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शी  : स्त्री० [सं०√ (शयन करना)+क्विप्] १. शांति। २. शयन। ३. भक्ति।
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शीआ  : पुं०=शीया।
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शीकर  : पुं० [सं०√शीक+करन्] १. पानी की बूँद। २. बहुत छोटी बूँदों के रूप में होनेवाली वर्षा। फुहार। २. ओस। ३. वायु। ४. जाड़ा। ठंड। शीत। ५. गन्ध-बिरोजा। ७. धूप नामक गन्ध द्रव्य।
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शीघ्र  : अव्य० [सं० शिधि+रक्, पृषो०] १. बिना बिलंब किए। बिना अधिक समय बिताये। २. तत्क्षण। तुरंत। पद-शीघ्र ही=कुछ ही समय बाद। ३. फुरती से।
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शीघ्रकारी  : वि० [सं० शीघ्र√कृ (करना)+णिनि; शीघ्रकारिन्] १. शीघ्र कार्य करनेवाला। काम करने में तेज। फुरतीला। २. शीघ्र प्रभाव दिखानेवाला। ३. उग्र। तीव्र। पुं० एक प्रकार का सन्निपात ज्वर।
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शीघ्रकोपी  : वि० [सं० शीघ्र√कुप् (करना)+णिनि] १. जल्दी गुस्सा होनेवाला। २. चिड़चिड़े स्वभाववाला।
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शीघ्रग  : वि० [सं० शीघ्र√गम् (जाना)+ड] तेज चलनेवाला। द्रुतगामी। पुं० १. सूर्य। २. वायु। ३. खरगोश।
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शीघ्रगामी (मिन्)  : वि० [सं० शीघ्र√गम् (जाना)+णिनि, शीघ्रगामिन्] [स्त्री० शीघ्रगामिनी] तेज चलने वाला।
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शीघ्रता  : स्त्री० [सं० शीघ्र+तल्-टाप्] १. वह स्थिति जिसमें जल्दी जल्दी कोई काम किया जाता है। जल्दी। २. तेजी। ३. जल्दबाजी। उतावलापन।
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शीघ्रत्व  : पुं० [सं० शीघ्र+त्व]=शीघ्रता।
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शीघ्रपतन  : पुं० [सं० ब० स०] स्त्री० सहवास के समय पुरुष के वीर्य का जल्दी स्खलित हो जाना।
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शीघ्रवेधी  : पुं० [सं० शीघ्र√विध् (वेधना)+णिनि] शीघ्रता से बाण चलाने या निशाना लगाने वाला। लघु-हस्त।
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शीघ्र  : स्त्री० [सं० शीघ्र-टाप्] १. एक प्राचीन नदी। २. दंती वृक्ष।
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शीघ्रिय  : पुं० [सं० शीघ्र+घ-ईय] १. शिव। २. विष्णु। ३. बिल्लियों की लड़ाई। वि० १. शीघ्रगामी। २. तेज।
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शीघ्री (घ्रिन्)  : वि० [सं० शीघ्र+इनि] १. शीघ्रकारी। २. शीघ्रगामी। ३. तुरंत उच्चारण करनेवाला।
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शीघ्र्य  : पुं० [सं० शीघ्र+यत्]=शीघ्रता।
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शीत  : वि० [√श्यै (स्पर्श करना)+क्त] १. ठंढ़ा। शीतल। २. शिथिल। सुस्त। पुं० १. जाड़ा। ठंढ़। सरदी। २. जाड़े का मौसम। ३. जुकाम। प्रतिश्याय। ४. कपूर। ५. दालचीनी। ६. बेंत। ७. लिसोड़ा। ८. नीम। ९. ओस। १॰. कोहरा। तुषार। ११. पित्तपापड़ा। १२. एक प्रकार का चंदन। १३. जल। पानी।
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शीतक  : वि० [शीत्√कृ (करना)+ड] १. ठंड या ठंडक उत्पन्न करनेवाला। २. आलसी। पुं० [सं० शीत√कृ (करना)+ड] १. शीतकाल। जाड़े का मौसम। २. बिच्छू। ३. वन-सनई। ४. एक प्रकार का चन्दन। ५. शीत विशेषतः ठंडक उत्पन्न करनेवाला एक यंत्र जिससे गर्मी के दिनों में कमरे ठंढे रखे जाते हैं। (कूलर)।
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शीत-कटिबंध  : पुं० [सं० ब० स०] भूगोल में पृथ्वी के वे कल्पित विभाग जो भूमध्यरेखा से २३½ अंश उत्तर के बाद और २३½ अंश दक्षिण के बाद पड़ते हैं और जिनमें अपेक्षया अधिक सरदी पडती है। (फरीजिड जोन)।
