्य  : पुं० [सं० प्र√युज्+ण्यत्] (गाड़ी में जोता जानेवाला) घोड़ा। वि० प्रयोग में आने या लाये जाने के योग्य।
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