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प्रस्तार  : पुं० [सं० प्र√स्तृ+घञ्] १. फैलाव। विस्तार। २. अधिकता। ३. तह। परत। ४. सीढ़ी। ५. समतल स्थान। ६. ऐसा मैदान जिसमें दूर तक घास की घास हो। (लॉन) ७. घास-फूस, पत्तियों आदि का बिछौना। ८. छंदः शास्त्र में नौ प्रत्ययों में से पहला प्रत्यय जिसकी सहायता से यह जाना जाता है कि किसी मात्रिक या वर्णिक छंद के कितने भेद या रूप हो सकते हैं। इसी आधार पर इसके ये दो भेद होते हैं—मात्रिक प्रस्तार और वर्णिक प्रस्तार। ९. अंकों, वस्तुओं आदि के पंक्तिबद्ध समूहों या वर्गों के क्रम या विन्यास में संगत और संभव परिवर्तन करना। (परम्युटेशन)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
प्रस्तार-पंक्ति  : स्त्री० [मयू० स०] एक प्रकार का वैदिक छंद जो पंक्ति छंद का एक भेद है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
प्रस्तारी (रिन्)  : वि० [सं० प्र√स्तृ+णिनि] फैलने या फैलानेवाल (समास में)। पुं० एक नेत्र रोग।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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