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प्रस्ताव  : पुं० [सं० प्र√स्तु (स्तुति)+घञ्] १. आरंभ। शुरू। २. विषय के आरंभ में परिचय देने के लिए कही जानेवाली बात। प्रस्तावना। प्राक्कथन। ३. किसी प्रसंग या विषय की छिड़ी हुई बात। चर्चा। ४. प्रकरण। विषय। ५.उपयुक्त समय। अवसर। मौका। ६. सामवेद का एक अंश जो प्रस्तोता नामक ऋत्विक द्वारा गाया जाता था। ७. पहली भेंट या मुलाकात। ८. आज-कल मुख्य रूप से (क) वह बात जो किसी के सामने इस उद्देश्य से विचारार्थ रखी जाय कि यदि वह उसे उपयुक्त समझे तो मान ले और उसके अनुसार कार्य करे। (ऑफर, प्रोपोज़ल) जैसे—मेरा तो यही प्रस्ताव है कि लोग न्यायालय में न जाकर पंचायत से ही इसका निर्णय करा लें। (ख) उक्त का वह रूप जो किसी संस्था या सभा के सदस्यों के सामने इसलिए विचारार्थ रखा जाता है कि यदि अधिकतर सदस्य मान लें तो उसी के अनुसार भविष्य में काम हुआ करे। (मोशन) जैसे—तक घटाने या बढ़ाने का प्रस्ताव।
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प्रस्तावक  : वि० [सं० प्र√स्तु+णिच्+ण्वुल्—अक] प्रस्ताव करनेवाला।
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प्रस्तावन  : वि० [सं० प्र√स्तु+णिच्+ल्युट्—अन] [भू० कृ० प्रस्तावित] प्रस्ताव करने की क्रिया या भाव।
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प्रस्तावना  : स्त्री० [सं० प्र√स्तु+णिच्+युच्-अन,+टाप्] १. आरंभ। २. प्रस्ताव। ३. वह आरंभिक कथन या वक्तव्य जो किसी विषय का विस्तारपूर्वक वर्णन करने से पहले उसके संबंध की कुछ मुख्य बाते बतलाने के लिए हो। उपोद्घात। प्राक्कथन। भूमिका। (इन्ट्रोडक्शन)
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प्रस्तावित  : भू० कृ० [सं० प्र√स्तु+णिच्+क्त] जिसके लिए या जिसके विषय में प्रस्ताव हुआ हो या किया गया हो।
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प्रस्ताविती  : पुं० [सं० प्रस्तावित से] वह जिसके सामने कोई झगड़ा निपटाने या समझौता करने के लिए कोई नया प्रस्ताव रखा जाय। (ऑफरी)
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प्रस्ताव्य  : वि० [सं० प्र√स्तु+णिच्+यत्] १. जो प्रस्ताव के रूप में उपस्थित किया जाने को हो अथवा किये जाने के योग्य हो। २. जिसके संबंध में प्रस्ताव किया जा सके या करना उचित हो।
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