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स्थंडिल  : पुं० [सं०] १. भूमि। जमीन। २. यज्ञ के लिए साफ की हुई भूमि। ३. सीमा। हद। ४. मिट्टी का ढेर। ५. एक प्राचीन ऋषि।
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स्थंडिल-शय्या  : स्त्री० [सं०] (व्रत के कारण) भूमि या जमीन पर सोना। भूमि-शयन।
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स्थंडिलशायी  : पुं० [सं० स्थंडिल-शायिन्] वह जो व्रत के कारण भूमि या यज्ञ स्थल पर सोता हो।
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स्थंडिलेशय  : पुं० [सं०] दे० ‘स्थंडिलशायी’।
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स्थ  : प्रत्य [सं०] एक प्रत्यय जो शब्दों के अंत में लगकर अर्थ देता है–(क) स्थित। जैसे–तटस्थ। (ख) उपस्थित। वर्तमान। जैसे–कंठस्थ। (ग) किसी विशिष्ट स्थान में रहने या होनेवाला। जैसे–आत्मस्थ, काशीस्थ। (घ) लीन। रत। मान। जैसे–ध्यानस्थ।
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स्थकित  : वि० [हिं० थकित] थका हुआ। शिथिल। ढीला।
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स्थग  : पुं० [सं०] १. धूर्त। २. ठग।
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स्थगन  : पुं० [सं०] [वि० स्थगित] १. छिपाना या ढाँकना। २. सभा की बैठक, बात की सुनवाई अथवा और कोई चलता हुआ काम कुछ समय के लिए रोक रखना। (ऐडजोर्नमेंट) ३. विचार आदि के लिए कुछ समय तक रोकना। (निलंबन)
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स्थगनक प्रस्ताव  : पुं० [सं०] वह प्रस्ताव जो विधायिकी सभाओं आदि में यह कहकर उपस्थित किया जाता है कि और काम छोड़कर पहले इसी पर विचार होगा। (ऐडजोर्नमेंट मोशन)
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स्थगिका  : स्त्री० [सं०] १. पनडब्बा। पानदान। ३. अँगूठे, उँगलियों और लिंगेन्द्रिय के आग्रभाग पर के घाव पर बाँधी जानेवाली (पनडब्बे के आकार की) एक प्रकार की पट्टी। (वैद्यक)
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स्थगित  : भू० कृ० [सं०] १. ढका हुआ। आच्छादित। २. ठहराया या रोका हुआ। ३.जो कुछ समय के लिए रोक दिया गया हो। मिलतवी। (एडजोर्न्ड) ४. छिपा हुआ। गुप्त। ५. बंद किया या रोका हुआ।
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स्थगी  : स्त्री० [सं०] स्थगिका।
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स्थपित  : पुं० [सं०] १. राजा। २. सामंत। ३. शासक। ४. अंतःपुर का रक्षक। कंचुकी। ५. वास्तुशास्त्र ज्ञाता या पंडित। ६. रथ बनाने वाला कारीगर। ७. सारथी। ८. वह जिसने वृहस्पति–सवन नामक यज्ञ किया हो। ९. कुबेर। १॰. बृहस्पति। वि० प्रधान। मुख्य।
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स्थपनी  : स्त्री० [सं०] भौहों के मध्य का स्थान जिसकी गिनती मर्मस्थानों में होती है।
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स्थपुट  : वि० [सं०] १. कुबड़ा। कुब्ज। २. पीड़ित। विपन्न। ३. कठिन स्थिति में पड़ा हुआ। पुं० कुबड़ा।
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स्थल  : वि० [सं०] [वि० स्थलीय] १. भूमि। जमीन। २. भूमि का खंड या विभाग। भू–भाग। ३. जल से रहित भूमि। खुश्की। (लैण्ड) जैसे–स्थल मार्ग से जाने में बहुत दिन लगेंगे। ४. स्थान। जगह। (स्पेस) ५. ऐसी जगह जिसमें जल बहुत कम हो। निर्जल और मरुभूमि। ६. कोई ऐसी जगह जहाँ कोई विशेष बात, रचना आदि हो या होने को हो। (साइट) ७. अवसर। मौका। ८. टीला। ढूह। ९. खेमा। तंबू। १॰. पुस्तक का अध्याय या परिच्छेद।
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स्थल-कंद  : पुं० [सं०] जंगली सूरन। कटैला जमीकंद।
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स्थल–कमल  : पुं० [सं०] १. स्थल में होनेवाला एक प्रकार का पौधा जिसमें कमल जैसे फूल लगते हैं। २. उक्त पौधे का फूल।
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स्थल-कमलिनी  : स्त्री० [सं०] स्थल कमल का पौधा।
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स्थल–काली  : स्त्री० [सं०] दुर्गा की एक सहचरी।
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स्थल–कुमुद  : पुं० [सं०] कनेर। करवीर।
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स्थलग  : वि० [सं०]=स्थलचर।
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स्थलगामी (मिन्)  : वि० [सं०] [स्त्री० स्थल–चारिणी]=स्थलचर।
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स्थल-चर  : वि० [सं०] स्थलचर पर रहने या विचरण करनेवाला। ‘जल–चर’ और ‘नभ–चर’ से भिन्न।
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स्थलचारी (रिन्)  : वि० [सं०] [स्त्री० स्थल-चारिणी]=स्थलचर।
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स्थलज  : वि० [सं०] १. स्थल में उत्पन्न होनेवाला। २. स्थल का सूखी जमीन पर रहनेवाला। (टेरेस्ट्रिअल)
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स्थल-डमरुमध्य  : पुं० [सं०] दाहिने और बाएँ पानी से घिरा हुआ, स्थल का वह लम्बा भाग, जो दोनों ओर के दो बड़े स्थलों के बीच में हो और उन्हे मिलाता हो।