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शीतकर  : पुं० [सं० ब० स०] १. ठंडी किरणोंवाला, अर्थात् चंद्रमा। २. कपूर। वि० ठंढ़ा या शीतल करनेवाला।
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शीत-काल  : पुं० [सं० ष० त०] १. हेमंत ऋतु। २. सरदी के दिन। जाड़े का मौसम।
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शीत-किरण  : वि० [सं० ब० स०] शीतल किरणोंवाला। पुं० चन्द्रमा।
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शीत-किरणी  : पुं० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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शीत-कृच्छ्  : पुं० [सं० मध्यम० स०] मिताक्षरा के अनुसार एक प्रकार का व्रत।
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शीतक्षार  : पुं० [सं० कर्म० स०] शुद्ध सुहागा।
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शीतगंध  : पुं० [सं० ब० स०] चंदन। संदल।
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शीतगात्र  : पुं० [सं० ब० स०] शरीर के ठंढ़े पड़ने का एक रोग।
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शीतगु  : पुं० [सं० ब० स०] १. चन्द्रमा। २. कपूर।
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शीतचंपक  : पुं० [सं०] १. दर्पण। शीशा। २. दीपक। दीआ।
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शीत-च्छाय  : वि० [ब० स०] जिसकी छाया शीतल हो। पुं० बड़ का पेड़। जिसकी छाया ठंडी होती है।
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शीत-ज्वर  : पुं० [सं० मध्य० स०] जाड़ा देकर आनेवाला बुखार। विषम ज्वर। जूड़ी।
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शीत-तरंग  : स्त्री० [सं०] १. शीतकाल में सहसा तापमान के गिरने से होनेवाली ऐसी उग्र ठंढ जिसमें हाथ-पैर गलने लगते हैं। २. किसी दिशा में पड़नेवाली शीत की वह तरंग जिससे दो चार दिनों के लिए सरदी बहुत बढ़ जाती है। (कोल्ड-वेव)
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शीतता  : स्त्री० [सं० शीत+तल्-टाप्] १. शीत का भाव या धर्म। शीतत्व। ठंढ़ापन। २. सरदी।
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शीतत्व  : पुं० [सं० शीत+त्व] शीतता।
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शीतदंत  : पुं० [सं० ब० स०] एक रोग जिसमें ठंढ़ी हवा तथा ठंडा पानी दाँतों में लगने के फलस्वरूप पीड़ा होती है।
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शीत-दीधिति  : पुं० [सं० ब० स०] चन्द्रमा जिसकी किरणें शीतल होती है।
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शीतद्युति  : पुं० [सं० ब० स०] चन्द्रमा।
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शीतन  : पुं० [सं०] [भू० कृ० शीतित] ठंढ़ा करने की क्रिया या भाव। (कूलिंग)।
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शीतपर्णी  : स्त्री० [सं० ब० स०] अर्कपुष्पी।
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शीतपाकी  : स्त्री० [सं० ब० स०] १. काकोली नामक अष्टवर्गीय ओषधि। २. घुँघची। ३. अतिबला। ककही।
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शीतपित्त  : पुं० [सं० ब० स०] शीतकाल में होनेवाला एक प्रकार का रोग जिमसें अचानक सारे शरीर में छोटे-छोटे चकते निकल आते हैं और उनमें बहुत तेज खुजली होती है। जुड़-पित्ती (यूरिकेरिआ)।
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शीतपुष्प  : पुं० [सं० ब० स०] १. छरीला। शैलेय। २. केवटी मोथा। ३. सिरिस का पेड़।
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शीतपुष्पा  : स्त्री० [सं० शीतपुष्प—टाप्] ककही। अतिबला।
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शीत-पूतना  : स्त्री० [सं० मध्यम० स०] भावप्रकाश के अनुसार एक प्रकार का बालग्रह या बालरोग।
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शीतप्रभ  : पुं० [सं० ब० स०] १. चंद्रमा। २. कपूर।
