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प्राप्ति  : स्त्री० [सं० प्र√आप्+क्तिन्] १. प्राप्त होने अर्थात् अपने अधिकार या हाथ में आने या मिलने की क्रिया, अवस्था या भाव। हासिल होना। पाया जाना। मिलना। उपलब्धि। जैसे—धन या पत्र की प्राप्ति। २. कोई अवस्था या स्थिति आकर पहुँचना या प्रत्यक्ष होना। जैसे—दुःख या सुख की प्राप्ति। ३. इस रूप में कोई चीज मिलना या हाथ में आना कि उससे अपना आर्थिक या और किसी प्रकार का लाभ या हित हो। फायदा। लाभ। (गेन, उक्त सभी अर्थों में) जैसे—(क) आज-कल उन्हें व्यापार में अच्छी प्राप्ति हो रही है। (ख) जहाँ उन्हें कुछ प्राप्ति की आशा होती है, वहीं वे जाते हैं। ४. किसी चीज या बात के आकर उपस्थित होने या पास पहुँचने की क्रिया या भाव। जैसे—(क) पत्र या उसके उत्तर की प्राप्ति। (ख) यौवनावस्था की प्राप्ति। ५. कहीं से आनेवाली किसी चीज या बात को ग्रहण करना। (रिसेप्शन) जैसे—ध्वनियों की प्राप्ति हमारे कानों को होती है। ६. योगशास्त्र में, आठ प्रकार की सिद्धियों में से एक जो सभी अभीष्ट उद्देश्य या कामनाएँ पूरी करनेवाली कही गई है। ७. नाट्यशास्त्र में, अभिनय का शुभ और सुखद अंत या उपसंहार। ८. किसी गुण, तत्त्व या बात का अधिगम या अर्जन। ९. फलित ज्योतिष में, चंद्रमा का ग्यारहवाँ स्थान जो किसी चीज या बात की प्राप्ति या लाभ के लिए शुभ माना गया है। १॰. भाग्य। ११. उदय। १२. मेल। संगति। १३. समिति या संघ। १४. प्रवृत्ति। १५. व्याप्ति। १६. कामदेव की एक पत्नी। १७. जरासंध की एक पुत्री जो कंस को ब्याही थी।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
प्राप्तिका  : स्त्री० [सं० प्राप्ति+कन्—टाप्] वह पत्र जिसमें किसी वस्तु की प्राप्ति या पहुँच का नियमित रूप से उल्लेख हो। पावती। रसीद। (रिसीट)
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प्राप्तिसम  : पुं० [सं० वृ० त०] तर्क या न्याय में एक प्रकार की जाति। ऐसी आपत्ति जो प्रस्तुत हेतु और साव्य अवशिष्ट बतलाकर की जाय।
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