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स्थल-नलिनी  : स्त्री०=स्थल-कमलिनी।
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स्थल-पद्म  : पुं० [सं०] १. स्थल-कमल। २. मान–कच्चू। ३. गुलाब।
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स्थल-पद्मिनी  : स्त्री०=स्थल-कमलिनी।
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स्थल-युद्ध  : पुं० [सं०] जमीन पर होनेवाला युद्ध। हवाई और समुद्री युद्ध से भिन्न।
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स्थल-रुहा  : स्त्री० [सं०] स्थल-कमल।
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स्थल-विहंग  : पुं० [सं०] स्थल पर विचरण करनेवाला मुर्ग, मोर आदि पक्षी।
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स्थल-सेना  : स्त्री० [सं०] स्थल या जमीन पर लड़नेवाली फौज। पैदल सिपाही घुड़सवार आदि। (आर्मी)। वायु और जल सेना से भिन्न।
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स्थला  : स्त्री० [सं०] जल-शून्य भू-भाग। स्थल।
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स्थलालेख्य  : पुं० [सं० स्थल+आलेख्य] किसी स्थल का रेखा-चित्र। (साइट प्लान)।
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स्थली  : स्त्री० [सं०] १. जल-शून्य भू-भाग। खुश्क जमीन। भूमि। २. ऊँची सम भूमि। ३. जगह। स्थान। ४. ऐसा मैदान जिसमें सुन्दर प्राकृतिक दृश्य हो।
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स्थली देवता  : पुं० [सं०] ग्राम–देवता।
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स्थलीय  : वि० [सं०] १. स्थल या भूमि–संबंध। स्थल का। जमीन का। २. दे० ‘स्थानीय’।
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स्थलेशय  : पुं० [सं०] (स्थल अर्थात भूमि पर सोनेवाला) कुरंग, कस्तूरी मृग आदि जन्तु।
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स्थलौक (स्)  : पुं० [सं०] स्थल-चर जीव-जन्तु।
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स्थवि  : पुं० [सं०] १. थैला या थैली। २. स्वर्ग। ३. अग्नि। ४. फल। ५. जंगल। ६. जुलाहा। ७. कोढ़ी।
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स्थविर  : पुं० [सं०] [भाव० स्थविरता] १. लकड़ी टेककर चलनेवाला बुड्ढा। २. बौद्ध भिक्षुओं का एक सम्प्रदाय। ३. ब्रह्या। ४. कदंब। ५. छरीला। वि० वृद्ध और पूज्य।
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स्थविरा  : स्त्री० [सं०] १. वृद्ध और पूज्य स्त्री। २. गोरखमुखी।
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स्थांडिल  : वि० [सं०] व्रत के कारण भूमि पर शयन करनेवाला।
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स्थाई  : वि०=स्थायी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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स्थाणव  : वि० [सं०] स्थाणु अर्थात वृक्ष के तने से बना या उत्पन्न।
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स्थाणवीय  : वि० [सं०] स्थाणु या शिव संबंधी। शिव का।
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स्थाणु  : पुं० [सं०] १. पेड़ का ऐसा धड़ जिसके ऊपर की डालियाँ और पत्ते आदि न रह गये हों। ठूँठ। २. खंभा। ३. शिव का एर नाम। ४. ग्यारह रुद्रों में से एक। ५. एक प्रजापति। ६. एक प्रकार का बरछा या भाला। ७. धूप–घड़ी का काँटा। ८. स्थवर पदार्थ। ९. जीवक नामक अष्ट–वर्गीय ओषधि। १॰. दीमक की बाँबी। ११. घोड़े का एक प्रकार का रोग जिसमें उसकी जाँघ में व्रण या फोड़ा निकलता है। १२. कुरुक्षेत्र के थानेश्वर नामक स्थान का प्राचीन नाम जो किसी समय बुहत प्रसिद्ध तीर्थ माना जाता था। वि० अचल। स्थावर।
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स्थाण्वीश्वर  : पुं० [सं०] स्थाणु तीर्थ में स्थित एक प्रसिद्ध शिवलिंग। (वामन पुराण)
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स्थाता (तृ)  : वि० [सं०] १. स्थित या स्थर रहनेवाला। दृढ़। २. अचल।
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स्थान  : पुं० [सं०] [वि० स्थानिक, स्थानीय] १. स्थिति। ठहराव। २. खुला हुआ भूमि-भाग। जमीन। मैदान। ३. निश्चित और परिमित स्थितवाला वह भू-भाग जिसमें कोई बस्ती, प्राकृतिक रचना या कोई विशेष बात हो। जगह। स्थल। (प्लेस) जैसे–वहाँ देखने योगोय अनेक स्थान है। ४. रहने की जगह। (मकान, घर आदि)। ५. सेवा या लोकोपकार आदि के काम करने की जगह। पद। ओहदा। (पोस्ट) ६. बैठने का वह विशिष्ट स्थान जो निर्वाचित अथवा प्रति–निधित्व करनेवाले लोगों के लिए होता है। ७. देवालय, आश्रम या इसी प्रकार का कोई पवित्र स्थान। ८. अवसर। मौका। ९. देश। प्रदेश। १॰. मुँह के अंदर का वह अंग या स्थल जहाँ से किसी वर्ण या शब्द का उच्चारण हो। जैसे–कंठ, तालू, मूर्धा, दंत, ओष्ठ। (व्याकरण) ११. किसी राज्य के मुख्य आधार या बल जो चार माने गये हैं। यथा–सेना, कोष नगर और देश। (मनु०) १२. प्राचीन भारतीय राजनीति में, वह स्थिति जब युद्ध यात्रा न करके राजा लोग किसी उद्देश्य से चुप–चाप या बड़े उदासीन भाव से बैठे रहते थे। १३. आखेट में शरीर की एक प्रकार की मुद्रा (यह आसन का एक भेद माना गया है)। १४. अभिनय में अभिनेता का कार्य या चरित्र। १५. अवस्था। दशा। १६. गोदाम। भंडार। १७. कारण। हेतु। १८. किला। दुर्ग। १९. ग्रंथ का अध्याय या परिच्छेद।