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शीतफल  : पुं० [सं० ब० स०] १. गूलर। २. पीलू। ३. अखरोट। ४. आँवला। ५. लिसोड़ा।
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शीतभानु  : पुं० [सं० ब० स०] चन्द्रमा।
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शीत-मयूख  : पुं० [सं० ब० स०] १. चन्द्रमा। २. कपूर।
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शीत-मरीचि  : पुं० [सं० ब० स०] १. चन्द्रमा। २. कपूर।
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शीत-मेह  : पुं० [सं० मध्यम० स०] एक प्रकार का प्रेमह रोग।
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शीतमेही (हिन्)  : पुं० [सं० शीतमेह+इनि] वह जिसे शीत मेह रोग हो।
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शीतयुद्ध  : पुं० [सं० मध्य० स०] राष्ट्रों के पारस्परिक व्यवहार में वह स्थिति जिसमें प्रत्यक्ष रूप से युद्ध तो नहीं होता, फिर भी प्रत्येक राष्ट्र अपने आपको प्रभावशाली तथा सशक्त बनाने के लिए ऐसी राजनीतिक चालें चलता है जिनके कारण दूसरे राष्ट्रों के सामने बड़ी-बड़ी उलझनें खडीं हो जाती है। (कोल्ड वार)
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शीत-रश्मि  : पुं० [सं० ब० स०] १. चन्द्रमा। २. कपूर।
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शीत-रस  : पुं० [सं० ब० स०] प्राचीन भारत में ईख के कच्चे रस की बनी हुई एक प्रकार की मदिरा।
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शीतरुच  : पुं० [सं० ब० स०] चन्द्रमा।
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शीतरुह  : पुं० [सं० ब० स०] सफेद कमल।
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शीतल  : वि० [सं० शीत√ला+क] १. शीत उत्पन्न करनेवाला। सर्द। ठंडा। ‘उष्ण’ का विपर्याय। २. जिसमें कुछ कुछ ठंढक हो। जैसे—शीतल समीर। ३. जो शीतलता या ठंढक प्रदान करता हो। ४. जिसमें आवेश न हो। शांत। ५. प्रसन्न। ६. संतुष्ट। पुं० १. कसीस। २. छरीला। ३. चन्दन। ४. मोती। ५. उशीर। खस। ६. बनसनई। ७. लिसोढ़ा। ८. चंपा। ९. राल। १॰. पद्यकाठ। ११. पीत। चंदन। १२. भीमसेनी कपूर। १३. शाल वृक्ष। १४. हिम। १५. मटर। १६. चन्द्रमा। १७. जैनों का एक प्रकार का व्रत।
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शीतलक  : पुं० [सं० शीतल√कन्] १. मरुआ। मरुवक। २. कुमुद। वि० शीतल करनेवाला।
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शीतल-चीनी  : स्त्री० [सं० शीतल+हि० चीनी] कबाब चीनी।
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शीतलच्छाय  : वि० [सं० ब० स०]=शीतच्छाय।
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शीतलता  : स्त्री० [सं० शीतल+तल्-टाप्] १. शीतल होने की अवस्था, धर्म गुण या भाव। २. जड़ता।
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शीतलताई  : स्त्री०=शीतलता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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शीतलत्व  : पुं० [सं० शीतल+त्व]=शीतलता।
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शीतल-पाटी  : स्त्री० [सं०+हि] एक प्रकार की चिकनी पतली और बढ़िया चटाई।
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शीतल-भंडार  : पुं० [सं० ब० स०] १. विशेष प्रकार से निमित्त तथा यंत्रों आदि से संचालित वह भंडार गृह जिसका तापमान कृत्रिम रूप से कम कर दिया जाता है तथा जिसके फलस्वरूप उसमें रखी हुई चीजें ताप के कुप्रभाव से सुरक्षित रहती है। ठंढा गोदाम। (कोल्ड स्टोरेज)। २. शीतागार। सर्दखाना।
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शीत-लहरी  : स्त्री० [सं०]=शीत तरंग (देखें)।
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शीतला  : स्त्री० [सं० शीतल-टाप्] १. एक प्रसिद्ध रोग जिसमें शरीर पर दाने या फफोले निकल आते हैं। २. उक्त की अधिष्ठात्री देवी। ३. नीली दूब। ४. अर्क पुष्पी।
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शीतला-वाहन  : पुं० [सं० ष० त०] गधा, जो शीतला देवी का वाहन कहा गया है।
