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बाढ़  : स्त्री० [हिं० बढ़ना] १. बढ़ने की क्रिया या भाव। बढ़ाव वृद्धि। जैसे—पेड़-पौधे की बाढ़। मुहावरा—बाढ़ पर आना=ऐसी अवस्था में आना कि निरन्तर वृद्धि होती रहे। जैसे—अब पेड़ बाढ़ पर आया है। २. नदी-नाले की वह स्थिति जब उसका पानी किनारों के बाहर बहने लगता है और आस-पास के झोपड़ों, मकानों, पशुओं आदि को बहाने लगता है। क्रि० प्र०—आना।—उतरा। ३. कँटीले पौधे आदि की वह लंबी, पंक्ति जो खेतों बगीचों आदि में इसलिए लगाई जाती है कि पशु आदि अन्दर न आ सके। क्रि० प्र०—रुँधना। लगाना। ४. कुछ विशिष्ट प्रकार की चीजों में किनारे या सिरे पर की ऊँचाई। जैसे—टोपी या थाली की बाढ़। ५. व्यापार आदि में अधिकता से होनेवाला लाभ या वृद्धि। ६. किसी प्रकार का जोर या तेजी। प्रबलता। तोप, बन्दूक आदि से गोलों-गोलियों का निरन्तर छूटते रहना। ८. उक्त के लगातार होता रहनेवाला प्रहार। जैसे—तोपों की बाढ़ के सामने शत्रु सेना न ठहर सकी। क्रि० प्र०—दगना।—दागना। स्त्री० [सं० वाट, हिं० वारी] कुछ विशिष्ट प्रकार के हथियारों की धार जिससे चीजें कटती हैं। जैसे—कैंची, छुरी या तलवार की बाढ़। मुहावरा—बाढ़ रखना=उक्त चीजों को सान पर चढ़ाकर उनकी धार तेज करना। पुं०=टांड (बाँह पर पहनने का गहना)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बाढ़-काढ़  : स्त्री० [हिं० बाढ़=हथियार की धार] १. तलवार। २. खड्ग। खाँड़ा। (डिं०)।
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बाढ़ना  : स० [हिं० बाढ़=धार] १. धारदार चीज से काटना। मार डालना। वध या हत्या करना। ३. नष्ट या बरबाद करना। अ०=बढ़ना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बाढ़ाली  : स्त्री० [हिं० बाढ़=धार] १. तलवार। २. खड्ग। खाँड़ा (राज०)
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बाढ़ि  : स्त्री०=बाढ़।
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बाढ़ी  : स्त्री० [हिं० बढ़ना या बाढ़] १. बढ़ती। वृद्धि। २. वह ब्याज जो किसी को अन्न उधार देने पर मिलता है। ३. उधार दिया या लिया हुआ ऐसा ऋण जिसका सूद दिन पर दिन बढ़ता चलता हो। जैसे— वह उधार बाढ़ी का काम करता है। ४. व्यापार में होनेवाला लाभ मुनाफा। ५. पानी की बाढ़। बाढ़ीवान्
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