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स्थानक  : पुं० [सं०] १. अवस्था। स्थिति। २. रूपक में कोई विशेष स्थिति। जैसे–पताका स्थानक। ३. जगह। स्थान। ४. नगर। शहर। ५. दरजा। पद। ६. वृक्ष का थाला। आल-बाल। ७. फेन। ८. नृत्य में एक प्रकार की मुद्रा।
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स्थानकवासी  : पुं० [सं०] जैनों में एक विशिष्ट संप्रदाय।
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स्थान-चिंतक  : पुं० [सं०] वह सैनिक अधिकारी जो सेना के पड़ाव डालने, चौकी बनाने आदि के उद्देश्य से स्थान-स्थान आदि की व्यवस्था करता है।
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स्थान-च्युत  : भू० कृ० [सं०] [भाव० स्थान–च्युति] १. जो अपने स्थान से गिर, हट या अलग हो गया हो। २. पद से हटाया हुआ। पद-च्युत।
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स्थान-पदिक  : वि० [सं०] नियमित रूप से या प्रायः किसी स्थान अथवा प्रदेश में होने या पाया जानेवाला। (एन्डेमिक) जैसे–स्थान-पदिक रोग।
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स्थान-पाल  : पुं० [सं०] १. स्थान या देश का रक्षक। २. चौकीदार। पहरेदार।
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स्थान-भ्रष्ट  : भू० कृ० [सं०] स्थान–च्युत।
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स्थानविद  : वि० [सं०] जो किसी स्थान का जानकार हो।
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स्थानस्थ  : वि० [सं०] १. किसी स्थान पर टिका या टिककर रहनेवाला। २. स्थानीय।
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स्थानांतर  : पुं० [सं०] १. प्रकृत या प्रस्तुत से भिन्न कोई और स्थान। दूसरा स्थान। २. एक स्थान से दूसरे स्थान जाने की क्रिया या भाव। बदली।
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स्थानांतरण  : पुं० [सं०] [भू० कृ० स्थानांतरित] किसी वस्तु या व्यक्ति को एक स्थान से हटाकर दूसरे स्थान पर पहुँचाना, देखना या भेजना। बदली। (ट्रान्सफ़रेन्स)
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स्थानांतरित  : भू० कृ० [सं०] जो अपने स्थान पर से हटाकर दूसरे स्थान पर भेज दिया गया हो। (ट्रान्सफ़र्ड)
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स्थानाध्यक्ष  : पुं० [सं०] वह व्यक्ति जिसपर किसी स्थान की रक्षी का भार हो। स्थान-रक्षक।
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स्थानापत्ति  : स्त्री० [सं०] स्थानापन्न होने की अवस्था या भाव। किसी की जगह पर या बदले में काम करना।
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स्थानापन्न  : वि० [सं०] १. जिसनें किसी दूसरे स्थान का ग्रहण किया हो। २. शासनिक क्षेत्र में किसी अधिकारी की अस्वस्थता, अनुपस्थिति या अविद्यमानता में उसके स्थान पर अस्थाई रूप से काम करनेवाला। (आफि़शिएटिंग)
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स्थानिक  : वि० [सं०] १. स्थान संबंधी। २. किसी स्थान विशेष में ही होनेवाला। जिसका क्षेत्र किसी स्थान तक ही सीमित हो। स्थानीय। जैसे–स्थानिक शब्द। पुं० १. स्थानृ-रक्षक। २. देव मंदिर का प्रबंधक।
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स्थानिक अधिकरण  : पुं० [सं०] किसी विशेष स्थान पर रहनेवाले अधिकारियों का समूह वर्ग या निकाय। (लोकल ऑथॉर्रटी)
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स्थानिक कर  : पुं० [सं०] किसी स्थान विशेष पर लगने वाला कर। (लोकल टैक्स)
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स्थानिक-परिषद  : स्त्री० [सं०] किसी बस्ती के निवासियों के प्रतिनिधियों की वह परिषद या सभा जिस पर वहाँ के कुछ विशेष्ट लोक-हित संबंधी सार्वजनिक कार्यों का भार हो। (लोकल बोर्ड)
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स्थानिक स्वराज्य  : पुं०, दे० ‘स्थानिक स्वायत्त शासन’।
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स्थानिक स्वायत्त शासन  : पुं० [सं०] १. लोक तंत्र शासन प्रणाली में शहरों कसबों गाँव आदि के लोगो द्वारा की जाने वाली अपने यहाँ की शासन-व्यवस्था। २. उक्त शासन का अधिकारी। ३. उक्त शासन-प्रणाली। (लोकल सेल्फ़ गवर्नमेंट)
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स्थानी (निन्)  : वि० [सं०] १. स्थान या पद से युक्त। २. उपयुक्त। ३. स्थाई।
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स्थानीकरण  : पुं० [सं०] [भू० कृ० स्थानीकृत] इधर-उधर या दूर तक फैले हुए कार्यों, व्यापारों आदि को नियंत्रित करके एक केन्द्र या स्थान में आबद्ध या सीमित करना। (लोकलाईजे़शन)
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स्थानीकृत  : भू० कृ० [सं०] जो या जिसका स्थानीकरण हुआ या किया गया हो। (लोकलाइज्ड)