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शीतला-षष्ठी  : स्त्री० [ष० त०] माघ शुक्ल षष्ठी जो शीतला देवी के पूजन की तिथि कही गई है।
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शीतलाष्टमी  : स्त्री० [सं० ष० त० स०] चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी जो शीतलादेवी के पूजन की तिथि कही गई है।
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शीतली  : स्त्री० [सं० शीतल-ङीष्] १. जल में होनेवाला एक प्रकार का पौधा। २. श्रीवल्ली। ३. चेचक या शीतला नामक रोग।
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शीतवल्ली  : स्त्री० [सं० ब० स०] नीली दूब।
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शीतवासा  : स्त्री० [सं० ब० स०] जूही। यूथिका।
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शीत-वीर्य  : पुं० [सं० ब० स०] १. पदुम काठ। २. पाषाण-भेद नामक वनस्पति। ३. पित्त-पापड़ा। ४. पाकर वृक्ष। ५. नीली दूब। ६. बच। वि० (पदार्थ) जो खाने पर शरीर में ठंढक लाता हो। ठंढ़ी तासीरवाला।
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शीत-शिव  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. सेंधा नमक। २. छरीला। पत्थरफूल। ३. सोआ नामक साग। ४. शमी वृक्ष। ५. कपूर।
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शीत-शिवा  : स्त्री० [सं० शीत-शिव-टाप्] शमी वृक्ष। २. सौंफ।
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शीतशूक  : पुं० [सं० ब० स०] जौ। यव।
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शीत-संग्रह  : पुं० [सं० ष० त० स०]=शीतल भंडार।
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शीत-सन्निपात  : पुं० [सं० मध्यम० स०] एक प्रकार का सन्निपात जिसमें शरीर सुन्न और ठंढ़ा हो जाता है।
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शीत-सह  : पुं० [सं० शीत√सह् (सहन करना)+अच्] पीलू। झल्ल वृक्ष। वि० जिसमें शीत अर्थात् ठंढ या सरदी की विशेष क्षमता हो।
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शीत-सहा  : स्त्री० [सं० शीतसह-टाप्] १. शेफालिका। २. नेवारी। ३. मोतिया। बेला। ४. चमेली। ५. पीलू वृक्ष।
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शीत-सीमांत  : पुं० दे० ‘शीताग्र’।
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शीतांग  : पुं० [सं० ब० स०] शीत सन्निपात। वि० ठंढे अंगोंवाला।
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शीतांगी  : स्त्री० [सं० शीतांग-ङीष्] हंसपदी लता।
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शीतांशु  : पुं० [सं० ब० स०] १. चन्द्रमा। २. कपूर।
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शीता  : स्त्री० [सं० शीत-टाप्] १. सरदी। ठंढ़। २. एक प्रकार की दूब। ३. शिल्पिका नामक घास। ४. अमलतास।
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शीतागार  : पुं० [सं०]=शीतल भंडार।
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शीताग्र  : पुं० [सं० ष० त०] किसी ओर से आनेवाली शीतल वायु की धारा का वह अग्र भाग जो गरम वायु के सामने आ पड़ने के कारण कुछ नीचे दब जाता है और शीत की हल्की तह के रूप में किसी प्रदेश के ऊपर से होता हुआ आगे बढ़ता है (कोल्ड फ्रन्ट)। विशेष—जब यह शीताग्र किसी प्रदेश के ऊपर से होकर गुजरता है तब उस प्रदेश में तापमान और वायुमान गिर जाता है,आँधी आती और वर्षा होती है।
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शीतातप  : पुं० [सं० द्व० स०] शीत और आतप दोनों। जाड़ा और गरमी।
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शीताद  : पुं० [सं० शीत-आ√दा (देना)+का] एक प्रकार का रोग जिसमें मसूड़ों से दुर्गंध निकलने लगती है।
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शीताद्रि  : पुं० [सं० मध्यम० स०] हिमालय पर्वत।
