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लटकन  : पुं० [हिं० लटकना] १. लटकने की क्रिया या भाव। नीचे की ओर झूलते रहने का भाव। २. लटकती हुई कोई वस्तु। ३. नाक में पहनने का एक प्रकार का गहना जो झूलता रहता है। ४. रत्नों का वह गुच्छा जो कलँगी में लगाते थे। ५. मालखंभ की एक कसरत जिसमें दोनों पैरों के अँगूठे में बेत फँसाकर पिंडली को लपेटते हुए नीचे की ओर लटकते हैं। ६. कोई ऐसा फालतू पदार्थ या व्यक्ति जो किसी महत्वपूर्ण पदार्थ या व्यक्ति के साथ यों ही लगा रहता है या लगा फिरता हो। २. अंडकोश (बाजारू)। पुं० १. एक प्रकार का पेड़ जिसमें लाल रंग के फूल लगते हैं २. उक्त रगं के फूलों से सुगंधित बीज जिन्हें पानी में पीसने से गेरुआ रंग निकलता है। इस रँग से प्रायः कपड़े रँगते हैं।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
लटकना  : अ० [सं० लडन] १. किसी पदार्थ या व्यक्ति का ऐसी स्थिति में आना या होना कि उसका एक सिरा या अंग किसी ऊँचे आधार में अटका या फँसा हुआ हो और शेष भाग अधर में नीचे की ओर हो। २. किसी सीधी, खड़ी टिकी या बनी हुई वस्तु का कोई भाग किसी ओर थोड़ा झुकना। जैसे—(क) बरामदा आगे की ओर कुछ लटक गया है। (ख) बेहोशी में उसका सिर पीछे की ओर लटक गया था। पद—लटक या लटकती चाल=ऐसी चाल जिसमें मस्ती, हर्ष आदि के कारण आदमी झूमता हुआ चलता हो। ३. किसी काम, बात या व्यक्ति का ऐसी स्थिति में आना, रहना या होना कि उसके संबंध में आवश्यक और उचित निर्णय न हो अथवा अभीष्ट सिद्ध न हो। असमंजस या दुविधा की स्थिति में अपेक्षया अधिक समय तक पड़ा या बना रहना। जैसे—(क) अदालतों में मुकदमे बरसों लटके रहते हैं। (ख) नौकरी की दरख्वास्त देने पर उसे महीनों लटके रहना पड़ा। संयो० क्रि०—रहना। ४. परीक्षा में अनुत्तीर्ण होना और इस प्रकार पहलेवाली कक्षा में ही रुका रहना। संयो० क्रि०—रहना। वि० [स्त्री० लटकनी] लटकवाली मनोहर अंग-भंगी से युक्त। उदाहरण—बंझ जाइ खग ज्यों प्रिय छबि लटकनी लस।—सूर।
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