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स्थानीय  : वि० [सं०] १. उस स्थान या नगर का जिसके संबंध में कोई उल्लेख हो। उल्लखित, वक्ता या लेखक के स्थान का। मुकामी। स्थानिक। (लोकल) जैसे–स्थानीय पुलिस कर्मचारी। स्थानीय समाचार। किसी स्थान पर ठहरा हुआ। स्थित। पुं० १. नगर। शहर। २. प्राचीन भारत मे ८॰॰ गावोँ के बीच में बना हुआ किला या गढ़।
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स्थानीय स्वशासन  : पुं० [सं०]=स्थानिक स्वायत्त शासन।
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स्थानेश्वर  : पुं० [सं०] १. कुरुक्षेत्र का थानेश्वर नामक स्थान जो किसी समय तक प्रसिद्ध तीर्थ था। २. स्थानाध्यक्ष।
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स्थापक  : वि० [सं०] १. स्थापन या स्थापना करने वाला। २. मूर्तियाँ आदि बनानेवाला। ३. अमानत या धरोहर रखनेवाला। ४. दे० संस्थापक। पुं० भारतीय नाट्यशास्त्र में वह नट जो पूर्व रंग में सूत्र धार के मंगला चरण करके चले जाने पर वैष्णव रूप में आकर नाटक की कथावस्तु के काव्यार्थ की स्थापना करता अर्थात सूचना देता है।
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स्थापत्य  : पुं० [सं०] १. स्थपित का अर्थात मकान आदि बनाने का कार्य। राजगीरि। मेमारी। २. भवन बनाने की विद्या। वास्तु विज्ञान। अंतःपुर का रक्षक।
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स्थापत्य वेद  : पुं० [सं०] १. चार उपवेदों में से एक जिसमें वास्तुशिल्प या भवन निर्माण कला का विषय वर्णित है। कहते हैं कि यह विश्वकर्मा ने अथर्ववेद से निकाला था।
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स्थापन  : पुं० [सं०] [वि० स्थापनीय, भू० कृ० स्थापित, कर्ता० स्थापक] १. उठाना या खड़ा करना। २. दृढ़तापूर्वक जमाना, रखता या बैठाना। जैसे–वृक्ष या देवता का स्थापन। ३. दृढ़ या पुष्ट आधार पर स्थिर करना। स्थायी रूप देना। ४. कोई नई संस्था या व्यापारिक कार-बार खड़ा करना। (एस्टैब्लिशमेंन्ट) ५. किसी को किसी पद पर काम करने के लिए लगाना या नियत करना। (पोस्टिंग) ६. कोई मत या विचार इस प्रकार युक्तिपूर्वक लोगो के सामने रखना कि वह ठीक या प्रामाणिक जान पड़े। प्रतिपादन। ७. (शरीर का) रक्षा या आयुवृद्धि का उपाय। ८. रक्त-स्त्राव रोकने का उपाय। ९. समाधि। १॰. प्रसवन। ११. रहने की जगह। घर। मकान। १२. अनाज का ढेर। १३. दे० ‘स्थापना’।
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स्थापना  : स्त्री० [सं०] १. स्थापित करने की क्रिया या भाव। स्थापना। २. तर्क, प्रमाण, युक्ति आदि के द्वारा अपना पक्ष या मत ठीक सिद्ध करते हुए दूसरों के सामने रखना। अपना पक्ष स्थापित करना। निरूपण। प्रतिपादन। (एस्टैब्लिशमेंट) ३. इकट्ठा या जमा करना। ४. भारतीय नाट्य-शास्त्र के पूर्वरंग में सूत्र धार के द्वारा मंगलाचरण हो चुकने पर स्थापक नामक नट के द्वारा इस बात का सूचित किया जाना कि नाटक की कथावस्तु और उसका काव्यार्थ क्या है। ५. जैन धर्म में किसी मूर्ति में देवता, व्यक्ति आदि का आरेप करना। स० ठीक तरह से जमाना, बैठाना या रखना। स्थापित करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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स्थापनिक  : वि० [सं०] १. स्थापन संबंधी। स्थापन का। २. एकत्र या जमा किया हुआ।
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स्थापनीय  : वि० [सं०] स्थापित किये जाने योग्य। जिसका स्थापन हो सके या होने को हो।
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स्थापयितव्य  : वि० [सं०]=स्थापनीय।
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स्थापयिता (तृ)  : वि० [सं०]=स्थापक।
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स्थापित  : भू० कृ० [सं०] १. जिसकी स्थापना की गई हो। कायम किया हुआ। २. इकट्ठा या जमा किया हुआ। ३. सँभालकर रखा हुआ। रक्षित। ४. निर्धारित या निश्चित। ५. व्यवस्थित। ६. विवाहित। ७. दृढ। पक्का। मजबूत।
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स्थापी (पिन्)  : पुं० [सं०] प्रतिमा निर्माण करने या मूर्ति बनानेवाला कारीगर।
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स्थाप्य  : वि० [सं०]=स्थापनीय। पुं० १. देवता आदि की मूर्ति। देव-प्रतिमा। २. अमानत। धरोहर।
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स्थाय  : पुं० [सं०] १. वह जिसमें कोई चीज रखी जाय। वह जिसमें धारिता शक्ति हो। २. जगह। स्थान।
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स्थाया  : स्त्री० [सं०] पृथ्वी। धरती।
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स्थायिक  : वि० [सं०] १. स्थायी। २. विश्वसनीय।
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स्थायिता  : स्त्री०=स्थायित्व।
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स्थायित्व  : पुं० [सं०] १. स्थायी होने का अवस्था, गुण धर्म, भाव। २. किसी वस्तु विशेषतः सेवा या नौकरी के पद आदि पर होने वाला ऐसा अधिकारी जो कुछ विशिष्ट नियमों के अनुसार सुरक्षित और नियत काल के लिए स्थायी हो। (टेन्योर)
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स्थायी  : वि० [सं०] १. किसी स्थान पर स्थित होनेवाला। २. सदा स्थित रहनेवाला। हमेशा बना रहनेवाला। (परमानेन्ट) जैसे–स्थायी पद। ३. बहुत दिनों तक चलनेवाला। टिकाऊ। ४. स्थायी भाव। (दे०)