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शीताद्य  : पुं० [सं० शीताद+यत्] शीतज्वर। जड़ी बुखार।
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शीताभ  : पुं० [सं० ब० स०] १. चन्द्रमा। २. कपूर।
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शीतालु  : वि० [सं० शीत+आलुच्] १. शीत के फलस्वरूप जो काँप रहा हो। २. शीत से संत्रस्त।
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शीताश्म (मन्)  : पुं० [सं० कर्म० स०] चन्द्रकांत मणि।
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शीतोदक  : पुं० [सं० ब० स०] एक नरक का नाम।
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शीतोष्ण  : वि० [सं० द्व० स०] १. ठंढा और गरम। १. कुछ-कुछ ठंढा और कुछ-कुछ गरम।
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शीतकार  : पुं०=सीत्कार।
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शीधु  : पुं० [सं० शी+वुक्] मदिरा। शराब। विशेषतः ऊख के रस को सड़ाकर बनाई जानेवाली शराब।
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शीन  : वि० [सं०√शयै (गमनादि)+क्त-संप्रसा०त=न] १. मूर्ख। २. जमा हुआ। पुं०=अजगर। पुं० [अ०] १. अरबी फारसी वर्णमाला का एक वर्ण जिसका उच्चारण तालव्य श का सा होता है। २. उक्त वर्ण का सूचक लिपिचिन्ह। मुहावरा-शीन काफ दुरुस्त होना=शब्दों के ठीक उच्चारण का उचित ज्ञान होना।
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शीर  : पुं० [सं० शीर से फा०] दूध। पुं० [सं०] अजगर। वि० नुकीला।
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शीरखिस्त  : पुं० [फा०] एक प्रकार की यूनानी रेचक ओषधि।
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शीरखोरा  : वि० [फा० शीरख्वार] (बालक) जो अभी अपनी माँ का दूध पीता हो।
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शीरगर्म  : वि० [फा०] (तरल पदार्थ) जो उबलता हुआ न हो, बल्कि साधारण गर्म हो। उतना ही गरम जितना पीने योग्य दूध होता है।
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शीरमाल  : पुं० [फा०] एक प्रकार की मीठी रोटी जिसे पकाते समय दूध का छींटा दिया जाता है।
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शीरा  : पुं० [फा० शीरः] गुड़, चीनी, मिसरी आदि के घोल को उबालकर तैयार की हुई चाशनी।
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शीराज  : पुं० [फा०] एक प्रसिद्ध ईरानी नगर।
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शीराजा  : पुं० [फा० शीराजः] १. वह फीता जो किताबों की सिलाई की छोर पर शोभा और मजबूती के लिए लगाया जाता है। २. इन्तजाम। प्रबन्ध। व्यवस्था। ३. क्रम। सिलसिला। ४. कपड़ों की सिलाई। सीयन। क्रि० वि०—खुलन।—टूटना।
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शीराज़ी  : वि० [फा०] शीराज का। पुं० १. शीराज का निवासी। २. एक प्रकार का कबूतर।
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शीरीं  : वि० [फा०] १. मधुर। मीठा। २. प्रिय। रुचिकर।
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शीरी  : पुं० [सं० शीर+इनि] १. कुश। कुशा। २. मूँज। ३. कलिहारी। लांगली।
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शीरीनी  : स्त्री० [फा०] १. मिठास। मधुरिमा। २. मिठाई। मिष्ठान्न। ३. गुरु, देवता, पीर आदि के सामने आदरपूर्वक रखी जानेवाली मिठाई। क्रि० प्र०—चढाना।—बाँटना।
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शीर्ण  : भू० कृ० [सं०√शृ (टुकड़े होना)+क्त] [भाव० शीर्णता] १. खंड-खंड। टुकडे़-टुकड़े। २. गिरा हुआ। च्युत। ३. टूटा या फटा हुआ और फलतः बहुत पुराना। ४. कुम्हलाया या मुरझाया हुआ। ५. दुबला-पतला। कृश। पुं० थुनेर नामक गन्ध द्रव्य।
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शीर्णता  : स्त्री० [शीर्ण+तल्-टाप्] शीर्ण होने की अवस्था या भाव।
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शीर्णत्व  : पुं० [शीण+त्व]=शीर्णता।
