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फूलना  : अ० [हिं० फूल+ना (प्रत्यय)] १. पौधों, वृक्षों आदि का फूलों से युक्त होना। पुष्पित होना। जैसे—वह पौधा बसंत में फूलता है। मुहावरा—(किसी व्यक्ति का) फूलना-फलना=लाक्षणिक रूप में, धन-धान्य संतति आदि से परिपूर्ण और सुखी रहना। सब तरह से बढ़ना और सम्पन्न होना। २. कली का सम्पुट इस प्रकार खुलना कि उसकी पंखुड़ियाँ चारों ओर से पूरे फल का रूप धारण कर लें। ३. लाक्षणिक रूप में बहुत अधिक आनन्द या उल्लास से युक्त होना। बहुत प्रसन्न या मगन होना। मुहावरा—फूले अंग न समाना=आनन्द का इतना अधिक उद्देग होना कि बिना प्रकट किये रहा न जाय। अत्यन्त आनंदित होना। फूले फिरना या फूले-फूले फिरना=बहुत अधिक आनंद, उत्साह या उमंग से भरकर निश्चिन्त भाव से उधर-उधर घूमना। उदाहरण—स्वतंत्र सिरताज फिरत कूकत कै फूले।—दीनदयाल गिरि। ४. लाक्षणिक रूप में, मन में विशेष अभिमान या गर्व का अनुभव करना। जैसे—अपनी प्रशंसा सुनकर वह फूल जाता है। ५. किसी वस्तु के भीतरी अवकाश में किसी चीज के भर जाने के कारण उसका ऊपरी या बाहरी तल बहुत अधिक उभर आना या ऊँचा हो जाना। जैसे—(क) हवा भरने से गेंद फूलना। (ख) वायु के विकार होना या बहुत अधिक भोजन करने पर पेट फूलना। ६. किसी बात-व्यवहार से अभिमान रोष आदि के कारण किसी से रूठना या कुछ समय के लिए विरक्त होना। जैसे—हम उनके यहाँ नहीं जायँगें, आज-कल वे हमसे फूल हुए हैं। ७. आघात, आंतरिक विकार आदि के कारण शरीर के किसी अंग का कुछ उभर आना। सूजना। जैसे—इतने जोर का तमाचा लगा कि गाल फूल गया है। ८. किसी व्यक्ति का असाधारण रूप से मोटा या स्थूल होना। जैसे—उसका शरीर बादी से फूला है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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