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शब्द का अर्थ

सूख  : वि०=सूखा। स्त्री० [हिं० सूखना] सूखने की अवस्था, क्रिया या भाव।
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सूखना  : अ० [सं० शुल्क, हिं० सूखा+ना (प्रत्य०)] १. किसी आर्द्र या तर पदार्थ का ऐसी स्थिति में आना कि उसकी आर्द्रता या तरी नष्ट हो जाय। जैसे–गीली धोती सूखना, तरकारी या फल सूखना। २. किसी आधार में के पानी का किसी प्रकार नष्ट हो जाना या न रह जाना। जैसे–कूआँ, तालाब, नदी सूखना। ३. जल के आभाव में किसी पदार्थ का जीवनी—शक्ति से हीन होना। जैसे–वर्षा न होने से फसल सूखना। चिंता या डर से जान सूखना। ४. कष्ट, चिंता, राग आदि के कारण शरीर का क्षीण और दुर्बल होना। जैसे–चार दिन की बीमारी में उनका सारा शरीर सूख गया। मुहा०–सूखकर काँटा होना=बहुत ही क्षीण और दुर्बल हो जाना। सूखकर सोंठ होना=सूखकर बिलकुल चुचुक या सिकुड़ जाना। सूखे खेत लहलहाना=कष्ट, चिंता, दुःख आदि दूर होने पर फिर से यथेष्ट प्रसन्न या सुखी होना। संयो० क्रि०–जाना।
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सूखर  : पुं० [?] एक शैव सम्प्रदाय।
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सूखा  : वि० [सं० शुष्क][स्त्री० सूखी, भाव० सूखापन] १. जिसमें फल या उसका कोई अंश न हो या न रह गया हो। निर्जल। जैसे–सूखा कपड़ा, सूखी नदी। २. जिसमें आर्द्रता या नमी न हो और हवा में नमी हो। ३. जिसमें जीवनी—शक्ति का सूचक हरापन निकल गया हो। जैसे–सूखा चेहरा, सूखा शरीर। ५. जिसमें भावुक्ता, मनोरंजकता, सरसता आदि कोमल गुणों का आभाव हो। जैसे–सूखा व्यवहार, सूखा स्वभाव। (ड्राई, उक्त सभी अर्थो के लिए) ६. कोरा। निरा। जैसे–सूखा अन्नसूखी शेखी। मुहा०–सूखा जवाब देना=साफ इनकार करना। ७. जिसमें जल आदि का योग न हो। जिसमें आवश्यक्ता होने पर भी जल का उपयोग न किया गया हो। जैसे–(क) यह चूरन सूखा ही घोंट आओं। (ख) वह बोतल की सारी शराब सूखी ही पी गया। ८. (बात या व्यवहार) जो दिखाने भर को या नाममात्र को हो। तत्त्व, तथ्य आदि से रहित। उदा०–लेके मैं ओढ़ूँ, बिछाऊँ या लपेटूँ, क्या करूँ। रूखी, फीकी, ऐसी सूखी मेहरबानी आपकी।–इन्शा। पुं० १. पानी न बरसने की दशा या समय। अनावष्टि। खुश्क—साली। (ड्राँट) क्रि० प्र०–पड़ना। २. ऐसा स्थान जहाँ जल न हो। जैसे–सूखे पर नाव लगाना। ३. तम्बाकू का सुखाया हुआ चूरा या पत्ता। ४. एक प्रकार का खाँसी जिसमें कफ नही निकलता और साँस जोरों से चलता है। हब्बा—डब्बा। ५. कोई ऐसा रोग जिससे शरीर जल्दी—जल्दी सूखने लगता हो। क्रि० प्र०–लगना। ६. भाँग की सूखी हुई पत्तियाँ।
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सूखिम  : वि०=सूक्ष्म।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सूखी खाँसी  : स्त्री० [हिं०] ऐसी खाँसी जिसमें गले से कफ या बलगम न निकलता हो।
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सूखी खेती  : स्त्री० [हिं०] खेती करने के की एक आधुनिक प्रणाली जिससे उन स्थानों में भी कुछ स्थानों में भी कुछ फसल उत्पन्न कर ली जाती है, जिनमें वर्षा अपेक्षया बहुत कम होती है, और जल के आभाव में सिंचाई की भी कोई व्यवस्था नहीं हो सकती। (ड्राई फा़र्मिग) विशेष–इस प्रणाली में कई प्रकार के उपाय होते हैं; जैसे–(क) जमीन बहुत गहरी जोतना, जिसमें पानी गहराई में समाकर जमा रहे। (ख) जमीन का ऊपरी भाग पत्थरों आदि से ढक देना, जिसमें उसकी तरी बनी रहे। (ग) खेत के सीढ़ीनुमा विभाग कर देना जिसमें वर्षा के जल का बहाव नियंत्रित किया जा सके आदि।
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सूखी धलाई  : स्त्री० [हिं०] रासायनिक द्रव्यों के योग से कपड़े साफ करने की वह क्रिया जिसमें जल का उपयोग न हो। (ड्राई—वांशिग)
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