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राध  : पुं० [सं० राधा=विशाखा+अण्+ङीष्=राधी+अण्] १. वैसाख मास। २. धन-संपत्ति। स्त्री० [?] पीब। मवाद।
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राधन  : पुं० [सं०√राध्+ल्युट-अन] १. साधने की क्रिया। साधन। २. प्राप्त या हस्तगत होना० मिलना। ३. तुष्ट करना। तोषण। ४. किसी प्रकार का उपकरण या औजार। ५. कोई ऐसी चीज या बात जिससे कोई पूरा काम हो। साधन।
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राधना  : स० [सं० आराधना] आराधना या पूजा करना। २. पूरा या सिद्ध करना। ३. युद्धि से काम निकालना।
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राधा  : स्त्री० [सं०√राध्+अच्+टाप्] १. प्रीति। प्रेम। २. वृषभानु गोप की कन्या जो पुराणानुसार श्रीकृष्ण की बाल्यावस्था की सबसे अधिक प्रिय सखी और प्रेयसी थी। ३. धृतराष्ट्र के सारथि अधिरथ की पत्नी जिसने कर्ण को पुत्रवत् पाला था। इसी से कर्ण का नाम ‘राधेय’ भी था। ४. एक प्रकार का वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में रगण, तगण, मगण, यगण और एक गुरु सब मिलाकर १३ अक्षर होते हैं। ५. विशाखा नक्षत्र। ६. वैशाख की पूर्णिमा। ७. बिजली। विद्युत। ८. आँवला। ९. विष्णुकांता लता।
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राधा-कांत  : पुं० [सं० ष० त०] श्रीकृष्ण।
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राधा-कुंड  : पुं० [सं० ष० त०] गोवर्द्धन के निकट एक प्रख्यात सरोवर जो तीर्थ माना जाता है।
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राधा-तंत्र  : पुं० [सं० मध्य० स०] तंत्र जिसमें मंत्रों आदि के अतिरिक्त राधा की उत्पत्ति का भी रहस्यपूर्ण वर्णन है।
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राधा-वल्लभ  : पुं० [सं० ष० त०] श्रीकृष्ण।
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राधावल्लभी (भिन्)  : पुं० [सं० राधावल्लभ+इनि] १. वैष्णवों का एक प्रसिद्ध संप्रदाय। २. उक्त सम्प्रदाय का अनुयायी।
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राधाष्टमी  : स्त्री० [सं० राधा+अष्टमी, ष० त०] भादों सुदी अष्टमी।
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राधास्वामी  : पुं० [सं०] १. एक आधुनिक मत प्रवर्त्तक आचार्य जिनका आगरे में प्रसिद्ध केन्द्र है। २. उक्त आचार्य का चलाया हुआ संप्रदाय।
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राधिका  : स्त्री० [सं० राधा+कन्+टाप्, इत्व] १. वृषभानु गोप की कन्या राधा। २. एक प्रकार का मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में १३ मात्राएँ और ९ के विश्राम से २२ मात्राएँ होती हैं। लावनी इसी छंद में होती है।
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राधेय  : पुं० [सं० राधा+ठक्-एय] (धृतराष्ट्र के सारथि अधिरथ की पत्नी राधा द्वारा पालित। कर्ण।
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राध्य  : वि० [सं०√राध् (सिद्धि)+यत्] आराधना करने के योग्य। आराध्य।
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