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स्थायीकरण  : पुं० [सं०] [भू० कृ० स्थायीकृत] १. किसी वस्तु, कार्य या बात को स्थायी रूप देना। २. किसी पद पर अस्थायी रूप से अथवा परीक्षण के रूप में काम करने वाले व्यक्ति को उस पर स्थायी रूप से नियत करना। ३. उक्त कार्य के लिए दी जानेवाली आज्ञा या स्वीकृति। (कन्फ़र्मेशन)
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स्थायी कोष  : पुं० [सं०] किसी संस्था आदि का वह कोष या धन राशि जो उसे स्थायी रूप से बनाए रखने के लिए क्रम-क्रम से बराबर संचित होती रहती है और इसका उपयोग उस संस्था को पुष्ट रूप देने और स्थायी बनाए रखने में होता है।
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स्थायी निधि  : स्त्री० [सं०] १. वह निधि जो कोई काम चलाए चलने के लिए स्थापित की गई हो और जिसके ब्याज मात्र से वह काम चलता हो। २. स्थायी कोष। (एन्डाउमेंट)
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स्थायी भाव  : पुं० [सं०] साहित्य में वे मूल तत्व जो मूलतः मनुष्यों के मन में प्रायः सदा निहित रहते और कुछ विशिष्ट अवसरों पर अथवा कुछ विशिष्ट कारणों से स्पष्ट रूप से प्रकट होते हैं। जैसे–प्रेम, हर्ष या उससे उत्पन्न होनेवाला हास्य, खेद, दुःख, शोक, भय, वैराग्य आदि। इन्ही तत्वों या भावों के आधार पर साहित्य के ये नौ रस स्थिर हुए हैं–श्रंगार, हस्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स और शांत। इन्ही रसों में मूल तथा स्थायी रूप से स्थापित रहने और किसी दूसरे भाव के आने पर भी प्रबलता तथा स्पष्ट रूप से होने के कारण ये भाव स्थायी कहलाते हैं।
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स्थायी समिति  : स्त्री० [सं०] १. वह समिति जो स्थायी रूप से बनी रहकर काम करने के लिए नियुक्त की गई हो। २. किसी सम्मेलन या महासभा आदि की यह समिति जो उक्त सम्मेलन या महासभा के अगले अधिवेशन तक सब कार्यों की व्यवस्था के लिए चुनी जाती है। (स्टैंडिंग कमिटि)
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स्थाल  : पुं० [सं०] १. पात्र (बरतन)। २. बड़ी थाली। थाल। ३. देगची। पतीला। ४. दाँत का खोखलापन।
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स्थाली  : स्त्री० [सं०] १. मिट्टी के बरतन जो भोजन बनाने और खाने पीने के काम में आते हों। जैसे–कसोरा, तश्तरी, हाँडी आदि। २. मिट्टी की वह तश्तरी जिसमें यज्ञ के समय सोम का रस निचोड़ा जाता था। ३. थाली। ४. खीर। ५. पाटला नामक वृक्ष।
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स्थाली-पाक  : पुं० [सं०] १. आहुति के लिए एक प्रकार का चरु जो दूध में चावल या जौं डालकर पकाने से बनता था। २. वैद्यक में लोहे की एक पाकविधि।
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स्थाली-पुलाक-न्याय  : पुं० [सं०] एक प्रकार का न्याय या कहावत जिसका प्रयोग यह आशय सूचित करने के लिए होता है कि हाँडी में उबाले हुए चावलों का एक दाना देखने से यह पता चलता है कि चावल अच्छी तरह से पके हैं या नहीं। जैसे–मैंने उनका एक ही व्याख्यान सुनकर स्थाली पुलाक-न्याय से सब विषयों में उनका मत जान लिया।
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स्थाल्य  : वि० [सं०] १. स्थल-संबधी। २. स्थल होने वाला। पुं० १. अन्न। २. जड़ी–बूटी।
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स्थावर  : वि० [सं०] [भाव० स्थावरता] १. इस प्रकार जड़ा, रखा या लगाया हुआ कि हट न सके। २. जो सदा एक ही जगह जमा रहता हो और वहाँ से कभी हटता न हो। (‘जंगम’ का विरु०) ३. अचल। गैर मनकूला। (इम्मूवेबुल) ४. उक्त प्रकार के पदार्थों से उत्पन्न होने या संबंध रखने वाला। जैसे–स्थावर विष। पुं० १. अचल संपत्ति। जैसे–खेत, बाग, मकान आदि। २. पर्वत। ३. अचेतन पदार्थ। जैसे–मिट्टी, बालू आदि। ४. वह पारिवारिक वस्तु जिसे बेचने का अधिकार किसी को नहीं होता है। ५. स्थूल शरीर।
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स्थावरता  : स्त्री० [सं०] स्थावर होने का अवस्था, गुण या भाव।
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स्थावर-नाम  : पुं० [सं०] वह पाप कर्म जिसके उदय से जीव स्थावर काय (स्थूल शरीर) में जन्म ग्रहण करते हैं। (जैन)
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स्थावर-राज  : पुं० [सं०] हिमालय।
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स्थावर-विष  : पुं० [सं०] वह विषय जो वृक्षों की जड़ों, पत्तों, फल, फूल, छाल, दूध, सार, गोंद, धातु और कंद में होता है। स्थावर पदार्थों में होने वाला जहर। (वैद्यक)
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स्थाविर  : पुं० [सं०] वृद्धावस्था। वार्धक्य। बुढ़ौती।
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स्थाविर-लगुडन्याय  : पुं० [सं०] जैसे वृद्ध की लाठी निशाने पर नहीं पहुँचती वैसे यदि कोई बात लक्ष्य तक पहुँचाने में विफल हो, तो यह न्याय प्रयुक्त होता है।
