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सूना  : वि० [सं० शून्य] [स्त्री० सूनी] १. (स्थान) जहाँ लोगों की चहल—पहल या आना—जाना बिलकुल न हो। जनहीन। निर्जन। जैसे–सूना घर। २. (पदार्थ या रचना) जो किसी आवश्यक, उपयुक्त या शोभन तत्त्व अथवा वस्तु के आभाव के कारण अप्रिय जान पड़े या खटके। जैसे–सीता बिना रसोइयाँ सूनी।–गीत। मुहा०–सूना लगना या सूना—सूना लगना= किसी वस्तु या व्यक्ति के अभाव के कारण निर्जीव मालूम होना। उदास मालूम होना। स्त्री० [सं० सून—टाप्] १. पुत्री। बेटी। २. वध। हत्या। ३. धर्मशास्त्र के अनुसार घर—गृहस्थी की ऐसी जगह जहाँ अनजान में प्रायः छोटे—छोटे जावों की हत्या होती रहती है। जैसे–अनाज कूटने—पीसने की जगह, रसोई आदि। दे० ‘पंच—सूना’। ४. वह स्थान जहाँ मांस के लिए पशुओं की हत्या की जाती हो। कसाई—खाना। ५. खाने के लिए मांस बेचने का काम। ६. हाथी के अंकुश का दस्ता। पुं० एकांत या निर्जन स्थान।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
सूना-दोष  : पुं० [सं०] वह दोष जो अनजान में गृहस्थी के कामों में होनेवाली जीव—हत्या के कारण होता है। दे० ‘पंच—सूना’।
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सूनापन  : पुं० [हिं० सूना+पन (प्रत्य०)] सूना होने की अवस्था या भाव।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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