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भावना  : स० [सं० भ्रमण] १. किसी चीज़ को खराद आदि पर रख कर घुमाना। २. खरादना। कुनना। ३. अच्छी तरह गढ़कर सुन्दर और सुडौल बनाना। ४. दही या मट्ठा मथना। उदाहरण—मट्ठा भाँवने के समय हँसुली नाचती होगी।—वृन्दावनलाल वर्मा। अ० १. चक्कर या फेरा लगाना। २. व्यर्थ इर-उधर घूमना।
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भावनीय  : वि० [सं० भानु+छ—ईय, गुण] भानु-संबंधी। भानु का। पुं० दाहिनी आँख।
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भावन  : पुं० [सं०√भू (होना)+णिच्+ल्युट्—अन] १. भावना। २. ध्यान। ३. विष्णु। वि० [हिं० भाना=भला लगना] भाने या भला लगनेवाला। प्रियदर्शी।
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भावना  : स्त्री० [सं०√भू+णिच्+युच्—अन,+टाप्] १. मन में किसी बात का होनेवाला चिंतन। ध्यान। २. मन में उत्पन्न होनेवाली कोई कल्पना, भाव या विचार। खयाल। विशेष—दार्शनिक दृष्टि से यह चित्त का एक संसार है जो अनुभव, स्मृति आदि के योग से उत्पन्न होता है। ३. कामना। चाह। वासना। ४. वैद्यक में, औषध आदि को किसी प्रकार के रस या तरल पदार्थ में बार बार मिला कर घोटना और सुखाना जिसमें उस औषध में रस या तरल पदार्थ के कुछ गुण आ जायँ। पुट। ५. चिन्ता। फिक्र। क्रि० प्र०—देना। अ०=भाना (अच्छा लगना)। वि०=भावता या भावन (अच्छा लगनेवाला)।
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भावनामय-शरीर  : पुं० [सं० भावना+मयट्, भावनामय-शरीर, कर्म० स०] सांख्य के अनुसार एक प्रकार का शरीर जो मनुष्य मृत्यु से कुछ ही पहले धारण करता है और जो उसके जन्म भर के किए हुए सभी कर्मों के अनुरूप होता है। कहते हैं कि जब आत्मा इस शरीर में पहुँच जाती है, तभी मृत्यु होती है।
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भावना-मार्ग  : पुं० [सं० ष० त०] ईश्वर आदि का आध्यात्मिक तथा भक्तिपूर्ण मार्ग या साधन।
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भावनि  : स्त्री० [हिं० भाना या भावना=अच्छा लगना] मन में सोचा हुआ काम या बात। वह जो जी में आया हो। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भावनीय  : वि० [सं०√भू+णिच्+अनीयर्] चित्त या विचार में लाये जाने के योग्य। जिसकी भावना की जा सके या हो सके।
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