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स्थित  : भू० कृ० [सं०] [भाव० स्थिति] १. किसी पर खड़ा या ठहरा या बना हुआ। जैसे–दिल्ली स्थित मकान। २. बना हुआ। जैसे–प्रयाग स्थित पारिवारिक सदस्य। ३. दृढ। पक्का। जैसे–स्थित प्रज्ञ। ४. प्रतिष्ठित या प्रतिस्थापित किया हुआ। ५. बैठा हुआ। ६. ऊपर की ओर उठा हुआ। ७. अचल। ८. उपस्थित। मौजूद। पुं० १. अवस्थान। निवास। २. कुल या परिवार की मर्यादा।
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स्थितता  : स्त्री० [सं०] स्थित होने की अवस्था, गुण या भाव। स्थिति।
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स्थित-घी  : वि० [सं०] १. स्थिर बुद्धिवाला। २. सोच–समझ कर निश्चय करने और उस पर स्थिर रहने वाला। ३. सुख–दुःख में विचलित या विह्वल न होनेवाला।
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स्थित-पाठ्य  : पुं० [सं०] नाट्य शास्त्र में विरही नायक या नायिका का एकांत में बैठकर दुखी मन से आप ही आप बातें करना या बड़बड़ाना।
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स्थित–प्रज्ञ  : वि० [सं०] १. जिसकी विवेक-बुद्धि स्थिर हो। २. सब प्रकार के मनों विकारों से रहित या शून्य और सदा आत्मा में ही प्रसन्न तथा संतुष्ट रहनेवाला।
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स्थिति  : स्त्री० [सं०] [वि० स्थित] १. स्थित होने की क्रिया, दशा या भाव। रहना या होना। अवस्थान। अस्तित्व। २. एक ही स्थान पर या एक ही रूप में बना रहना। टिकाव। ठहराव। ३. आपेक्षिक, आर्थिक, सामाजिक आदि दृष्टियों से समझी जाने वाली किसी विषय या व्यक्ति की अवस्था। दशा। हलत। जैसे–(क) आज–कल उनकी स्थिति अच्छी नहीं है। (ख) देश की रीजनीतिक (या सामाजिक) स्थिति बिलकुल बदल गई है। ४. पद, मर्यादा आदि के विचार से समाज में किसी को प्राप्त होनेवाला स्थान। (पोजीशन) ५. किसी व्यक्ति संस्था आदि की वह विधिक दशा या मर्यादा जो उसे अपने क्षेत्र में कुछ निश्चित सीमा में प्राप्त होती है, और जो उसके पद सम्मान आदि की सूचक होती है। (स्टेटस) ६. वे बातें जो कोई पक्ष में अपने वक्तव्य, अभियोग, आरोप आदि के संबंध में कहता या उपस्थित करता है। (केस) जैसे–इस विषय में मैं अपनी स्थिति आपको बतला चुका हूँ। ७. निवास-स्थान। ८. अस्तित्व। ९. पालन–पोषण। १॰. नियम या विधान। ११. विचारणीय विषय का निर्णय या निष्पत्ति। १२. मर्यादा। १३. सीमा। हद। १४. छुटकारा। निवृत्ति। १५. ढंग। तरीका। १६. आकृति। रूप।
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स्थिति-गणित  : पुं० [सं०] गणित की वह शाखा जिसमें सांख्यिकी विवरण संग्रहीत तथा वर्गीकृत किये जाते हैं और विशेष रूप से पदार्थों की साम्यावस्था पर प्रभाव डालनेवाली शक्तियों का अंको में विवेचन होता है। (स्टैटिस्टिक्स)
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स्थितिता  : स्त्री० [सं०] १. स्थिति का भाव या धर्म। २. स्थिरता।
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स्थितिमान् (मत्)  : वि० [सं०] १. जिसमें दृढ़ता या धीरता हो। २. स्थायी। ३. धार्मिक।
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स्थिति-शील  : वि० [सं०] [भाव० स्थितिशीलता] १. बराबर एक ही स्थिति में होता या बना रहनेवाला। २. जो किसी स्थिति में पहुँचकर ज्यों का त्यों रह जाय। (स्टेटिक)
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स्थिति-स्थापक  : वि० [सं०] [भाव० स्थिति-स्थापकता] १. दाब हट जाने पर फिर ज्यों का त्यों हो जानेवाला। नमनीय। लचीला। २. दे० ‘तन्यक’।
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स्थिर  : वि० [सं०] [भाव० स्थिरता] १. सदा एक ही दशा, रूप या स्थित मे रहने वाला। अचर। निश्चल। (कांस्टेन्ट) २. बहुत दिनों तक या सदा ज्यों का त्यों बने रहने वाला। स्थायी। (स्टैबल) ३. इस प्रकार निश्चित किया हुआ जिसमें जल्दी या सहज में कोई परिवर्तन या हेर-फेर न हो सके। जैसे–मत स्थिर करना। ४. जो किसी स्थान पर पहुँचकर स्थायी रूप से रुक या ठहर गया हो। एक ही जगह पर बहुत दिनों तक टिका रहने वाला। (स्टेशनरी) ५. जिसमें किसी प्रकार का उद्वेग, चंचलता आदि न हो। धीर। शांत। ६. (प्रस्ताव या विचार) जो निश्चय के रूप में लाया गया हो। निश्चित। ७. एक ही स्थान पर जड़ा, बैठा या लगाया हुआ। ८. स्थायी। ९. विश्वसनीय। पुं० १. शिव। २. देवता। ३. मोक्ष। ४. पर्वत। ५. वृक्ष। ६. शनिग्रह। ७. ज्योतिष में एक प्रकार का योग। ८. ज्योतिष में वृष, सिंह, वृश्चिक, और कुंभ ये चारों राशियाँ स्थिर मानी गयीं हैं। ९. एक प्रकार का मंत्र जिसमें शास्त्र अभिमंत्रित किये जाते थे। १॰. वह कर्म जिससे जीव को स्थिर अवयव प्राप्त होते हैं। (जैन) ११. वृष। साँड़। १२. घौ का पेड़।
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स्थिर गंध  : [सं०] जिसकी सुगंध स्थिर रहती हो। स्थिर या स्थायी गंध युक्त। पुं० चंपक चंपा।
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स्थिर-गंधा  : स्त्री० [सं०] १. केवड़ा। केतकी। २. पाटला। पाढर।
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स्थिर-चक्र  : पुं० [सं०] मंजुघोष या मंजुकी नामक प्रसिद्ध बोधिसत्व का एक नाम।
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स्थिर-चित्र  : वि० [सं०] १. जिसका मन स्थिर या दृढ हो। २. उत्तेजित, विचलित, या विह्वल न होनेवाला।
