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संन्यास  : पुं० [सं०] [वि० संन्स्त] १. पूरी तरह से छोड़ना। परित्याग करना। २. हिंदुंओं के चार आश्रम में से अंतिम जिसमें सब प्रकार के सांसारिक बंधन या संबंध तोड़कर और त्यागी तथा विरक्त होकर सब कार्य निष्काम भाव से किये जाते हैं। चतुर्थ आश्रम। ३. किसी निश्चित क्षेत्र या सीमा के अन्दर ही रहने अथवा कोई काम करने तथा उस क्षेत्र सीमा से बाहर न निकलने की प्रतिज्ञा या व्रत। जैसे—ग्रह सन्यास, क्षेत्र सन्यास (देखें)। ४. अपने विधिक या कानूनी अधिकारों का स्वेच्छापूर्वक त्याग (सिविल सुइसाइड)। ५. अपस्मार, भीषण ज्वर, विषयोग आदि के कारण होने वाली लह अवस्था जिसमें रोगी की चेतना शक्ति बिल्कुल नष्ट हो जाती है (कॉमा)। विशेष—मूर्च्छा और संन्यास में यह अंतर है कि मूर्च्छा तो अनेक अवस्थाओं आप से आप दूर हो जाती है, परंतु संन्यास किसी प्रकार के उपचार या चिकित्सा के बिना दूर नहीं होती। ६. सहसा होने वाली मृत्यु। अचानक मर जाना। ७. बहुत अधिक थक जाना परमशिथिल होना। ८. थाती। धरोहर। न्यास। ९. इकरार। वादा। १॰. प्रतिस्पर्धा। होड़।
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संन्यासी (सिन्)  : पुं० [सं० संन्यास+इनि] १. वह जिसनें सन्यास आश्रम ग्रहण किया हो। संन्यास आश्रम में रहने और उसके नियमों का पालन करने वाला। २. त्यागी और विरक्त व्यक्ति। यति।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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