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शीर्णपत्र  : पुं० [सं० ब० स०] १. कर्णिकार। कनियारी। २. पठानी लोध। ३. नीम।
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शीर्णपर्द  : पुं० [सं० ब० स०] निंब। नीम।
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शीर्णपाद  : पुं० [सं० ब० स०] यमराज।
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शीर्णपुष्पी  : स्त्री० [सं० शीर्णपुष्प—ङीप्] सौंफ।
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शीर्ति  : स्त्री० [सं०√शृ (टुकड़े करना)+क्तिन्] तोडऩे-फोडने की क्रिया। खंडन।
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शीर्य  : वि० [सं०शृ (खंड करना)+क्विप्-यत्] १. जो तोड़ा-फोड़ा जा सके। २. भंगुर। नाशवान्। पुं० एक प्रकार की घास।
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शीर्ष  : पुं० [शिरस्-शीर्ष, पृषो√शृ+क, सुक् वा०] १. किसी चीज का सबसे ऊपरी तथा उन्नत सिरा। २. सिर। ३. मस्तक। ललाट। ४. काला अगर। ५. एक प्रकार की घास। ६. एक प्राचीन पर्वत। ७. ज्यामिति में वह बिन्दु जिस पर दो ओर से दो तिरछी रेखाएँ आकर मिलती हों (वर्टेक्स) ८. खाते में किसी मद का नाम (हेड)।
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शीर्षक  : पुं० [सं० शीर्ष√कै (होना)+क] १. सिर। १. मस्तक। माथा। ३. ऊपरी भाग। चोटी। ४. सिर की हड्डी। ५. टोपी आदि शिरस्त्राण। ६. लेखों आदि के ऊपर दिया जानेवाला उनका ऐसा नाम जिससे उनके विषय का कुछ परिचय मिलता हो (हेडिंग)। ७. राहु ग्रह।
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शीर्ष-कोण  : पुं० [सं० मध्य० स०] ज्यामिति में किसी आकृति का वह कोण जो तल के ठीक ऊपरी भाग में खड़े बल में होता है। (वर्टिकल एंगिल)।
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शीर्ष-नाम  : पुं० [सं० मध्य० स०] लेख्य, विधान आदि का वह पूरा नाम जो उसके आरम्भ में विशेषतः मुख पृष्ठ पर रहता है।
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शीर्ष-पट  : पुं० [सं० ष० त० स०] सिर पर लपेटा जानेवाला वस्त्र अर्थात् पगड़ी या साफा।
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शीर्ष-रक्ष  : पुं० [शीर्ष√रक्ष् (रक्षा करना)+अण्] शिरस्त्राण।
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शीर्ष-रेखा  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] १. किसी वर्ण के ऊपरवाली रेखा या लकीर। २. देव-नागरी लिपि में चिन्हों के ऊपर की सीधी बेड़ी रेखा।
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शीर्ष-बिंदु  : पुं० [सं० ष० त० स०] १. आँख का मोतिय-बिंद नामक रोग। २. दे० ‘शिरोबिन्दु’।
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शीर्ष-स्थान  : पुं० [सं० मध्य० स०] १. सबसे ऊँचा स्थान। २. सिर।
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शीर्षण्य  : पुं० [सं० शीर्ष+यत्-शीर्षन्] १. टोपी। २. सिर के साफ और सुलझे बाल। ३. खाट या चारपाई का सिरहाना। ४. पगड़ी। साफा।
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शीर्षासन  : पुं० [सं० शीर्ष+आसन] हठयोग, व्यायाम आदि में एक प्रकार का आसन या मुद्रा जिसमें सिर नीचे और पैर ऊपर करके सीधे खड़ा हुआ जाता है।
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शीर्षोदय  : पुं० [सं० ष० त० स०] मिथुन, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, कुंभ, और मीन राशियाँ जिनका उदय शीर्ष की ओर से होना माना गया है।
