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बान  : पुं० [सं० बाण] १. वाण। तीर। २. उक्त के आकार की एक प्रकार की अतिशबाजी जो उड़कर आकाश में जाती और वहाँ फुल-झड़ियाँ छोड़ती हैं। ३. नदी, समुद्र आदि में उठनेवाली ऊँची लहर। ४. वह छोटा डंडा जिसके दोनों सिरों पर गोलाकार लट्टू लगे होते हैं और जिससे धुनकी (कमान) की ताँत को झटका देकर धुनिए रूई धुनते हैं। पुं० [सं० वर्ण] १. रंग। वर्ण। २. आभा। कांति। चमक। स्त्री० [हिं० बनना] १. ऐसा अभ्यास या आदत जो बनते बनते स्वभाव का अंग बन गई हो। टेव। उदा०—होली के दिन मान न करिए, लाडली, कौन तिहारी बान। (होली) कि० प्र०—डालना।—पड़ना।—लगना। २. रचना-प्रकार। बनावट। पुं० [देश०] १. जड़हन (धान) रोपने के समय उतनी पेड़ियाँ जितनी एक साथ एक थान में रोपी जाती हैं। जड़हन के खेत में रोपी हुए धान की जूरी। कि० प्र०—बैठना।—रोपना। २. अफगानिस्तान से असम प्रदेश तक और प्रायः हिमालय में होनेवाला एक प्रकार का वृक्ष। पुं० [हिं० बाध] खाट बुनने की मूँज की रस्सी। बाध। उदा०—सोने की वह नार कहावै बिना कसौटी बान दिखावे। (खाट या चारपाई की पहेली) पुं०=बाना (वेष)। प्रत्य० [फा०] देख-रेख या रखवाली करनेवाली। रक्षक। जैस—दरबान् निगहबान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बानइत  : पुं०=बानैत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बानक  : पुं० [सं० वार्णः; हि० बानक] १. भेस। वेष। २. सुन्दर बनावट या रूप। सज-धज सजावट। उदा०—या बानकी बट बानिक (बानक) या बन ही बनि आवै।—नन्ददास। ३. ढंग। तरीका। उदा०—जोग रत्नाकर में साँस घँटि बूड़ै, कौन ऊधो हम सूधो यह बानक विचार चुकीं।—रत्नाकर। ४. पीले या सफेद रंग का एक प्रकार का रेशम। पुं० [हिं० बनना] किसी घटना के घटित होने के लिए उपयुक्त परिस्थिति या संयोग। मुहा०—बानक बनना या बैठना= (क) किसी काम या बात के लिए बहुत ही उपयुक्त संयोग या सुयोग उपस्थित होना। उदा०—हम पतित तुम पतितपावन दोऊ बानक बने।—तुलसी। (ख) मेल या संगति बैठना।
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बानगी  : स्त्री० [सं० वार्ण
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बानना  : सं० [हिं० बना] १. किसी प्रकार या बात का बाना ग्रहण अथवा धारण करना। २. किसी काम या बात का उपकम करना। ठानना। उदा०—दिन उठि विषय-वासना बानत।—सूर। सं०=बनाना। उदा०—कदम तीर तै बुलायो गढ़ि गढ़ि बातै बानति।—सूर। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बानबे  : वि० [सं० द्विनवति; प्रा० बाणवइ] जो गिनती में नब्बे से दो अधिक हो। दो ऊपर नब्बे। पुं० उक्त की सूचक संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है—९२।
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बानर  : पुं० [सं० वानर] [स्त्री० बानरी] बंदर।
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बानवर  : पुं० [?] बत्तखों की जाति की काले रंग की एक प्रकार की बड़ी चिड़िया जो लगभग तीन फुट की होती है। साँप जैसी लम्बी और पतली गरदन के कारण इसे ‘नागिन’ भी कहते हैं।
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बाना  : पुं० [सं० वार्ण
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बानात  : स्त्री०=बनात (कपड़ा)।
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बानावरी  : स्त्री० [हि० बाण+आवरी (प्रत्य०)] बाण चलाने की विद्या या ढंग।
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बानि  : स्त्री० [सं० वार्ण
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बानिक  : पुं०=बानक। पुं०=वणिक्। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बानिज  : पुं०=वाणिज्य।
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बानिन  : स्त्री० [हिं० बनी=बनिया] बनिया जाति की या बनिये की स्त्री।
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बानिया  : पुं० [सं० वणिक्] [स्त्री० बानिन]=बनिया।
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बानी  : स्त्री० [सं० वाणी] १. मुँह से निकला हुआ सार्थक शब्द, बात या वचन। २. दृढ़ता या प्रतिज्ञापूर्वक कही हुई बात। ३. साधु-महात्माओं की उपदेशपूर्ण बात। जैसे—कबीर, दादू या नानक की बानी। ४. मनौती। मन्नत। ५. सरस्वती। ६. दे० ‘वाणी’। स्त्री० [सं० वाण] बाना नामक हथियार। स्त्री० [सं० वर्ण] १. रंग। वर्ण। २. आभा। कांति। चमक। जैसे—बारह बानी का सोना। (दे० ‘बारह बानी’) उदा०—एक रूप बानी जाके पानी की रहति है।—सेनापति। ३. एक प्रकार की पीली मिट्टी जिससे पकाये जाने से पहले मिट्टी के बरतन रंगे जाते है। कपसा। वि० [फा] १. किसी काम या बात की बुनियाद (नींव) डालने या जड़ जमानेवाला। २. आरंभिक या मूल प्रवर्तक। पुं० [सं० वणिक्] बनिया।
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बानैत  : पुं० [हि० बाना+ऐत (प्रत्य०)] १. वह जो बाना चलाता या फेरता हो। २. वह जो कोई बाना या वेष धारण किये हो। पुं० [हिं० बान=तीर] १. वह जो तीर चलाता हो। तीरंदाज। २. योद्धा। सैनिक। बानो
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