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वारज  : पुं० [सं०] [भू० कृ० वारित] १. अनिष्ट या अनुचित कार्य आदि के सम्बन्ध में होनेवाली निषेधात्मक आज्ञा, आदेश या सूचना। निषेध। मनाही। २. अनिष्ट आदि को दूर रखने या उनसे बचने के लिए किया जाने वाला उपाय या कार्य। ३. आपत्तिजनक या दूषित प्रकाशनों आदि का प्रचार रोकने के लिए राज्य या शासन की ओर से होनेवाली निषेधात्मक आज्ञा या व्यवस्था। (स्क्रेप्शन)। ४. बाधा। रुकावट। ५. शरीर को अस्त्रों आदि से आघात से बचानेवाला। कवच। बकतर। ६. हाथी को वश में रखनेवाला अंकुश। ७. सम्भवतः इसी आधार पर हाथी की संज्ञा। ८. छप्पय छन्द का एक भेद जिसके प्रत्येक चरण में कुछ आचार्यों के मत से ४१ गुरु और ७॰ लगु तथा कुछ आचार्यों के मत से ४१ गुरु और ६६ लघु मात्रा होती है। ९. हरताल। १॰. कला शीशम। ११. सफेद कोरैया।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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