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रग  : स्त्री० [फा०] १. शरीर की नस या नाड़ी। पद—रग-पट्ठा, रग-रेशा। मुहावरा—रग उतरना=(क) क्रोध, हठ आदि दूर होना। (ख) आँत उतरना (रोग)। रग चढ़ना=मन में क्रोध, हठ आदि का आवेश होना। (किसी से) रग दबना=ऐसी स्थिति में होना कि विवश होकर किसी के दबाव या प्रभाव में रहना पड़े। जैसे—हम्हीं से उसकी रग दबती है, तुम्हें तो वह कुछ समझता ही नहीं। रग फड़कना=किसी आनेवाली आपत्ति की पहले से ही आशंका होना। माथा ठनकना। रग रग फड़कना=शरीर में बहुत अधिक आवेश, उत्साह, चचंलता आदि के लक्षण प्रकट होना। रग रग में=सारे शरीर के सभी भागों में। सर्वांग में। २. जिद या हठ से जो शरीर की किसी रग के विकार का परिणाम माना जाता है। ३. पत्तों आदि में दिखाई पड़नेवाली नसें।
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रगंड  : पुं० [सं० गंड] हाथी का कपोल (डिंगल)।
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रगड़  : स्त्री० [हिं० रगड़ना] १. रगड़ने की क्रिया या भाव। २. रगड़े जाने की अवस्था या भाव। ३. वह चिन्ह जो किसी चीज से रगड़े जाने पर लक्षित होता है। ४. किसी काम के लिए की जानेवाली कड़ी मेहनत और दौड़-धूप। ५. झगड़ा। तकरार। ६. धक्का (कहार)।
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रगड़ना  : स० [सं० घर्षण] १. किसी चीज के तल पर किसी दूसरी चीज का तल बार-बार दबाते हुए चलाना। जैसे—जमीन पर एड़ी रगड़ना। २. दो तलों के बीच में रखी हुई वस्तु टुकड़े-टुकड़े या चूर-चूर करना अथवा पीसना। जैसे—सिल बट्टे से मसाला या भाँग रगड़ना। ३. निरंतर परिश्रमपूर्वक कोई काम करते रहना। जैसे—सारा दिन कलम रगड़ते बीतता है। ४. किसी काम या बात का निरंतर परिश्रम पूर्वक अभ्यास करना। जैसे—जब इसी तरह कुछ दिनों तक रगड़ते रहोगे तो इस काम में चल निकलोगे। ५. किसी को कष्ट देते हुए या दबाते हुए बहुत तंग या परेशान करना। जैसे—इस मुकदमें में तुमने उन्हें खूब रगड़ा। ६. दंड आदि के संबंध में कठोरतापूर्वक आदेश देना। जैसे—अदालत ने उन्हें दो बरस के लिए रगड़ दिया। ७. किसी के साथ काम-वासना की तृप्ति मात्र के लिए (प्रेमपूर्वक नहीं) प्रसंग या संभोग करना (बाजारू)। संयो० क्रि०—डालना-देना। अ० बहुत मेहनत करना। अत्यंत श्रम करना।
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रगड़वाना  : स० [हिं० रगड़ना का प्रेर० रूप] रगड़ने का काम दूसरे से करना। दूसरे को रगड़ने में प्रवृत्त करना।
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रगड़ा  : पुं० [हिं० रगड़ना] १. रगड़ने की क्रिया या भाव। घर्षण। रगड़। २. वह आघात जो किसी चीज पर उसे रगड़ने के उद्देश्य से किया जाता है। ३. किसी चीज की रगड़ लगने पर होनेवाला आघात। ४. एक बार में होनेवाली रगड़ाई। ५. निरन्तर किया जानेवाला बहुत अधिक परिश्रम। काफी और पूरी-मेहनत। ६. बराबर कुछ दिनों तक चलता रहनेवाला झगड़ा या वैर-विरोध। पद—रगड़ा-झगड़ा=बहुत समय तक चलनेवाला झगड़ा या लड़ाई।
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रगड़ान  : स्त्री० [हिं० रगड़ना+आन (प्रत्यय)] रगड़ने या रगड़े जाने की क्रिया या भाव। रगड़ा। क्रि० प्र०—खाना।—देना।—लगाना।
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रगड़ी  : वि० [हिं० रगड़ा+ई (प्रत्यय)] रगड़ा अर्थात् लड़ाई-झगड़ा या हुज्जत करनेवाला। झगड़ालू। हुज्जती।
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रगण  : पुं० [सं० ष० त०] छंद-शास्त्र में ऐसे तीन वर्णों का गण या समूह जिसका पहला वर्ण गुरु, दूसरा लघु और तीसरा फिर गुरु होता है (ऽ।ऽ)।
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रगत  : पुं० =रक्त। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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रगदना  : स०=रगेदना (दे०)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रगदल  : वि० [हिं०] कुबड़ा। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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रग-पट्ठा  : पुं० [फा० रग+पिं० पट्ठा] १. शरीर के भीतरी भिन्न-भिन्न अंग, मुख्यतः रगें और मांस-पेशियाँ। २. किसी विषय की भीतरी और सूक्ष्म बातें। मुहावरा—(किसी के) रग पट्ठे से परिचित या वाकिफ होना=किसी के रंग-ढंग, शक्ति, स्वभाव आदि से परिचित होना। खूब पहचानना।
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रगपत  : पुं० =रघुपति। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रगबत  : स्त्री० [अ० रग्बत] १. इच्छा। कामना। चाह। २. किसी काम या बात की ओर होनेवाली प्रवृत्ति या रुचि। क्रि० प्र०—आना।—रखना।—होना।
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रगर  : स्त्री०=रगड़। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रगरा  : पुं० =रगड़ा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रग-रेशा  : पुं० [फा० रग+रेशा] १. शरीर के अन्दर के अंग। २. पत्तियों की नसें। पद—रग रेशे में=सारे शरीर में। अंग-अंग में। जैसे—शरारत तो उसके रग-रेशे में भरी है। ३. किसी काम बात या वस्तु के अन्दर की गुप्त और सूक्ष्म बातें। जैसे—वह इस काम के रग-रेशे से वाकिफ है।
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रगवाना  : स० [हिं० रगाना का प्रेर, रूप] १. चुप कराना। २. शांत कराना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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रगा  : पुं० [देश] मोर। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रगाना  : अ० [देश] १. चुप होना। २. शांत होना। स० १. चुप कराना २. शांत कराना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रगी  : स्त्री० [देश] १. एक प्रकार का मोटा अन्न। स्त्री०=रग्गी। वि० =रगीला। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रगीला  : पुं० [हिं० रग=जिद+ईला (प्रत्यय)] [स्त्री० रगीली] १. हठी। जिद्दी। दुराग्राही। २. दुष्ट। पाजी। वि० [हिं० रग] जिसमें रगें या नसें हो। रगों से युक्त। रगोंवाला।
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रगेद  : स्त्री० [हिं० रगेदना] दौड़ने या भागने की क्रिया।
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रगेदना  : स० [सं० खेट० हिं० खेदना] किसी को ढकेलते, धक्का देते या दौड़ते हुए दूर करना या हटाना। बल-प्रयोग करते हुए भागना। खदेड़ना। संयो० क्रि०—देना।
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रग्गा  : पुं० [देश] एक प्रकार का मोटा अन्न। रगी। पुं० =रग्गी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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रग्गी  : स्त्री० [?] वह धूप विशेषतः वर्षा ऋतु की कड़ी धूप जो पानी बरस जाने और बादल छँट जाने पर निकलती है। स्त्री०=रगी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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