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मरना  : अ० [सं० मरण] १. जीव-जंतुओं या प्राणियों के शरीर में से जीवनी शक्ति या प्राण का सदा के लिए निकल जाना जिसके फलस्वरूप उनकी सभी शारीरिक क्रियाएँ या व्यापार बन्द हो जाते हैं। आयु या जीवन का अंत या समाप्त होना। मृत्यु को प्राप्त होना। जान निकलना। जैसे—महामारी से (या युद्ध में) लोगों का मरना। पद—मरना-जीना—(देखें स्वतंत्र पद)। मुहा०—मरने तक की छुट्टी (या फुरसत) न होना=कार्य की अधिकता के कारण तनिक भी अवकाश न होना। नाम को भी साँस लेने या सुस्ताने का समय न मिलना। २. वनस्पतियों, वृक्षों आदि का कुम्हला या मुरक्षाकर इस प्रकार सूख जाना कि फिर वे खिलने-पनपने, फूलने-फलने या हरे-भरे रहने के योग्य न हो सकें। जैसे—अधिक गरमी पड़ने या वर्षा न होने से बाद के बहुत से पौधे मर गये। विशेष—प्राणियों और वनस्पतियों की उक्त प्रकार की अवस्था प्राकृतिक कारणों से भी होती है और भौतिक कारणों से भी। ३. इतना अधिक कष्ट या दुःख भोगना कि मानो शरीर का अंत हो जाने की नौबत या बारी आ रही हो। जैसे—उन्होंने जन्म भर मर मर कर लाखों रुपये कमाये पर वे धन का सुख न भोग सके। उदा०—देव पूजि हिदू मुए (मरे) तुरुक मुए (मरे) हज जाइ।—कबीर। ४. किसी काम या बात के लिए बहुत अधिक चिन्तित या प्रयत्नशील रहना और परेशान या हैरान होना। जैसे—हम तो लड़के के सुधार के लिए मरे जाते हैं और वह ऐरे-गैरे लोगों के साथ घूमता-फिरता रहता है। मुहा०—(किसी के लिए) मरना-पचना=बहुत अधिक कष्ट सहना। उदा०—बहि बहि मरहु निजस्वारथ, जम कौ डंड सह्यो।—कबीर। मर मिटना=(क) प्रयत्न करते-करते बहुत बुरी दशा में पहुँचना या दुर्दश भोगना। जैसे—हम तो इस काम के लिए मर मिटे, और आपके लेखे अभी कुछ हुआ ही नहीं। (ख) पूर्ण रूप से अपना अन्त या विनाश करना। जैसे—हमने तो ठान लिया है कि देश-सेवा के लिए मर मिटेंगे। मर रहना=थक या हारकर हताश हो जाना और कुछ करने-धरने के योग्य न रह जाना। मर लेना=प्रयत्न करते-करते असह्य कष्ट भोजना। (किसी काम या बात के लिए) मरे जाना=(क) इतना अधिक चिन्तित या व्याकुल होना कि मानो उसके बिना जीवन या शरीर चल ही न सकता हो। जैसे—तुम तो मकान बनवाने के पीछे मरे जाते हो। (ख) बहुत अधिक कष्ट या दुःख भोगना। जैसे—हम तो सूद चुकाते चुकाते मर जाते हैं। उदा०—अब तो हम साँस के लेने में मरे जाते हैं।—कोई शायर। (ग) ऐसी स्थिति में आना या होना कि मानो शरीर में प्राण ही न हों। मृतक के समान असमर्थ या निष्क्रिय हो जाना। जैसे—वह तो लज्जा (या संकोच) के मारे मरा जाता है और तुम उसके सिल पर चढ़े जा रहे हो। ५. व्यावहारिक क्षेत्र में, किसी काम या बात को सबसे अधिक आवश्यक या महत्वपूर्ण समझते हुए उसके लिए सब प्रकार के कष्ट भोगने या त्याग करने के लिए प्रस्तुत रहना या होना। जैसे—भले आदमी तो अपनी इज्जत (या बात) पर मरते हैं। ६. श्रृंगारिक क्षेत्र में किसी के प्रेम में इतना अधिक अधीर होना कि उसके विरह में मानों प्राण निकल रहे हों या जीना दूभर हो रहा हो। किसी के प्रेम में बहुत ही विकल या विह्वल रहना (प्रायः ‘पर’ विभक्ति के साथ प्रयुक्त)। जैसे—वे जन्म भर सुन्दर स्त्रियों पर मरते रहे। ७. भारतीय खेलों में, खेलाड़ियों का किसी निश्चित क्रिया, नियम या विधान के अनुसार या फलस्वरूप खेल में सम्मिलित रहने के योग्य न रह जाना। जैसे—कबड्डी के खेल में खेलाड़ियों का मरना। ८. कुछ विशिष्ट खेलों में गोटी, मोहरे आदि का उक्त प्रकार से खेले जाने योग्य न रह जाना और बिसात आदि पर से हटा दिया जाना। जैसे—चौसर के खेल में गोटी या शतरंज के खेल में ऊँट, घोड़ा या वजीर मारना। ९. किसी प्रकार नष्ट होना। न रह जाना। १॰. किसी चीज या किसी दूसरी चीज में या किसी स्थान में इस प्रकार विलीन होना या समाना कि ऊपर या बाहर से जल्दी उसका पता न चले। जैसे—छत या दीवार में पानी मरना। ११. किसी पदार्थ का अपनी क्रिया, शक्ति आदि से रहित या हीन होना। जैसे—आग मरना (बुझना या मन्द होना), पानी छिड़कने पर धूल मरना, (उड़ने योग्य न रह जाना या बैठ जाना), १२. मन या शरीर के किसी वेग का दबकर नहीं के समान होना। बहुत ही धीमा होना या समाना कि ऊपर या बाहर से जल्दी उसका पता न चले। जैसे—छत या दीवार में पानी मरना। ११. किसी पदार्थ का अपनी क्रिया, शक्ति आदि से रहित या हीन होना। जैसे—आग मरना (बुझना या मन्द होना), पानी छिड़कने पर धूल मरना, (उड़ने योग्य न रह जाना या बैठ जाना), १२. मन या शरीर के किसी वेग का दबकर नहीं के समान होना। बहुत ही धीमा होना या मन्द पड़ना। जैसे—भूख मरना, प्यास मरना, उत्साह या मन मरना। १३. किसी से पराजित या परास्त होकर उसके अधीन या वश में होना (क्व०)। वि० [स्त्री० मरनी] १. मरनेवाला। २. मरण या मृत्यु की ओर अग्रसर होनेवाला। जो जल्दी ही मरने को हो। मरणासन्न या मरणोन्मुख। उदा०—जाहि ऊब क्यों न, मति भई मरनी।—सूर।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
मरना-जीना  : पुं० [हिं०] गृहस्थी में प्रायः होती रहनेवाली किसी की मृत्यु, सन्तान की उत्पत्ति, जनेऊ, ब्याह आदि कृत्य जिनमें आपसदारी के लोगों के यहाँ आना-जाना पड़ता है। जैसे—मरना-जीना तो सभी के यहां लगा रहता है।
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