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शब्द का अर्थ

बसन  : पुं० [सं० वस्=प्रेम करना] स्त्री का पति। उदाहरण—बसन हीन नहि सोह सुरारी।—तुलसी।
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बसना  : स० [सं० वसन=निवास करना] १. जीव-जन्तुओं पक्षियों, आदि का बिल या घोंसला बनाकर अथवा मनुष्यों का गुफा, झोपड़ी मकान आदि बनाकर उसमें निवास करना या रहना। जैसे—किसी समय यहाँ जंगली जानवर बसते थे, पर अब तो यहाँ मनुष्य बस गये हैं। २. घर, नगर या किसी प्रकार के स्थान की ऐसी स्थिति में होना कि उसमें प्राणी या मनुष्य निवास करते हों। जैसे—यह गाँव पहले तो उजड़ चला था, पर अब यह धीरे-धीरे फिर से बसने लगा है। ३. घर या मकान के संबंध में कुटुम्बियों और धन-धान्य से भर-पूरा और सुखपूर्ण होना। जैसे—चाहे किसी का घर बसे या उजड़े तुम तो मौज करते रहो। मुहावरा—(किसी का) घर बसना=(क) विवाह होने पर घर में गृहिणी या पत्नी का आना। जैसे—पर-साल उसकी नौकरी लगी थी, इस साल घर भी बस गया। (ख) घर धन-धान्य और बाल-बच्चो से भरा-पूरा या युक्त होना। जैसे—पहले तो घर में पति-पत्नी दो ही आदमी थे पर अब बाल-बच्चे हो जाने से उसका घर बस गया है। (किसी का घर में) बसना=किसी का अपने घर में रहकर गृहस्थी के कर्त्तव्यों का सुखपूर्वकनिर्वाह और पालन करना। जैसे—यह औरत तो चार दिन भी घर में नही बसेगी, अर्थात् घर छोड़कर (किसी के साथ या योंही) कहीं निकल जायगी। उदाहरण—नारद का उपदेश सुनि कहहु बसेउ को गेह।—तुलसी। ४. कुछ समय तक कही अवस्थान करना। टिकना। ठहरना। जैसे—हम तो रमते राम है, जहाँ जी चाहा वहीं दस-पाँच दिन बस गये। ५. लाक्षणिक रूप में किसी चीज बात या व्यक्ति का ध्यान याविचार मन में दृढ़तापूर्वक जमना या बैठना। जैसे—(क) तुम्हारी बात मेरे मन में बस गयी है। (ख) उनके मन में तो भगवान् की भक्ति बसी हुई है। संयो० क्रि०—जाना। विशेष—इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग मन के सिवा आँखों के संबंध में भी होता है। जैसे—तुम्हारी सूरत मेरे आँखों में बसी हुई है। ६. स्थित होना। ७. बैठना। (क्व०) [हिं० बासना (गंध सेयुक्त करना) का अ०] किसी वस्तु का किसी प्रकार की गंध या वास से युक्त होना। महक से भरना। बासा जाना। जैसे—(क) इत्र से बसे हुए कपड़े या (सिर के ) बाल। (ख) गुलाब से बसी हुई गँड़िरियाँ या रेवड़ियाँ। पुं० [सं० बसन] १. वह कपड़ा जिसमें कोई वस्तु लपेटकर रखी जाय। वेष्ठन। जैसे—बहीखाते का बसना। २. वह थैली जिसमें दुकानदार अपने बटखरे आदि रखते हैं। ३. टाट आदि की वह जाली दार थैली जिसमें रुपए आदि भरकर रखे जाते हैं। ४. वह कोठी जहाँ ऋण आदि देने का कारबार होता है। पुं०=बासन (बरतन)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसनि  : स्त्री० [हिं० बसना] निवास। वास।
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