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शील  : पुं० [सं०√शील (अभ्यास)+अच्] १. मनुष्य का नैतिक आचरण और व्यवहार, विशेषतः उत्तम और प्रशंसनीय या शुभ आचरण और व्यवहार। (डिस्पोजीशन)। विशेष—शील वस्तुतः मनुष्य की प्रकृति और व्यक्तित्व से संबद्ध होता है, और इसीलिए कहीं कहीं यह स्वभाव के पर्याय के रूप में भी प्रयुक्त होता है। यह प्रायः सुनिश्चित और अस्थायी या स्थिर भी होता है। यह स्वभाव के चारित्रिक पक्ष या रूप में होता है, इसीलिए इसे देहस्वभाव भी कहते हैं। मुहावरा—शील निभाना= (क) सद्-व्यवहार में अंतर न आने देना। (ख) किसी के द्वारा अनिष्ट होने पर भी उसका अनिष्ट न करना। (किसी स्त्री का) शील भंग करना=किसी स्त्री के साथ व्यभिचार कर उसकी सतीत्व नष्ट करना। ३. हमारे मन की वह सदभावना पूर्ण वृत्ति जो विकट प्रसंग आने पर भी हमें उग्र, उद्धत या कटु नहीं होने देती और जो हमारी विनम्रता, शिष्टता आदि की सूचक होती है (माडेस्टी) विशेष-यह वृत्ति बहुत कुछ अर्जित होती और शिक्षा तथा शिष्ट समाज के संपर्क से प्राप्त होती है। ३. वह मानसिक वृत्ति जिसमें लज्जा और संकोच की प्रधानता होती है, और इसीलिए उचित अवसरों पर भी प्रायः कोई बात नहीं कहने देती। मुरौवत। मुहावरा-शील तोड़ना=मुरौवत न करना या न रखना।
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शीलन  : पुं० [सं०√शील् (अभ्यास करना)+ल्युट—अन] १. अभ्यास। २. विवेचना। ३. प्रवर्तन। ४. धारण करना। ५. ग्रहण करना।
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शीलवान्  : वि० [सं० शील+मतुप्—म=व, नुम् शीलवत्] [स्त्री० शीलवती] १. उत्तम शीलवाला। २. शीलों का पालन करनेवाला। (बौद्ध)
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शीलींध्र  : पुं० [सं० शिली√धृ (रखना)+क, पृषो, मुम्] १. केले का फूल। २. ओला। ३. कुकुरमुत्ता। ४. शिलिंद मछली।
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शीश  : पुं० दे० ‘शीर्ष’।
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शीश-तरंग  : पुं० [हि० शीश+सं० तरंग] जलतरंग की तरह का एक बाजा। जिसमें दो पटरियों पर शीशे के छोटे-छोटे बहुत से टुकड़े जड़े होते हैं। इन्हीं शीशों पर आघात करने से अनेक प्रकार के स्वर निकलते हैं।
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शीशम  : पुं० [सं० शिशिपा से फा०] एक प्रकार का पेड़ जिसकी लकड़ी बहुत बढ़िया होती है और इमारत तथा मेज कुरसियां आदि बनाने के काम आती है।
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शीश-महल  : पुं० [फा० शीश+अ० महल] १. शीशे का बना हुआ मकान। २. वह कमरा या कोठरी जिसकी दीवारों में सर्वत्र शीशे जड़े हों। पद-शीशमहल का कुत्ता=ऐसा व्यक्ति जो उस कुत्ते की तरह घबराया या बौखला गया हो जो शीशमहल में पहुँचकर अपने चारों ओर कुत्ते ही कुत्ते देखकर घबरा या बौखला जाता है।
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शीशा  : पुं० [फा०] १. एक प्रसिद्ध कड़ा और भंगुर पदार्थ जो बालू, रेह या खारी मिट्टी को आग में गलाने से बनता है, और जिससे अनेक प्रकार के पात्र, दर्पण आदि बनते हैं। २. उक्त का वह रूप जिसमें ठीक-ठीक प्रतिबिम्ब दिखाई देता है। आईना। दर्पण। पद—शीशा-बाशा=बहुत नाजुक चीज। मुहावरा—शीशे में मुँह तो देखो=पहले अपनी पात्रता या योग्यता तो देखों (व्यंग्य) ३. उक्त पदार्थ का बना हुआ वह पात्र जिसमें प्राचीन काल में शराब रखी जाती थी। पद—शीशे का देव=शराब। मुहावरा—शीशे में उतारना= (क) भूत, प्रेत आदि को मंत्र बल से बाँधकर शीशे के पात्र में बन्द करना। (ख) किसी को अपनी ओर आकृष्ट या अनुरक्त करके अपने वश में करना। ४. झाड़ फानूस आदि काँच के बने सजावट के सामान। ५. लाक्षणिक अर्थ में बहुत ही चिकनी तथा चमकीली वस्तु।
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शीशागर  : पुं० [फा०] [भाव० शीशागरी] शीशे बनानेवाला कारीगर।
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शीशागरी  : स्त्री० [फा०] शीशे की चीजें बनाने का काम तथा हुनर।
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शीशी  : स्त्री० [फा० शीशा] काँच की लम्बी कुप्पी। बोतल के आकार का छोटा पात्र। मुहावरा—शीशी सुँघाना=अस्त्र चिकित्सा करने से पहले एक खास दवा सुँघाकर रोगी को इसलिए बेहोश करना कि चीर-फाड से उसे कष्ट या पीड़ा न हो।
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