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स्थिर-चेतना  : वि०=स्थिर-चित्त।
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स्थिर-जीवी (विन्)  : पुं० [सं०] कौआ जिसका जीवन बहुत दीर्घ होता है।
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स्थिरता  : स्त्री० [सं०] १. स्थिर रहने या होने की अवस्था, गुण या भाव। २. दृढता। मजबूती। ३. धीरता। ४. स्थायित्व।
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स्थिरत्व  : पुं० =स्थिरता।
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स्थिर-दंष्ट्र  : पुं० [सं०] १. साँप। सर्प। २. ध्वनि। ३. विष्णु का वाराह अवतार।।
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स्थिर-पत्र  : पुं० [सं०] १. श्रीताल वृक्ष। २. हिंताल वृक्ष।
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स्थिर-पुष्प  : पुं० [सं०] १. चंपक वृक्ष। चंपा। २. बकुल। मौलसिरी। ३. तिल-पुष्पी।
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स्थिर-बुद्धि  : वि० [सं०] जिसकी बुद्धी स्थिर हो। ठहरी हुई बुद्धिवाला। दृढचित्त।
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स्थिर-मति  : वि०=स्थिर-बुद्धि।
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स्थिरमना  : वि०=स्थिर-चित्त।
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स्थिर-मूल्य  : पुं० [सं०] किसी वस्तु का वह निश्चित मूल्य जिसमें कमीबेशी न हो सकती हो। (फिक्सड् प्राइस)
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स्थिर-यौवन  : वि० [सं०] [स्त्री० स्थिरयौवना] जिसका यौवन-काल या जवानी अधिक दिनों तक बनी रहे। पुं० विद्याधर।
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स्थिर-यौवना  : वि० स्त्री० [सं०] (स्त्री) जिसका यौवन अपेक्षया अधिक समय तक बना या स्थिर रहे।
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स्थिरा  : स्त्री० [सं०] १. दृढ चित्तवाली स्त्री०। २. पृथ्वी। ३. काकोली। ४. बनमूँग। ५. सेमल। ६. मूसाकानी। ७. माषपर्णी। मखवन।
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स्थिरात्मा (त्मन्)  : वि० [सं०] दृढ़ चित्तवाला।
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स्थिरायु  : वि० [सं०] १. जिसकी आयु बहुत अधिक हो। चिरजीवी। २. अमर। पुं० सेमल का पेड़।
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स्थरीकरण  : पुं० [सं०] १. स्थिर करने की क्रिया या भाव। २. घटती-बढ़ती रहनेवाली वस्तुओं का स्वरूप या मानक स्थिर करना। (स्टैबिलाइजे़शन) जैसे–मूल्य या भाव का स्थिरीकरण। ३. पुष्टि। समर्थन।
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स्थूण  : पुं० [सं०] १. थूनी। २. खंभा।
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स्थूणा  : स्त्री० [सं०] १. थूनी। २. खंभा। ३. पेड़ का ठूँठ। ४. लोहे का पुतला। ५. निहाई। ६. एक प्रकार का रोग।
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स्थूणाकर्ण  : पुं० [सं०] १. एक प्रकार की सैनिक व्यूह-रचना। २. एक प्रकार का तीर। ३. एक प्रकार का रोग ग्रह।
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स्थूणापक्ष  : पुं० [सं०] सेना की एक प्रकार की व्यूह-रचना।
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स्थूणीय, स्थूण्य  : वि० [सं०] स्तंभ-संबंधी।
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स्थूल  : वि० [सं०] [भाव० स्थूलता] १. भारी ओर मोटे अंगोवाला। मोटा। सूक्ष्म का विपर्याय। २. तुरंत या बिना परिश्रम समझ में आनेवाला। ३. जिसमें छोटे और बारीक अंगो का विचार न हो। (रफ़) ४. मोटे हिसाब से अनुमान किया या ध्यान में आया हुआ। (रफ़) ५. अभी जिसमें लागत व्यय आदि न निकाला गया हो। ‘पक्का’ का विपर्याय। (ग्रास) जैसे–स्थूल आय। ६. जिसमें तल सम न हो। ७. मूर्ख। पुं० १. वह पदार्थ जिसका साधारणतयः इंद्रियों द्वारा ग्रहण हो सके। वह जो स्पर्श, घ्राण, दृष्टि आदि की सहायता से जाना जा सके। गोचर-पिंड। २. वैद्यक के अनुसार शरीर की सातवीं त्वचा। ३. अन्नमय कोष। ४. ढेर। राशि। समूह। ५. विष्णु। ६. शिव का एक गण। ७. कटहल। ८. कंगनी। प्रियंगु। ९. ईख। ऊख। १॰. एक प्रकार का कदंब।
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स्थूल-कंटक  : पुं० [सं०] बबूल की जाति का एक प्रकार का पेड़ जिसे आरी भी कहते हैं।
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स्थल-कंद  : पुं० [सं०] १. लाल लहसुन। २. जमीकंद। सूरन। ३. हाथी कंद। ४. मान कंद। ५. मुखालु।
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स्थूल-जंघा  : स्त्री० [सं०] नौ प्रकार की समिधाओं में से एक। (गृह्यसूत्र)
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स्थूल-जिह्वा  : वि० [सं०] जिसकी जीभ बहुत बडी़ हो। पुं० एक प्रकार के भूत।
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स्थूल-जीराक  : पुं० [सं०] मँगरैला।
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स्थूल-तंदूर  : पुं० [सं०] एक प्रकार का मोटा धान।
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स्थूलता  : स्त्री० [सं०] १. स्थूल होने की अवस्था, गुण या भाव। स्थूलत्व। २. मोटाई। ३. भारीपन।
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स्थूलत्व  : पुं०=स्थूलता।
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स्थूल–दर्भ  : पुं० [सं०] मूँज नामक तृण।
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स्थूल–दर्शक  : पुं० [सं०] सूक्ष्म-दर्शक यंत्र।
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स्थूल-देह  : पुं० [सं०]=स्थूल-शरीर।
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स्थूल-नास (नासिक)  : पुं० [सं०] सूअर। शूकर। वि० लंबी नाकवाला।
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स्थूल-पत्र  : पुं० [सं०] १. दौना नामक क्षुप। दमनक। २. सप्तपर्ण। छतिवन।
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स्थूल-पर्णी  : स्त्री० [सं०] सत्यपर्ण। छतिवन।
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स्थूल-पाद  : पुं० [सं०] १. वह जिसे श्लीपद या फिलपा रोग हो। २. हाथी।
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स्थूल-पुष्प  : पुं० [सं०] १. वक या अगस्त नामक वृश्र। २. गुलमखमली। झंटुक।
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स्थूल-पुष्पी  : स्त्री० [सं०] शंखिनी। यवतिका।
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स्थूल-फल  : पुं० [सं०] १. सेमल। शाल्मलि। २. बड़ा नीबू।
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स्थूल-फला  : स्त्री० [सं०] १. शणपुष्पी। वनसनई। २. सेमल।
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स्थूल-भद्र  : पुं० [सं०] जैनियों का भेद या वर्ग। श्रुतकेवलिक।
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स्थूल-मरिच  : पुं० [सं०] शीतलचीनी कबाबचीनी कक्कोल।
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स्थूल-रोग  : पुं० [सं०] मोटा होने का रोग। मोटाई की व्याधि।
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स्थूल-लक्ष  : पुं० [सं०] [भाव० स्थूललक्षिता] १. वह जो बहुत अधिक दान करता हो। बहुत बड़ा दानी। २. पंडित। विद्वान। ३. कृतज्ञ।
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स्थूल-लक्षिता  : स्त्री० [सं०] १. दानशीलता। २. पांडित्य। विद्वता। ३. कृतज्ञता।
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स्थूल-लक्ष्य  : पुं० [सं०] १. वह जो बहुत अधिक दान करता हो। बहुत बड़ा दाता। २. किसी विषय ऊपरी या मोटी बातें बताना।
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स्थूल-शर  : पुं० [सं०] रामशर।
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स्थूल-शरीर  : पुं० [सं०] वेदांत के अनुसार जीव या प्राणी के तीन प्रकार के शरीरों में से वह जो भौतिक तत्वों या हाड़-मांस का बना होता है और जो प्राण, बुद्धि, मन, कर्मेंद्रियों तथा ज्ञानेंद्रियों से युक्त होता है। जीव इसी शरीर में जन्म लेता है और संसार के सब काम करता है। विशेष–शेष दोने कारण शरीर और सूक्ष्म कहलाते हैं।
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स्थूल-शालि  : पुं० [सं०] एक प्रकार का मोटा चावल। स्थूल तंडुल।
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स्थूल-हस्त  : पुं० [सं०] हाथी की सूँड़। वि० लंबे या मोटे हांथोवाला।
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स्थूलात्र  : पुं० [सं०] पेड़ु के अंदर की एक बड़ी आँतड़ी।
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स्थूला  : स्त्री० [सं०] १. बड़ी इलायची। २. गजपीपल। ३. सौंफ। ४. मुनक्का। ५. कपास। ६. ककड़ी। ७. सोआ नामक साग।
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स्थूलाम्र  : पुं० [सं०] कलमी आम।
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स्थूलास्य  : पुं० [सं०] साँप। ऊँट।
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स्थूली (लिन्)  : पुं० [सं०] ऊँट।
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स्थूलोच्चय  : पुं० [सं०] हाथी का मध्यम चाल, जो न बहुत तेज हो और न बहुत सुस्त हो।
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स्थूलोदर  : वि० [सं०] बड़ी तोंदवाला।
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स्थेय  : वि० [सं०] स्थापित किये जाने के योग्य। जो स्थापित किया जा सके या किया जाने को हो। पुं० १. पुरोहित २. विवाह आदि का निर्णायक। न्यायकर्ता या पंच।
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स्थैर्य  : पुं० [सं०] १. स्थिरिता। २. दृढ़ता।
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स्थौर  : पुं० [सं०] १. स्थिरता। २. दृढ़ता। ३. उतनी सामग्री जितनी एक बार मे अपनी या किसी की पीठ पर लाद कर ले जाते हैं। खेप।
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स्थौल्य  : पुं० [सं०] १. स्थूल होने की अवस्था या गुण या भाव। स्थूलता। २. शरीर की देह-वृद्धि जो वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का रोग है। मोटापा। ३. भारीपन।
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